साहित्य का जीवन में समावेश सांस्कृतिक मूल्य है। इसमें गीत-कविता बहुधा आते हैं। यह पुस्तक अंश लगभग छ: साल पुरानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। कथा की नायिका निशा वर्मा के जन्मदिन के उपलक्ष्य मेँ प्रचण्ड प्रवीर की पुस्तक कल की बात – गान्धार से पाठकोँ के लिए विशेष प्रस्तुति–
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कल की बात है। जैसे ही मैँने दफ़्तर मेँ कदम रखा, मेरी नज़र जमीन पर गिरे चमकते-झिलमिलाते झुमके पर जा पड़ी। मैँने झुक कर उसे उठा कर घुमा कर देखा। ‘सोने मेँ जड़े रत्न कहीँ हीरे-मोती न हो!’ मैँने सोचा। ‘क्या करूँ? दफ़्तर मेँ ज़मा कर दूँ? किसी नीयत बुरी होगी तो गायब कर देगा। जिसका झुमका इतना सुन्दर है, वह खुद कितना खूबसूरत होगा?’ इसी उधेड़बुन मेँ मैँने झुमके को अपनी जेब मेँ रख लिया। अगर यह कीमती हुआ तो ज़रूर ढूँढा जाएगा, तब इसके असली मालकिन को सौँप दिया जाएगा। ऐसा मैँने मन ही मन तय किया।
तभी पारो उधर से आती हुयी दिखायी दी। ”नाश्ता करने कैफेटेरिया चलोगे?’’ अब पारो की बात कैसी टाली जा सकती थी। ऊपर दसवीँ मंजिल पर बने कैफेटेरिया मेँ जब पारो कॉफी पी रही थी और मैँने उबले चने का सलाद खा रहा था, मेरी नज़र अनिन्द्य सुन्दरी निशा वर्मा पर जा पड़ी। वह खुशबुओँ का झोँका लिये ज़ुल्फ़े बिखराए जब पास से गुज़री, मेरे मुँह से बरबस निकला, ”झुमका गिरा रे, बरेली के बाज़ार मेँ…।’’ पारो चिढ़ कर मुझे खरी-खरी सुनाने लगी, ”उम्र बीत रही है। अभी भी तुम्हारी आदत सुधरती नहीँ है। शरम नहीँ आती ऐसे गाने गाते हुए। वो सुन लेती तो तुम्हारे साथ मुझे भी पीट देती। ये गाना-वाना गाना है तो मेरे साथ न बैठा करो।’’
“
दिल से शौक़-ए-रुख़-ए-निकू न गया
झाँकना-ताकना कभू न गया
सब गए होश ओ सब्र व ताब ओ तवाँ
लेकिन ऐ दाग़ दिल से तू न गया
“
‘ ‘सॉरी पारो। तुम गुस्सा न करो। दिल से शौक़-ए-रुख़-ए-निकू न गया, झाँकना-ताकना कभू न गया। सब गए होश ओ सब्र व ताब ओ तवाँ, लेकिन ऐ दाग़ दिल से तू न गया।’’ १ मेरे कहे पर पारो बोली, ”समझ नहीँ आता। एक तरफ़ झाँकना-ताकना चालू है और दूसरी तरफ़ दाग़-ए-दिल का अफसोस भी है। नम्बरी झूठे आदमी हो तुम।’’ मैँने मीर की तरफ़दारी मेँ कहा, ”मैँने नहीँ, ‘मीर तक़ी मीर’ ने कहा था। मैँ तो केवल उनका शागिर्द हूँ।’’ पारो ने कहा, ”तुम शागिर्द नहीँ जमूरे हो।’’ कह कर खुद ही पारो हँसने लगी। तभी बमबम भाई हमारी टेबल के पास आ कर बोले, ”और जमूरे भाई।’’ मैँ मोटे-थुलथुल बमबम भाई को जवाब देता भी तो क्या देता? इतना ही कहा, ”मैँ जमूरा और तुम जादूगर!’’ बमबम भाई ने कहा, ”अरे जमूरे, तुझे किसने बताया कि मैँ जादूगर हूँ?’’ पारो ने उसकी ओर देख कर ताना देते हुए कहा, ”सच मेँ?’
