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वीकेंड कविता में इस बार प्रस्तुत है व्यंग्य-कवि संजय गौतम की गज़लें. काका हाथरसी की तर्ज़ पर उनका अनुरोध है इनको हज़ल कहा जाए. आइये उनकी हज़लों का रंग देखते हैं.एकपहले जो अपना यार था, अब कैलकुलेटर हो गया,दो जमा दो में किये, दस गिन के सैटर हो गया.जब कभी ग़फ़लत हुई, वो देख के मुस्का दिये,मामला संगीन भी, तत्काल बैटर हो गया.कल ही तो उन सबने ठाना, फिर भिड़ें राम-ओ-रहीम, मौन-सा अपने ही लोगों का करैक्टर हो गया.कौन सी गलियों में भटका है फिरे ये पूछ्ता,मजनूँ जी, लैला का तो न्यारा ही सैक्टर हो गया.कल ही तो खुद से…

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आखिर भारतीय मूल के कनाडाई लेखक रोहिंटन मिस्त्री के उपन्यास ‘सच ए लांग जर्नी’ में ऐसा क्या है कि शिव सेना के २० वर्षीय युवराज आदित्य ठाकरे ने मुंबई विश्वविद्यालय के सिलेबस से बाहर करवाकर अपने राजनीतिक कैरियर के आगाज़ का घोषणापत्र लिखा.कह सकते हैं कि शिव सेना की युवा सेना के प्रमुख बनने का जश्न उन्होंने उस घटना के माध्यम से बनाया. आश्चर्य इस बात से हुआ कि महाराष्ट्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने पाठ्यक्रम से पुस्तक हटाये जाने की इस घटना का समर्थन किया. आखिर ऐसा क्या है रोहिंटन मिस्त्री के उपन्यास में कि उसके विरोध को लेकर शिवसेना…

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मनोहर श्याम जोशी के जन्मदिन पर प्रस्तुत है यह साक्षात्कार जो सन २००४  में आकाशवाणी के अभिलेखगार के लिए की गई उनकी लंबी बातचीत का अंश है. उसमें उन्होंने अपने जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं को लेकर बात की थी। यहां एक अंश प्रस्तुत है जिसमें उन्होंने अपने जीवन और लेखन के कुछ निर्णायक पहलुओं को लेकर खुलकर बातें की हैं. पूरी ईमानदारी से. उनके अपने शब्दों में कहें तो ‘बायोग्राफी पॉइंट ऑफ व्यू’ से- प्रभात रंजन ====================== प्रश्न- आपके उपन्यास हों चाहे सीरियल उनमें चरित्र-चित्रण भी जबर्दस्त होता है और किस्सागोई भी सशक्त होता है। भाषा पात्रों के अनुकूल होती है। बड़ा जीवंत परिवेश…

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कवि ज्ञानेंद्र पति इसी महीने चुपचाप साठ साल के हो गए. इस अवसर पर मुझे उनकी कविता ‘ट्राम में एक याद’ का स्मरण हो आया. जब नौवें दशक में इस कविता का प्रकाशन हुआ था तो इसकी खूब चर्चा हुई थी. केदारनाथ सिंह के संपादन में हिंदी अकादेमी, दिल्ली से नौवें दशक की प्रतिनिधि कविताओं के संचयन में भी इस कविता को स्थान मिला. ज्ञानेंद्र पति की कविताओं की ओर लोगों का ध्यान गया था. सार्वजनिक बनाम निजी का जो द्वंद्व इस कविता में है वह नितांत समसामयिकता के इस दौर में इस कविता को प्रासंगिक भी बनाता है. उस…

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अगला साल हिंदी के उपेक्षित कवि गोपाल सिंह नेपाली की जन्मशताब्दी का साल है. इसको ध्यान में रखते हुए उनकी कविताएँ हम समय-समय पर देते रहे हैं. आगे भी देते रहेंगे- जानकी पुल.एक रुबाईअफ़सोस नहीं इसका हमको, जीवन में हम कुछ कर न सकेझोलियाँ किसी की भर न सके, संताप किसी का हर न सकेअपने प्रति सच्चा रहने का, जीवन भर हमने काम कियादेखा-देखी हम जी न सके, देखादेखी हम मर न सके.२.तू पढ़ती है मेरी पुस्तकतू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँतू चलती है पन्ने-पन्ने, मैं लोचन-लोचन बढ़ता हूँ मैं खुली कलम का जादूगरतू बंद किताब…

