कुछ लेखक परम्परा निर्वाह करते हुए लिखते हैं, कुछ अपनी परम्परा बनाने के लिए. रवि बुले ऐसे ही लेखक हैं.…

शीर्षक से कुछ और मत समझ लीजियेगा. असल में यह एक मारक व्यंग्य लेख है. संजीव कुमार को आलोचक, लेखक…