राजनंदिनी रावत की कुछ कविताएँ

राजनंदिनी रावत राजस्थान के ब्यावर में रहती हैं। खूब पढ़ती हैं और थोड़ा बहुत लिखती हैं। आज पढ़िए उनकी कविताएँ- मॉडरेटर

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कंकाल हो जाना कला है
जीवन की मृत्यु शैय्या पर लेटे इच्छामृत्यु का वरदान नहीं मिलता
अश्वत्थामा हतो हतः
अर्द्धवाक्य भ्रम के लिए गढ़े जाते हैं
अपना उद्धार स्वयं करना होता है
मुक्ति के रास्ते नहीं मिलते
भक्ति का भाव अर्थहीन लगता है
मन की कोई मनुस्मृति नहीं होती
जीवन का गद्य गीता नहीं होता
सब कुछ भ्रम है
हमें सच में एक दूसरी दुनिया की आवश्यकता है।
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शब्दों के दुनिया में
अर्थों का कोई वजूद नहीं है

कलम की स्याही और बहता रक्त एक है

मनुष्य जीवन माटी का घड़ा नहीं उसमें रखा पानी है
जो कभी लाल हो जाता है
कभी नीला पड़ जाता है

मुक्ति के मार्ग में बुद्धि का कोई प्रयोग नहीं है
सब बुद्ध है
कोई भी बौद्ध नहीं।
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संभोग आत्म-खोज है
मैंने उससे कहा
वह दो स्तन एक योनि के बीच रहा
मैं आत्म-खोज से मनोविज्ञान की ओर बढ़ गई
वह चला गया
मैं लेटी थी
मैं शब्द शून्य थी
भाव शून्य थी
मैं दो स्तन थी
मैं एक योनि थी

मैं स्त्री थी!
मैं मनुष्य थी!
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मैं जनती रहूंगी बच्चे
हो जाऊंगी बूढ़ी
नहीं मांगूंगी संभोग
नहीं मांगूंगी प्रेम
नहीं मांगूंगी स्वतंत्रता!
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बराबर चिन्ह का प्रयोग जब मैंने स्कूल में सीखा था
तब क्यों नहीं लिखा था
वूमेन = मेन ।
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मैं दो जोड़ी स्तन और एक योनि हूँ
मैं मस्तिष्क हीन हूँ
मेरे उद्धार के लिए देव पुरुष जन्म लेते हैं
पर्दा मेरा सुरक्षा कवच है
ऑनर के लिए की गई मेरी हत्या वध है
यह संसार मेरे लिए यातनागृह नहीं स्वर्ग है !
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ना ही रूप-सौंदर्य में कमी थी
ना वाक-चातुर्य में
मैं चाहती
तो किसी का भी हाथ थाम सकती थी
लेकिन
मैंने संघर्ष चुना
स्वाभिमान चुना
जीवन को तपस्या बनाया !
लेकिन तुम मेरे इन गुणों को कभी देख नहीं पाओगे
पुरुष प्रधान समाज में
स्त्री का स्वाभिमानी होना
उद्ददंडता की श्रेणी में आता है
और मेरा स्वाभिमानी होना
तुम्हें अखरता है
अपमान लगता है
मैं तुम्हारी चेतना के द्वार नहीं खोल सकती
इसका प्रयत्न तुम्हारे हाथों में हैं
ना ही मैं स्वयं
कुछ सिद्ध करना चाहती हूं
ये समय साक्षी है
मेरी तपस्या का
मेरे प्रेम का
अगर कभी कोई मुझे पढ़ कर
ये महसूस करें कि
वो दुनिया के महान विचारों को पढ़ रहा है
तो शायद
मेरा जीवन सफल हो जाए।
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कोई बॉयफ्रेंड नहीं हैं तुम्हारा?
अनगिनत बार पूछा गया
उससे ये सवाल
और हर बार की तरह इस बार भी उसने ना कहा
ना सुनने वाले को हैरानी हुई
और उसके ना कहने पर भी यकीन नहीं आया
वो कैसे सिंगल हो सकती हैं?
जब लिव इन चरम सीमा पर हैं
और वो बेहद खूबसूरत हैं
बेहद खुशमिजाज भी हैं
यकीनन झूठ कह रही होगी
खुद को सती सावित्री बताना चाह रही होगी
कॉलेज के लड़के
पहले दिन से
उस पर नजर रखे हुए हैं
वो मोबाइल यूज़ नहीं करती
ना ही लड़कों से कभी उसे बातें करते हुए देखा गया
जैसे सारी लड़कियों को करतें हुए देखा गया
वो किताबों में उलझी रहती हैं
अपने में रहती हैं
कॉलेज का वो लड़का
जिस पर मरती हैं
कई लड़कियाँ
उसे वो किताबी लड़की पसन्द आ गई हैं
जब ऐसे लड़के की तरफ कोई लड़की ध्यान नहीं देती
जिस पर सारी लड़कियाँ मर मिट चुकी हो
तो वो लड़की उस लड़के का आकर्षण केंद्र बन जाती हैं
वो उसे सबसे हसीन लगती हैं
अलग लगती हैं
ऐसी लड़की को अपनी ऒर करना
लड़के को उपलब्धि लगती हैं
ऐसा पहली बार नहीं हुआ हैं!
संसार की हर स्त्री जो पुरुषों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहती थी
वो हमेशा आकर्षण का केंद्र बनी
कॉलेज का वो लड़का
पूरी कोशिश करता हैं
उसके करीब जाने की
मगर वो नहीं देखती
उसकी तरफ
फिर कोई और लड़का
उस लड़की से दोस्ती का हाथ बढ़ाता हैं
हम दोस्त ही रहेंगे…
कहकर
लड़की हाथ मिला लेती हैं
लड़की को हाथ मिलता देख
दूर से वो लड़का स्तब्ध रह जाता हैं
और दूसरे उसके साथी
हँसते हैं
और कहते हैं
”ये बाजी मार गया आखिर…
भला इस जमाने में कोई लड़की वर्जिन कैसे रह सकती हैं !”
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सिगरेट-शराब पीते समय
दोस्तों ने कहा
कुछ नहीं होता
झूठ बोलते
मर्यादाएँ लाँघते
बेईमानी करते समय
आया था
पाप-पुण्य
सही-गलत का ध्यान
लेकिन
शनैः-शनैः
सब सहज होता गया
विरोध और विरोधाभास समाप्त हो चुके थे
जीवन निजी,सावर्जनिक और गुप्त
में बँट चुका था
अनन्तः उस बिंदु पर थी
जहाँ सही-गलत पीछे छूट गए थे
मैं अपने बारे में
क्या लिखती
क्या बताती,क्या छिपाती
चाहती तो सब किया धरा
समय पर डाल देती
पर कैसे कहती
एक कलयुग घट रहा है बाहर
और एक मेरे भीतर भी।
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वो ज्यादा कामुक हो जाती है
जब टूटती है
वो ज्यादा परिपक्व हो जाती है
जब सिगरेट पीती है
वो ज्यादा खतरनाक हो जाती है
जब अपनी जिम्मेदारी खुद लेती है
स्त्री स्वयं से प्रतिशोध लेती है
जब छली जाती है
अपनी कोमलता से
अपनी करुणा से
अपने स्त्रीत्व से
एक बैखोफ चलती स्त्री
एक सम्पूर्ण क्रांति होती है।
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प्रसव की पीड़ा में जब कराहूँगी
भूल जाऊँगी
सदियों की घुटन
दूँगी जन्म एक जीव को
बचा लूँगी
पूरा ब्रह्माण्ड।

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