मार्कस ऑरेलियस की प्रसिद्ध किताब मेडिटेशंस का हिन्दी अनुवाद आया है पेंगुइन स्वदेश से। पहली शताब्दी में वे रोम के सम्राट बने। सम्राट बनने के बाद उन्होंने प्लेग-महामारी से लोगों को मरते देखा, युद्ध में मरते देखा, मित्रों-परिजनों की मृत्यु देखी और यह सब देखकर वे दर्शन शास्त्र की दिशा में मुड़ गये। वे स्टोइक दार्शनिक एपिक्टेटस के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। और अपने विचारों को लिखने लगे।
प्राचीन दर्शन के सभी स्कूलों में से, स्टोइज़्म ने पूरी तरह से व्यवस्थित होने का सबसे बड़ा दावा किया। स्टोइक के दृष्टिकोण में, दर्शन सद्गुण का अभ्यास है, और सद्गुण, जिसका उच्चतम रूप उपयोगिता है, आम तौर पर तर्क , अद्वैत भौतिकी और प्राकृतिक नैतिकता के आदर्शों से निर्मित होता है। ये तीन आदर्श सद्गुण का गठन करते हैं जो ‘एक अच्छी तरह से तर्कपूर्ण जीवन जीने’ के लिए आवश्यक है, क्योंकि वे सभी एक लोगो, या दार्शनिक प्रवचन का हिस्सा हैं, जिसमें मन का खुद के साथ तर्कसंगत संवाद शामिल है। उनमें से, स्टोइक ने नैतिकता को मानव ज्ञान के मुख्य केंद्र के रूप में महत्व दिया, हालांकि उनके तार्किक सिद्धांत बाद के दार्शनिकों के लिए अधिक रुचि के थे।
स्टोइक दर्शन विनाशकारी भावनाओं पर काबू पाने के साधन के रूप में आत्म-नियंत्रण के विकास को सिखाता है ; दर्शनशास्त्र का मानना है कि एक स्पष्ट और निष्पक्ष विचारक बनने से व्यक्ति सार्वभौमिक कारण ( लोगो ) को समझ सकता है। स्टोइज़्म का प्राथमिक पहलू व्यक्ति की नैतिक और नैतिक भलाई में सुधार करना शामिल है: “सद्गुण प्रकृति के साथ समझौते में इच्छाशक्ति में निहित है”। यह सिद्धांत पारस्परिक संबंधों के दायरे पर भी लागू होता है; “क्रोध, ईर्ष्या और जलन से मुक्त होना”, और यहां तक कि दासों को “अन्य पुरुषों के बराबर स्वीकार करना, क्योंकि सभी पुरुष समान रूप से प्रकृति के उत्पाद हैं”।
मार्कस ऑरेलियस एक तरह से उनके जीवन दर्शन की तरह है। वे युद्धों, यात्राओं के अनुभवों को दर्ज करते गये। जो बाद में किताब के रूप में आई। यह किताब दुनिया की सभी अधिक बिकने वाली किताबों में है। सूक्तियों के रूप में लिखे गये उनके कुछ विचार प्रस्तुत हैं:
‘जैसे शल्यचिकित्सक के पास आपात-स्थिति से निपटने के लिए चाकू और तरह-तरह के औज़ार होते हैं उसी तरह आपको दिव्य और मानवीय स्थितियों-परिस्थितियों को समझने के लिए और इन दोनों के बीच के संबंध की निशानी के तौर पर, इन सभी कामों को पूरा करने के लिएआवश्यक सिद्धांतों का उपयोग करना चाहिए। इसकी उपेक्षा करके आप देवताओं और मनुष्यों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से मुकर रहे होंगे।‘
—————————
‘मनुष्य वह सब नहीं समझते जो शब्दों के माध्यम से समझाया गया है- अर्थात् चोरी करना, लोगों के मन में भय या संदेह पैदा करना, मोल लेना, आराम करना, देखना कि क्या करना ज़रूरी है, क्योंकि इसे देखने के लिए शारीरिक आँख की नहीं बल्कि एक अलग प्रकार की दृष्टि की आवश्यकता होती है।‘