बमबम भाई बोले, ”जी हाँ। सौ फीसदी सच बात है। मैँ रूमाल मेँ आपकी कॉफी गुम कर दूँ। आपके बैग से पैसे निकाल मेज पर रख दूँ। अब यहाँ मौका मिलता नहीँ, वरना।’’ पारो ने उबासी ले कर कहा, ”जाओ, जाओ। ऐसे बहुतेरे हैँ हाँकने वाले। एक तो मेरे सामने बैठा है।’’ बमबम ने जोश मेँ कहा, ”आप परमिशन दिलवा दीजिए। आज तो वैसे भी मकर संक्रान्ति है। आधे लोग छुट्टी पर हैँ। आफिस मेँ दस मिनट मेँ जादू दिखा दूँगा। चीजेँ गायब कर देना और गायब चीजेँ पेश कर देना, मेरी खासियत है।’’
पारो ने कहा, ”ये कौन सी बड़ी बात है। बॉस से बात कर के परमिशन दिलवा देती हूँ। चार सौ लोग के सामने चार जादू दिखाओ तो मैँ कुछ मानूँ कि तुम भी कुछ हो!’’ बमबम भाई ने पारो की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा, ”लगी शर्त।’’ पारो ने मुस्कुरा कर दोनोँ हाथ जोड़ कर नमस्कार किया।
पारो की बात बॉस कभी नहीँ टालते। तय हुआ कि दस बजे बमबम भाई दफ़्तर के सभी लोग के सामने अपना जादू दिखाएँगे। वैसे भी हर दूसरे दिन मन बहलाने के लिए पन्द्रह मिनट की कोई न कोई रोचक गतिविधियाँ होती रहती हैँ, इसलिए कोई कठिनाई नहीँ हुई। मैँने अपनी सीट पर आकर देखा कि सारे दफ़्तर वालों को निशा वर्मा का ईमेल आया हुआ था कि उसका झुमका खो गया है। किसी को मिले तो उसके फोन पर सम्पर्क कर सकते हैँ।’ इधर बमबम भाई अपने जादू की तैयारी मेँ जुटे हुए थे।
दस बजने मेँ दस मिनट बाकी थे तब बमबम भाई ने पास आ कर कहा, ”जमूरे।’’ मैँने कहा, ”जी सरकार!’’ बमबम भाई मुस्कुरा कर बोले, ”भोले, प्यारे, दुलारे जमूरे! एक काम कर। कुछ अपने लोग फिट कर ले। किसी का कुछ, किसी का कुछ ले कर आ। बाकी मैँने भी अपनी गोटियाँ बिठा रखी है। मैँ जानता हूँ कि तू पारो का दोस्त है, पर हम दोनोँ हैँ मर्द जात। इस लिहाज से तुझे मेरी मदद करनी होगी। हैँ न सही बात।’’ मैँने सिर हिला कर कहा, ”जी उस्ताद!’’
दस बजते के साथ ही बमबम भाई माइक ले कर तैयार हो गये। धीरे-धीरे अपनी कुर्सियाँ छोड़ कर लोग पास जमा होना शुरु हुए। बमबम भाई ने बोलना शुरु किया, ”मेहरबान, कदरदान, दिल थाम के बैठिए, कुछ ही देर मेँ शुरु होने वाला है बमबम का काला जादू। मेहरबान, कदरदान, आपको याद दिलाया जा रहा है कि हमारे हिन्दुस्तान मेँ चोरी, जादूगरी, हवाबाजी, कलाबाजी, सभी चौँसठ कलाओं मेँ आते हैँ। क्यूँ जमूरे? ठीक कहा मैँने?’’ मैँने सिर हिला कर हामी भरी, ”जी उस्ताद!’’ भीड़ से हँसने की आवाज़ आयी। हँसोड़ बमबम भाई ने कहा, ”बिना गाए समाँ नहीँ बँधता। जो हँस रहे हैँ वो सावधान हो जाएँ…’’ यह कह कर बमबम भाई गुनगुना लगे, ‘‘देगा ऐसा मन्तर मार, आखिर होगी तेरी हार, जादूनगरी से आया है कोई जादूगर।’’ २
बमबम भाई ने आवाज़ लगायी, ”पङ्कज कालरा! क्या आपकी जेब मेँ काला पर्स है?’’ पङ्कज कालरा ने जेब टटोल कर कहा, ”हाँ, इसमेँ दो सौ का नोट है।’’ बमबम भाई ने कहा, ”सब को दिखा दो। अच्छे से देखा जाय, यह दो सौ का नया-नया एकदम करारा नोट है। अब पङ्कज भाई अपनी जेब मेँ पर्स वापस रख लीजिए।’’ उसके पर्स वापस रखते ही बमबम भाई ने जोर से चिल्ला-चिल्ला कर बड़े बेसुरे स्वर मेँ कहा, ”ओ निगाहेँ मस्ताना, देख समाँ है सुहाना। तीर दिल पे चला के… हाँ .. जरा.. झुक जाना। ’’ ३
