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फिल्म “गाँधी टू हिटलर\’’ का कांसेप्ट प्रभावित करता है. द्यितीय विश्वयुद्ध के सबसे बड़े खलनायक हिटलर को लेकर, उसके अर्श से फर्श या कहें कि ‘बंकर’ तक का सफर फिल्म की कहानी का मुख्य हिस्सा है. इस कहानी से भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दो महानायक जुड़ जाते हैं, दो विचारधाराएँ जुड़ जाती हैं. गाँधी ने हिटलर को १९३९ में एक चिट्ठी लिखी थी इस महाविनाश को रोकने के लिए. दूसरी तरफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं जिनका मानना था कि आखिर जर्मन भी तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे हैं, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, इसलिए जर्मनी का साथ…

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आज आशुतोष भारद्वाज की कहानी. उनकी कहानी का अलग मिजाज़ है. जीवन की तत्वमीमांसा के रचनाकार हैं वे. वे शब्दों को लिखते नहीं हैं उसे जीते हैं, उनकी कहनियों में जीवन की धड़कनों को सुना जा सकता है. कश्मीर के परिवेश को लेकर एक अलग तरह की कहानी है \’मिथ्या\’, होने न होने का भ्रम लिए. ========================================= मृत्यु से पहले मृत्यु की आंखें आती होंगी। तुम्हें घूरेंगी, तुम्हारी बाह झकझोरने लगेंगी। तुम भीगा चेहरा, नामालूम भय या पसीने से, तीन रजाई की तहों से बाहर निकालोगे — हरी लकड़ी का हिलता दरवाजा, रात भर सुलगते रहने के बाद बुझी…

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वरिष्ठ कवि नंदकिशोर आचार्य का नया कविता संग्रह आया है ‘केवल एक पत्ती ने’, ‘वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर से. उसी संग्रह से कुछ कविताएँ आज प्रस्तुत हैं- जानकी पुल.    अभिधा में नहीं जो कुछ कहना हो उसे –खुद से भी चाहे— व्यंजना में कहती है वह कभी लक्षणा में अभिधा में नहीं लेकिन कभी कोई अदालत है प्रेम जैसे कबूल अभिधा में जो कर लिया –सजा से बचेगी कैसे! हर कोई चाहता है साधू ने भरथरी को दिया वह फल— अमर होने का भरथरी ने रानी को दे दिया रानी ने प्रेमी को अपने प्रेमी ने गणिका को और गणिका…

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आज युवा कवि अनुज लुगुन की कविताएँ. अनुज की कविताओं में सभ्यता का गहरा अँधेरा है, हाशिए के लोगों की वह उदासी जिसके कारण ग्लोब झुका हुआ दिखाई देता है. एकदम नए काव्य-मुहावरे के इस कवि में बड़ी संभावनाएं दिखाई देती हैं, बेहतर भविष्य की, बेहतर कविता की- जानकी पुल.१. ग्लोब मेरे हाथ में कलम थीऔर सामने विश्व का मानचित्रमैं उसमें महान दार्शनिकों और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगाजिसे मैं गा सकूँलेकिन मुझे दिखायी दीक्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरेंउस पार के इंसानी ख़ून से इस पार की लकीर, और इस पार के इंसानी ख़ून सेउस…

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अंग्रेजी के युवा लेखक-नाटककार-पत्रकार फ्रैंक हुज़ूर एक ज़माने में ‘हिटलर इन लव विद मडोना’ नाटक के कारण विवादों में आये थे, आजकल उनकी किताब ‘इमरान वर्सेस इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी’ के कारण चर्चा में हैं. आइये उनकी इस किताब से परिचय प्राप्त करते हैं- जानकी पुल.इमरान खान का नाम जब भी ध्यान में आता है १९८०-९० के दशक का वह क्रिकेटर याद आता है जिसके हरफनमौला खेल ने केवल पाकिस्तान ही नहीं भारतीय उप-महाद्वीप के क्रिकेट का लोहा मनवाया था, जिसने लगभग अपने कंधे पर १९९२ में पाकिस्तान को विश्व कप का चैम्पियन बनवाया था. निस्संदेह भारतीय उपमहाद्वीप के दो…

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आज आधुनिक कहानी के पिता माने जाने वाले लेखक मोपासां की पुण्यतिथि है. कहते हैं मोपासां ने कहानियों में जीवन की धडकन भरी, उसे मानव-स्वाभाव के करीब लेकर आये. संगीतविद, कवयित्री वंदना शुक्ल ने इस अवसर उन्नीसवीं शताब्दी के उस महान लेखक को इस लेख में याद किया है. आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल. =====================     किसी कहानी का कहानी होते हुए भी इस क़दर जीवंत होना कि वो पाठक को दृश्य का एक हिस्सेदार बना ले यही किसी कहानी की सफलता है और यही कुशलता कुछ चुने हुए कथाकारों की कृतियों को  असंख्यों की भीड़ से अलग कर…

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\’यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है / सुख-दुःख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है\’ जैसी पंक्तियों के कवि आरसी प्रसाद सिंह की भी यह जन्म-शताब्दी का साल है. यह चुपचाप ही बीता जा रहा था. युवा-कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा का यह लेख उस लगभग गुमनाम हो चुके कवि के बारे में बताता है कि क्यों उनको याद करना चाहिए, हिंदी साहित्य में उनका योगदान क्या है- जानकी पुल. साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि, कथाकार और एकांकीकार आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त 1911 को हुआ और 15 नवम्बर 1996 तक…

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मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी ने दिल्ली प्रेस की प्रसिद्ध सांस्कृतिक पत्रिका कारवां(the caravan) पर मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है, वह भी पूरे ५० करोड़(500 मिलियन) का. कारवां के फरवरी अंक में सिद्धार्थ देब ने एक स्टोरी की थी अरिंदम चौधरी के फिनोमिना के ऊपर. अरिंदम iipm जैसे एक बहुप्रचारित मैनेजमेंट संस्थान चलाते हैं, अरिंदम चौधरी फ़िल्में बनाते हैं, अरिंदम चौधरी कई भाषाओं में संडे इंडियन मैग्जीन निकालते हैं(हालाँकि आज तक यह समझ में नहीं आया कि क्यों निकालते हैं), जिसके तेरह संस्करण निकलते हैं, अरिंदम चौधरी टीवी पर विज्ञापन में आते हैं और समाज को बदलने का आह्वान करते…

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ओरहान पामुक का प्रसिद्द उपन्यास \’स्नो\’ पेंगुइन\’ से छपकर हिंदी में आनेवाला है. उसी उपन्यास के एक चरित्र \’ब्लू\’, जो आतंकवादी है, पर गिरिराज किराड़ू ने यह दिलचस्प लेख लिखा है, जो आतंकवाद, उसकी राजनीति के साथ-साथ अस्मिता के सवालों को भी उठाता है- जानकी पुल.         1 ओरहान पामुक के उपन्यास स्नो के आठवें अध्याय में कथा का प्रधान चरित्र (प्रोटेगोनिस्ट) का (काफ़्का के का से प्रेरित) एक दूसरे चरित्र ब्लू से मिलने जाता है; ब्लू का प्रोफाईल दिलचस्प है – उसकी प्रसिद्धि का कारण यह तथ्य है कि उसे ‘एक स्त्रैण, प्रदर्शनवादी टीवी प्रस्तोता…

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