आज युवा कवि अनुज लुगुन की कविताएँ. अनुज की कविताओं में सभ्यता का गहरा अँधेरा है, हाशिए के लोगों की वह उदासी जिसके कारण ग्लोब झुका हुआ दिखाई देता है. एकदम नए काव्य-मुहावरे के इस कवि में बड़ी संभावनाएं दिखाई देती हैं, बेहतर भविष्य की, बेहतर कविता की- जानकी पुल.१. ग्लोब मेरे हाथ में कलम थीऔर सामने विश्व का मानचित्रमैं उसमें महान दार्शनिकों और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगाजिसे मैं गा सकूँलेकिन मुझे दिखायी दीक्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरेंउस पार के इंसानी ख़ून से इस पार की लकीर, और इस पार के इंसानी ख़ून सेउस…
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अंग्रेजी के युवा लेखक-नाटककार-पत्रकार फ्रैंक हुज़ूर एक ज़माने में ‘हिटलर इन लव विद मडोना’ नाटक के कारण विवादों में आये थे, आजकल उनकी किताब ‘इमरान वर्सेस इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी’ के कारण चर्चा में हैं. आइये उनकी इस किताब से परिचय प्राप्त करते हैं- जानकी पुल.इमरान खान का नाम जब भी ध्यान में आता है १९८०-९० के दशक का वह क्रिकेटर याद आता है जिसके हरफनमौला खेल ने केवल पाकिस्तान ही नहीं भारतीय उप-महाद्वीप के क्रिकेट का लोहा मनवाया था, जिसने लगभग अपने कंधे पर १९९२ में पाकिस्तान को विश्व कप का चैम्पियन बनवाया था. निस्संदेह भारतीय उपमहाद्वीप के दो…
आज आधुनिक कहानी के पिता माने जाने वाले लेखक मोपासां की पुण्यतिथि है. कहते हैं मोपासां ने कहानियों में जीवन की धडकन भरी, उसे मानव-स्वाभाव के करीब लेकर आये. संगीतविद, कवयित्री वंदना शुक्ल ने इस अवसर उन्नीसवीं शताब्दी के उस महान लेखक को इस लेख में याद किया है. आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल. ===================== किसी कहानी का कहानी होते हुए भी इस क़दर जीवंत होना कि वो पाठक को दृश्य का एक हिस्सेदार बना ले यही किसी कहानी की सफलता है और यही कुशलता कुछ चुने हुए कथाकारों की कृतियों को असंख्यों की भीड़ से अलग कर…
\’यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है / सुख-दुःख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है\’ जैसी पंक्तियों के कवि आरसी प्रसाद सिंह की भी यह जन्म-शताब्दी का साल है. यह चुपचाप ही बीता जा रहा था. युवा-कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा का यह लेख उस लगभग गुमनाम हो चुके कवि के बारे में बताता है कि क्यों उनको याद करना चाहिए, हिंदी साहित्य में उनका योगदान क्या है- जानकी पुल. साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि, कथाकार और एकांकीकार आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त 1911 को हुआ और 15 नवम्बर 1996 तक…
मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी ने दिल्ली प्रेस की प्रसिद्ध सांस्कृतिक पत्रिका कारवां(the caravan) पर मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है, वह भी पूरे ५० करोड़(500 मिलियन) का. कारवां के फरवरी अंक में सिद्धार्थ देब ने एक स्टोरी की थी अरिंदम चौधरी के फिनोमिना के ऊपर. अरिंदम iipm जैसे एक बहुप्रचारित मैनेजमेंट संस्थान चलाते हैं, अरिंदम चौधरी फ़िल्में बनाते हैं, अरिंदम चौधरी कई भाषाओं में संडे इंडियन मैग्जीन निकालते हैं(हालाँकि आज तक यह समझ में नहीं आया कि क्यों निकालते हैं), जिसके तेरह संस्करण निकलते हैं, अरिंदम चौधरी टीवी पर विज्ञापन में आते हैं और समाज को बदलने का आह्वान करते…
ओरहान पामुक का प्रसिद्द उपन्यास \’स्नो\’ पेंगुइन\’ से छपकर हिंदी में आनेवाला है. उसी उपन्यास के एक चरित्र \’ब्लू\’, जो आतंकवादी है, पर गिरिराज किराड़ू ने यह दिलचस्प लेख लिखा है, जो आतंकवाद, उसकी राजनीति के साथ-साथ अस्मिता के सवालों को भी उठाता है- जानकी पुल. 1 ओरहान पामुक के उपन्यास स्नो के आठवें अध्याय में कथा का प्रधान चरित्र (प्रोटेगोनिस्ट) का (काफ़्का के का से प्रेरित) एक दूसरे चरित्र ब्लू से मिलने जाता है; ब्लू का प्रोफाईल दिलचस्प है – उसकी प्रसिद्धि का कारण यह तथ्य है कि उसे ‘एक स्त्रैण, प्रदर्शनवादी टीवी प्रस्तोता…
आज मोहन राणा की कविताएँ. विस्थापन की पीड़ा है उनकी कविताओं में और वह अकेलापन जो शायद इंसान की नियति है- कहाँ गुम हो या शायद मैं ही खोया हूँशहर के किस कोने में कहाँदो पैरों बराबर जमीन परवो भी अपनी नहीं हैदो पैरों बराबर जमीन परकहाँ गुम हो या शायद मैं ही खोया हूँशहर के किस कोने में कहाँदो पैरों बराबर जमीन पर वो भी अपनी नहीं हैदूरियाँ नहीं बिफरा मन भी नहींतुम्हें याद करने का कोई कारण नहींभूलने का एक बहाना है खराब मौसम जोसिरदर्द की तरहसमय को खा जाता है खाये जा रहा हैफिर भी भूखा है…
दिलनवाज़ जब फिल्म-गीतकारों पर लिखते हैं तो हमेशा कुछ नया जानने को मिलता है. इस बार उन्होंने हिंदी सिनेमा के कुछ ऐसे गीतकारों को याद किया है जिनको या तो हम भूल गए हैं या जिनके बारे में जानते ही नहीं हैं. पहले जब रेडियो का ज़माना था तो गीतों को सुनवाने से पहले उद्घोषक/उद्घोषिका गीत के साथ गीतकारों के नाम भी बताते थे. जिससे लोगों को उनके नाम याद रह जाते थे. अब तो लोग बिसरते जा रहे हैं. ऐसे में इस लेख के माध्यम से दिलनवाज़ ने उन गीतकारों तथा उनके लिखे गीतों को याद करने का बड़ा अच्छा…
अज्ञेय के जन्म-शताब्दी वर्ष में प्रोफ़ेसर हरीश त्रिवेदी ने यह याद दिलाया है कि १९४६ में अज्ञेय की अंग्रेजी कविताओं का संकलन प्रकाशित हुआ था ‘प्रिजन डेज एंड अदर पोयम्स’. जिसकी भूमिका जवाहरलाल नेहरु ने लिखी थी. लेकिन बाद अज्ञेय-विमर्श में इस पुस्तक को भुला दिया गया. इनकी कविताओं का खुद अज्ञेय ने भी कभी हिंदी-अनुवाद नहीं किया. समकालीन भारतीय साहित्य के अंक १५४ में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने इस पुस्तक की विस्तार से चर्चा की है. और पहली बार उस संकलन की कुछ कविताओं का हिंदी-अनुवाद भी किया है. यहाँ हरीश त्रिवेदी द्वारा अनूदित अज्ञेय की कविताएँ प्रस्तुत…