बमबम भाई के बेसुरे अन्दाज़ को सुन कर सब हँसने लगे। तभी बमबम भाई ने तेज़ आवाज़ मेँ पूछा, ”पङ्कज भाई अब आपकी जेब मेँ पर्स है?’’ पङ्कज कालरा ने चौँक कर कहा, ”नहीँ, नहीँ। कहाँ गया?’’ बमबम भाई के गोल-मटोल चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी। उन्होँने फिर से बड़ी ही बेदर्दी से गाया, ”तुझको पुकारे मेरा प्यार, आ जा मैँ तो मिटा हूँ तेरी चाह मेँ..। ४ पङ्कज भाई, शिद्दत से पुकारिये मेरे साथ।’’ दोनोँ ने मिल कर गाया, ”तुझको पुकारे मेरा प्यार।’’ बमबम भाई ने कहा, ”उमेश सर, आपकी पतलून की दाहिनी जेब मेँ क्या है?’’ उमेश सर जो अगली पङ्क्ति मेँ थे, उन्होँने जेब टटोल कर कहा, ”ये तो पङ्कज कालरा का पर्स है।’’ बमबम भाई ने मुस्कुरा कर कहा, ”खोल के दिखाइए सब को।’’ सबने देखा कि उमेश ने पर्स मेँ दो सौ का करारा नोट निकाला। सब चौँक गए।
कुछ लड़कियोँ ने शोर मचाना शुरू किया ये सब आपसी मिलीभगत है। बमबम भाई उनसे बोले, ”अच्छा प्रीति चौधरी जी, आप इधर आइए।’’ सब के सामने शरमाते हुए प्रीति जी चलती हुई आयीँ। बमबम भाई ने माइक पर तेज़ आवाज़ मेँ कहा, ”प्रीति जी को हमारी तरफ़ से यह चॉकलेट नज़राने के तौर पर।’’ प्रीति जी ने चॉकलेट ले कर कहा, ”बमबम जी, धन्यवाद। पर मैँ तो चॉकलेट खाती ही नहीँ।’’ बमबम भाई ने कहा, ”प्रीति जी को चॉकलेट पसन्द नहीँ तो इसे किसी और तक पहुँचा देते हैँ। प्रीति जी दोनोँ हाथोँ को बन्द कर के ज़रा तीन चक्कर तो लीजिए।’’ प्रीति जी जैसे ही घूमने लगी, बमबम भाई ने बेसुरे आवाज़ मेँ कहा, “ओ निगाहेँ मस्ताना, देख समाँ है सुहाना। तीर दिल पे चला के… हाँ .. जरा.. झुक जाना।’’
प्रीति जी ने तीन चक्कर के बाद अपनी मुट्ठियाँ खोलीँ और उनके हाथ मेँ कुछ नहीँ था। यह देख कर वन्दना जी ने कहा, ”अरे कहाँ गया? वापस लाओ।’’ बमबम भाई ने कहा, ”एकदम आ जाएगा। बस आपको मेरे साथ गाना पड़ेगा।’’ वन्दना जी ने कहा, ”नहीँ नहीँ।’’ मैँने कहा, ”अरे गा कर तो देखिए।’’ वन्दना जी ने कुछ शरमाते हुए गाया, ”तुझको पुकारे मेरा प्यार।’’
बमबम भाई ने अपना बेसुरा सुर मिलाया, ”तुझको पुकारे मेरा प्यार…।’’ बमबम भाई ने फिर कहा, ”वन्दना जी ज़रा अपनी पॉकेट देखिए।’’ वन्दना जी ने अपनी जेब टटोली और फिर चौँक कर कहा, ”अरे, यह तो प्रीति जी वाली चॉकलेट है!”
यह देख कर मौजूद लोग ने तालियाँ बजायी। तभी भीड़ मेँ निकल कर निशा वर्मा सामने आयी, जैसे काली घटा से सावन का चाँद एकदम निकल आता है। उसने चिन्तित स्वर मेँ कहा, ”बमबम जी, मेरा हीरो जड़ा झुमका खो गया है। आप उसको वापस ला देँ तो कोई बात है!’ यह सुन कर बमबम भाई ने कहा, ”एकदम ला दूँगा, पर आपको गाना गाना पड़ेगा।’’ निशा जी ने चौँक कर कहा, ”कौन-सा?’’ बमबम भाई ने बेधड़क बोला, ”झुमका गिरा रे! बरेली के बाज़ार मेँ…”!’’ यह सुन कर निशा जी सकपका गयी। लड़कियाँ शोर मचाने लगी, ”ये गलत शर्त है।’’ बमबम भाई ने कहा, ”जादू के अपने तरीके होते हैँ। अब मेरा समय खत्म हो रहा है।’’
इधर पारो ने निशा वर्मा को जोश दिलाया, ”अरे निशा तुम गाना गा दो। बमबम का जादू नहीँ चलने वाला। और मान लो अगर चल जाए तो खोयी हुई चीज़ वापस मिल जाएगी।’’ कुछ लोग निशा को समझाने मेँ लगे थे। बमबम भाई मेरे पास आ कर चुपके से बोले, ”जमूरे, अब तो फँस गये!’’ मैँने कहा, ”ऐसे कैसे?’’ बमबम भाई ने हैरानी से पूछा,” कोई रास्ता है क्या?’’ मैँने सुझाया, ”बस आप अपनी रौ मेँ रहिए। ऊपर वाले का साथ रहा तो अच्छा ही होगा।’’
इधर शर्म से लाल हुई निशा वर्मा ने हार कर कहा, ”अच्छा ठीक है। मैँ गाती हूँ।’’ बमबम भाई ने कहा, ”ऐसे नहीँ। मेरे साथ गाइए।’’ बमबम भाई ने फिर माइक पर सबके सामने चिल्ला कर पूछा, ”फिर क्या हुआ?’’
