वरिष्ठ पत्रकार-लेखिका गीताश्री की नई पुस्तक आई है सामयिक प्रकाशन से ‘औरत की बोली’. पुस्तक हिंदी में विमर्श के कुछ बंद खिड़की-दरवाज़े खोलती है. प्रस्तुत है पुस्तक की भूमिका का एक अंश- जानकी पुल.
घर से ज्यादा बाहर शोर था- “चतुर्भूज स्थान की सबसे सुंदर और मंहगी बाई आई है।“ बारात के साथ में आई थी बाई, लेकिन बाई को लेकर लोगों में जो उत्सुकता थी, वो बारात आने के उत्साह से कहीं ज्यादा थी। जिधर देखो एक ही चर्चा-“बाबा की पोती की शादी में चतुर्भूज स्थान की सबसे सुंदर और मंहगी बाई आई है। रात को मजमा लगेगा।” एक किस्म के गर्व से घऱ के बड़े-बूढ़ों का सीना चौड़ा हो गया था। लड़के वालो ने मंहगी बाई लाकर खानदान की इज्जत जो रख ली थी। बारात का स्वागत जोर-शोर से हुआ और उससे भी ज्यादा फिक्र रात के मजमे को लोकर लोगों में थी। देर रात महफिल जमी। महफिल यानी बड़ा सा शामियाना, लेकिन चारो तरफ से ढंका हुआ। बरात और शरात पक्ष के लोग बैठे। एक तरफ से लोगों की आवजाही और उस आवाजाही में अवांछित तत्वों को तलाशती बूढ़ों की आंखें, क्योंकि क्या पता इधर महफिल रंग लाए और उधर कोई बवाल शुरु कर दे। आखिर बाईजी का नाच शुरु हुआ। घऱ की औरतों को ऐसा नाच देखने की मनाही तो होती है, लेकिन घर की औरतें छुप-छुप कर देख ही लेती हैं। उस रात भी यही हुआ। नाच शुरु हुआ। उसके पहले साजिंदो ने माहौल संगीतमय कर दिया था। संगीत के प्रति मेरी दीवानगी बार बार शामियाने में मुझे खींच रही थी। मगर अंदर जाने की किसी को इजाजत नहीं थी। मैं आस-पास मंडरा रही थी कि किसी तरह एक बार उन्हें करीब से देख सकूं। मेरे लिए वे कलाकार थीं, नाचने और गाना गाने वाली। उधर मंडप पर दीदी की शादी के रस्म पूरे हो रहे थे और इधर शामियाने के अंदर की दुनिया को करीब से देखने का मोह मुझे छोड़ नहीं रही थी। मैंने घर के तमाम बच्चों को साथ लेकर, पीछे से शामियाने की सीवन उघेड़ कर आंख भर जगह बनाई और सब दिखने लगा।वो बेहद सुंदर थी। गोरी चिट्टी, सजी धजी, हिरोइन जैसी, लंहगे चोली में। बारी बारी से सब देखते। मुझे गुस्सा आ रहा था कि हमें क्यो geetashree
15 Comments
मैं भी मुजफ्फरपुर की हूँ और इनसबों को काफी अच्छी तरह से जानती हूँ। जानकीबल्लभशास्त्री जी के यहाँ भी अपने बाबूजी के साथ गई हूँ। आज गीताश्री जी की किताब के अंश पढ़के अपना सा लगा। धन्यवाद प्रभातजी।
rochak
good…
Very Good. Wants to read the book.
सम्मानिया गीता श्री जी !
प्रणाम !
आप को पुस्तक कि बहुत बहुत बधाई ! बेहद मार्मिक चित्र खीचा है . मन को स्पर्श कटा है कथानक !जो पाठकों को अपनी और रचना अपनी और खीचे वो रचना सफल हो जाती है जिस में '' औरत कि बोली '' अपने आप में सफल है ,पुस्तक आम जन तक पहुचे . पुंह बधाई
सादर
वैसे काफ़ी रोचक शैली में लिखे जाने के बाद मुझे इसमें अतिरंजना की बु आ रही है…मैं इस इलाके का हूं और इन बदनाम गलियों के किस्से भी सुने हैं. किसी ने बेला के गज़रे के बारे नहीं बताया फ़िल्मों में अलबत्ता महंगे लिबास में नाचते हुए तवायफ़ों के कद्रदानों को देखा.
