अनुराग अन्वेषी की कविताओं से हाल में ही परिचय हुआ और यह सच है कि उनकी कविताओं पर भरोसा बढ़ता जा रहा है. आज पढ़ते हैं भरोसे को लेकर उनकी कुछ कविताएँ- प्रभात रंजन
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भरोसा-1
घात-प्रतिघात के
एक से बढ़कर एक तूफान देखे हैं मैंने
पर हरबार
थोड़ा सा हिलता-डुलता
और फिर संभलता हुआ
टिका रह गया हूं
पूरी मजबूती के साथ
शायद इसकी एक बड़ी वजह
वह भरोसा है
जो अक्सर ऐसे तूफानों के बीच भी
दबे पांव ही सही
पर बिलकुल सधे कदमों के साथ
मेरे करीब आ जाता है
और हौले से मुझमें समा जाता है।
भरोसा-2
जो कहते हैं
कि खुद के अलावा
किसी और पर नहीं कर सकते भरोसा
दरअसल वह खुद की निगाह में
भरोसे के लायक नहीं होते।
भरोसा-3
यह पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं
कि आशंकाएं जहां खत्म होती हैं
वहीं से शुरू होती है
भरोसे की दुनिया
भरोसा-4
जो मानते हैं
कि दूसरों पर भरोसा जताना
खुद पर से भरोसे का उठ जाना होता है
या फिर अपने भरोसे की मजबूती को और बढ़ाने का
एक शातिराना चाल होता है
ठीक से टटोलें उनकी जिंदगी
वहां उपलब्धि कम, ज्यादा मलाल होता है
भरोसा-5
खुद पर भरोसा करना
अपने आप में ताकत पैदा करना होता है
जो आपको किसी भी बंद दरवाजे से टकराने की हिम्मत देता है
पर जब आप
दूसरों का भी भरोसा
साथ लेकर चलने लगते हैं
तो बंद दरवाजों से टकराने की जरूर ही नहीं पड़ती
वे आपको पहले से ही खुले मिलते हैं
बाहें पसार कर स्वागत करते हुए।
भरोसा-6
जो सिर्फ इस नाते खुद पर करते हैं भरोसा
कि पछाड़ देना है दूसरों को
वे कभी नहीं हो पाते
दूसरों के भरोसे के काबिल।
भरोसा-7
आप कितनों पर करते हैं भरोसा
इससे ज्यादा ध्यान देने की बात यह है
कि कितने लोग आप पर करते हैं भरोसा
भरोसा-8
अपने आसपास कई बार टूटते देखा है
एक-दूसरे का भरोसा
और हर बार यही महसूस किया
कि टूटा सिर्फ भरोसा नहीं, लोग भी टूटे
भरोसा-9
जिस वक्त आप किसी एक पर
जताते हैं खूब भरोसा
उसी वक्त कई-कई लोग एक साथ
आपकी निगाह में
थोड़े संदिग्ध दिखने लग जाते हैं
पर क्या आपको पता है
कि ये संदिग्ध आपका कुछ बिगाड़ पाएंगे ही – इसमें बड़ा संदेह है
पर जो होते हैं सबसे भरोसेमंद
वह पूरे यकीन के साथ जब चाहें जैसे चाहें
आपकी बखिया उधेड़ सकते हैं
जो आपकी निगाह में संदिग्ध हैं,
कम से कम उनकी निगाह में तो
आपको हमेशा के लिए
पल भर में संदिग्ध बना सकते हैं।