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बरसों पहले गुलज़ार ने एक टीवी धारावाहिक बनाया था ‘ग़ालिब’. उसके शीर्षक गीत में उन्होंने चूड़ीवालान से तुक मिलाते हुए बल्लीमारान का ज़िक्र किया था. उस बल्लीमारान का जिसकी गली कासिमजान में इस उपमहाद्वीप के शायद सबसे बड़े शायर ग़ालिब ने अपने जीवन के आखिरी कुछ साल गुजारे थे. उसके बाद से तो बल्लीमारान और ग़ालिब एकमेक हो गए. कासिमजान के बारे में कोई नहीं जानता जिसके नाम पर वह गली आबाद हुई, बल्लीमारान के अतीत को कोई नहीं जानता. ग़ालिब और बल्लीमारान. बस.एक ज़माने में बल्लीमारान को बेहतरीन नाविकों के लिए जाना जाता था. इसीलिए इसका नाम बल्लीमारान पड़ा…

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कहते हैं गुलशन नंदा ऐसा लेखक था जिसने जासूसों को प्रेम की भूल-भुलैया में भटका दिया. गुलशन नंदा के लेखक के रूप में आगमन से पहले हिंदी में लोकप्रिय उपन्यासों के नाम पर जासूसी उपन्यासों का बोलबाला था. बोलबाला क्या था उनका जादू सिर चढ़कर बोलता था. पाठक या तो इब्ने सफी के उर्दू उपन्यासों के हिंदी अनुवाद पढते थे या अंग्रेजी उपन्यासों के अनुवाद. वैसे में ६० के दशक में गुलशन नंदा ने अमीर-गरीब के प्यार का ऐसा फॉर्मूला तैयार किया कि रोमांटिक उपन्यासों की धारा ही चल पड़ी. जिस समय हिंदी में आधुनिकतावादी तर्क को आधार बनाकर गंभीर…

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प्रसिद्ध पत्रकार राजकिशोर का यह लेख हिंदी भाषा के संकटों की चर्चा करता है. कुछ साल पहले लेखक यु. आर. अनंतमूर्ति ने अपने एक लेख में भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव को लेकर कहा था कि अगर यही हाल रहा तो भारतीय भाषाएं ‘किचेन लैंग्वेज’ यानी नौकरों-चाकरों से बातचीत करने की भाषा बनकर रह जायेगी. सचमुच यह प्रवृत्ति बढती जा रही है. राजकिशोर जी का लेख उसी की गंभीरता की ओर इशारा करता है और हम हिंदी वालों को अपने कर्त्तव्य की याद दिलाता है- जानकी पुल. आजकल संसद सदस्यों, मध्य प्रदेश के विधायकों और देश भर के…

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सैयद ज़मीर हसन दिल्ली के जेहनो-जुबान के सच्चे शायर हैं. उनकी शायरी में केवल दिल्ली की रवायती जुबान का रंग ही नहीं है, वह अहसास भी है जिसने दिल्ली को एक कॉस्मोपोलिटन नगर बनाए रखा है. उसके बिखरते जाने का दर्द भी है और उस दर्द से उपजी फकीराना मस्ती. दिल्ली कॉलेज में ४० साल पढाने वाले ज़मीर साहेब ने बहुत सुन्दर कहानियाँ भी लिखी हैं जिनसे ज़ल्दी ही आपका परिचय करवाएंगे. फिलहाल उनकी दो गज़लें- जानकी पुल.१. इश्क जिन्होंके ध्यान पड़ा वो पहले तो इतराए बहुत,बूर के लड्डू खानेवाले पीछे फिर पछताए बहुत.बस्ती-बस्ती करिया-करिया छानी ख़ाक ज़माने भर की,आदमजाद कहीं…

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२०११ में अज्ञेय की जन्म-शताब्दी है. इसी को ध्यान में रखते हुए सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन ने अज्ञेय संपादित एक पुस्तक ‘पुष्करिणी’ को फिर से प्रकाशित किया है. १९५३ में प्रकाशित इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व है. अज्ञेय का यह मानना था कि स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों को ध्यान में रखकर ही कविता के संचयन क्यों तैयार किए जाएँ? ऐसे संचयन आम पाठकों को ध्यान में रखकर भी तैयार किए जाने चाहिए ताकि आधुनिक कविता-धारा से उसका जुड़ाव हो सके. इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने ‘पुष्करिणी’ का संपादन किया, जिसमें मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, सियारामशरण गुप्त, दिनकर, प्रसाद, निराला,…

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