यदि फ़िल्म का इस लेख पर प्रभाव है तो यह भी बताया जाना चाहिये कि तवायफ़ों की कई श्रेणियां होती थी. सभी तवायफ़ें देह व्यापार नहीं करती थी. खासकर मुज़रा करने वाली औरतें.
ये पढ़कर अब किताब पढ़ने की प्रबल अभिलाषा है…कैसे प्राप्त हो सकती है मुझे कनाडा में??
औरत के सच (समाज में स्थिति ) को ज़ाहिर करता हुआ एक औरत का बयान…
चुपके-चुपके हम लोग देख रहे थे वो सब। हमारे लिए वो सब बेहद नया था, लेकिन बड़ों की नजर में यही गुनाह था। कोई देखता तो हमारी पिटाई तय थी। मेरे साथ इस 'चोरी' में शामिल चचेरी बहनो ने कई बार कहा भी कि चल अब चलते हैं..और वो चली भी गईं। मैं अकेली नाच में डूबी सोचती रही कि अंदर लड़कियां नाच रही हैं तो हमें देखने से क्यो मना कर रहे हैं। तभी मुझे तलाशती हुई चाची आई। एक थप्पड़ जमाया और घसीटती हुई ले चलीं। वह बड़बड़ा रही थीं…"अगर चाचा ने देख लिया तो मार डालेंगे। चल अंदर शादी हो रही है, वहां बैठ…।" उस महाआंनद से वंचित होने से चिढी हुई मैंने पूछ ही लिया…"क्यों, लड़कियां ही तो नाच रही हैं, मैं क्य़ो नहीं देख सकती?" " वे लड़कियां नहीं, रंडी हैं,रंडी…समझी। रंडी की नाच हमारे यहां औरतें नहीं देखती। ये पुरुषों की महफिल है, जहां इनका नाच होता है। देखा है किसी और को,है कोई औरत वहां..सारे मरद हैं-" चाची उत्तेजना से हांफ रही थी। मेरे दिल का पुरजा पुरजा हो गया था। मैं मंडप के पास बैठी सोचती रही। फिर अपने हमउम्र चचेरे भाई से जानकारी बटोरी तो पता चला वे मुजफ्फरपुर से आई हैं, जहां एक पूरा मोहल्ला उन्हीं का है। इनके कोठे होते हैं, वे शादियों में नाचती गाती है, यही उनका धंधा है…आदि आदि….
i know a bar girl through someone. whe never regretted what she was doing. she was married to a rajpoot. then she left her husband because she wanted to save her money. now her daughter is doing the same work. while she was educated and had options to take up some other profession. however i agree its dahik shram. very well written. badhai.
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stree sharir mein purush mann ki khoj mahsus karti geeta shree, nachne-gaanewali baiyon ko unki taqlifon ke sath pribhashit karti 'aourat ki boli'sadharann bhasha mein sadharann prayas hai…
गीता जी जिस अनुभव से बचपन में वंचित रही, मैंने पुरुष होने के कारण उसे देखा है… लेकिन नाच के बाद उनकी लगभग दयनीय हालत देख कर मन उचट जाता था… एक बार कोठे पर भी गया, एक साजिन्दे के साथ… बहुत पीड़ा हुई उनकी हालत देख कर…तब 'तवायफ' कविता लिखी… गीता जी ने जिस परिश्रम से यह किताब लिखी है, वोह इस भूमिका से ही पता चलता है… ऐसी कई पुस्तकें पढ़ीं हैं, लेकिन हर किताब के बाद लगता है… पुरुष ने स्त्री को किस नरक में दाल रखा है… गीता जी को बधाई.. और आभार प्रभात जी का…
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