निशा वर्मा ने हिचकिचाते हुए गाया, ”फिर… फिर झुमका गिरा रे, मैँ क्या बोलूँ बेकार मेँ, झुमका गिरा रे! बरेली के बाज़ार मेँ झुमका गिरा रे!’ ५
बमबम भाई ने बेसुरे आवाज़ मेँ गाया, ”उसको बुला दूँ, सामने ला दूँ, क्या मुझे दोगी जो तुमसे मिला दूँ?’’ ६
अब निशा वर्मा ने मुस्कुरा कर मीठी आवाज़ मेँ गाया, ”जो भी मेरा पास था वो सब ले गया, जाते-जाते मीठा-मीठा ग़म दे गया।’’ ६
बमबम भाई ने सुर बदल कर गाया, ”शिना शिनाकी बूबला बू, शिना शिनाकी बूबला बू।’’ ७
तब मैँने भी उसका साथ दिया, ”शिन शिनाकी बूबला बू..।’’
बमबम भाई ने हुकुम किया, ”जमूरे अपनी मुट्ठी खोल!’’
मैँने एकदम धीरे से अपनी मुट्ठियाँ खोली। सबकी आँखें फटी की फटी रह गयी जब सबने मेरे हथेलियोँ पर चमकता हीरे-मोती जड़ा झुमका देखा।
मिला है किसी का झुमका, ठण्डे-ठण्डे हरे-हरे नीम तले ८
ओ सच्चे मोती वाला झुमका, ठण्डे-ठण्डे हरे-हरे नीम तले
सुनो क्या कहता है झुमका, ठण्डे-ठण्डे हरे-हरे नीम तले
मिला है किसी का झुमका!
ये थी कल की बात!
दिनांक: १५/०१/२०१९
सन्दर्भ :
१. ‘मीर तक़ी मीर’ (१७२३ -१८१०) की ग़ज़ल से
२. गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी, फ़िल्म : सी. आई. डी. (१९५६)
३. गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी, फ़िल्म : पेईङ् गेस्ट (१९५७)
४. गीतकार : साहिर लुधियानवी, फ़िल्म : नीलकमल (१९६८)
५. गीतकार : राजा मेहदी अली खान, फ़िल्म : मेरा साया (१९६६)
६. गीतकार : क़मर जलालाबादी, फ़िल्म : फागुन (१९५८)
७. गीतकार : प्यारेलाल संतोषी, फ़िल्म : शिन शिनाकी बूबला बू (१९५२)
८. गीतकार : शैलेन्द्र, फ़िल्म : परख (१९६०)
प्रचण्ड प्रवीर की लघुकथा शृङ्खला ‘कल की बात‘ एक विशिष्ट विधा में है, जिसके हर अंक में ठीक पिछले दिन की घटनाओं का मनोरंजक वर्णन है। आपबीती शैली में लिखी गयी ये कहानियाँ कभी गल्प, कभी हास्य, कभी उदासी को छूती हुयी आज के दौर की साक्षी है। कहानीकार, उसके खुशमिजाज सहकर्मी, आस-पड़ोस में रहने वाले चुलबुले बच्चे, भारतीय समाज में रचे-बसे गीत और कविताएँ पारम्परिक मूल्यों के साथ विविधता में बने रहते हैं। कई बार छोटी-छोटी बातों में गहरी बात छुपी होती है, ऐसी ही है कल की बात ! इसे पढ़ कर आप भी कह उठेंगे कि यह मेरी भी कहानी है। कल की बात हमारी ही तो बात है!
सेतु प्रकाशन से प्रकाशित इस शृङ्खला की तीन पुस्तकेँ नीचे दिए गए लिङ्क से खरीदी जा सकती हैँ –