जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

सल्तनतकालीन किरदार मलिक काफ़ूर पर युगल जोशी का उपन्यास आया है ‘अग्निकाल’। पेंगुइन से प्रकाशित इस उपन्यास की समीक्षा लिखी है डॉ मेहेर वान ने। आप भी पढ़ सकते हैं-

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इतिहास तथ्यों और आंकड़ों का एक संकलन मात्र नहीं हो सकता। इतिहास के साथ एक बड़ी चुनौती यह भी है कि इसे विजेता-पक्ष ही मुख्य रूप से लिखता आया है या इतिहास का वही पक्ष प्रचलन में आ पाता है जिसके साथ सत्ता हो। इतिहास के विशेषज्ञ अक्सर इतिहास को एक दिशा में जाने वाली संकरी पगडंडी की तरह पेश करते आए हैं। इसके विपरीत ऐतिहासिक घटनाएं हमेशा तमाम संभावित दृष्टिकोणों से समलोचित और व्याख्यायित होने के लिए प्रस्तुत होती हैं। चूंकि अक्सर ऐतिहासिक घटनाओं के साथ अनगिनत सिरे निबद्ध होते हैं इसलिए अलग अलगदृष्टिकोणों से देखने पर एक ही घटना को समग्र रूप में जानने की कोशिश की जा सकती है। अलग-अलग समूहों के लोग एक ही घटना से अलग-अलग तरह से प्रभावित होते दिखाई देते हैं। यह व्याख्याएं सिर्फ आंकड़ों के स्तर पर न होकर मानसिक, सांस्कृतिक, व्यक्तिगत या सामाजिक भी हो सकती हैं। परंपरागत इतिहास अक्सर इन विस्तृत पक्षों को स्वयं में समेटने में समर्थ नहीं होता। और अक्सर यह भी होता है कि इतिहास के मुख्य पात्रों की वृहद छाँव में कई ऐसे महत्वपूर्ण पात्र नजरअंदाज रह जाते हैं जिनके संघर्ष या उपलब्धियां मुख्य पात्रों की अपेक्षा कम नहीं आँके जा सकतीं।

      मालिक काफ़ूर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इतिहास की किताबें अक्सर इस पात्र के बारे में चुप रह जाती हैं। कुछ स्थानों पर यह जानने को मिलता है कि यह एक बेहतरीन योद्धा था जिसे ज़बरन हिजड़ा बना दिया गया, जिसने अलाउद्दीन खिलजी को दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करने में मुख्य भूमिका अदा की, दिल्ली सल्तनत की राजनीति और आर्थिक नीतियों का नेतृत्व किया। जो दिल्ली की गद्दी पर 35 दिन के लिए आसीन रहा। पूरे मुगल काल में दिल्ली पर राज करने वाला शायद एकमात्र हिन्दू। एक संवेदनशील, नाजुक सा युवा जिसे दर्शन, ज्ञान और समाज में रुचि थी जिसे सुंदर जीवन जीना था, समाज के लिए कुछ सार्थक करना था, जो जीवन के झंझावातों में इतना बदल गया कि उसने बर्बरता की हदें पार कर दीं। मगर मालिक काफ़ूर की कहानी सिर्फ इतनी नहीं है। उसकी कहानी को ऐतिहासिक आंकड़ों और तथ्यों मात्र में समेट देने से उसकी जीवन यात्रा के साथ न्याय नहीं हो सकता।

युगल जोशी का ऐतिहासिक उपन्यास “अग्निकाल” मालिक काफ़ूर के जीवन-संघर्ष को वृहद अर्थों में पाठकों के समक्ष पेश तो करता ही है बल्कि उसे उन ऊंचाइयों पर ले जाता है जहां से आने वाली पीढ़ियाँ इस ओर सतर्क हो सकें कि कहीं वह अपने चारों ओर ऐसा समाज न बना लें जहां मेधा और शक्ति से ओजवान युवा मालिक काफ़ूर बनने लगें या बना दिए जाएँ। युगल जोशी की पुस्तक का नाम मालिक काफ़ूर के पात्र पर आधारित न होकर “अग्निकाल” है जिससे साफ होता है कि लेखक का मन्तव्य मालिक काफ़ूर के जरिए उस समाज के ताने-बाने को समझने और उससे सीख लेने को प्रमुखता देना है। मालिक काफ़ूर कोई जन्मजात नहीं हुआ, उसका निर्माण इस समाज और सत्ताओं ने स्वयं किया। “अग्निकाल” पुस्तक विनम्र, ओजवान, जिज्ञासु, पढ़ा-लिखा और संवेदनशील युवा का बर्बर, सत्ता-पिपासु मालिक काफ़ूर बन जाने की यात्रा है, और इस यात्रा का ईंधन खुद सामाजिक परिवेश है। मालिक काफ़ूर की जीवन यात्रा हमें अपने जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर अपनी यात्रा महसूस होती है। माणिक की अंतर्यात्राएं हम सबकी अंतर्यात्राएं हैं। हम सबके अंदर एक मालिक काफ़ूर विद्यमान है। 

      इतिहास को उपन्यासिक शैली में लिखी गई यह एक अनूठी पुस्तक है, हिन्दी में इस तरह की पुस्तकें सामान्यतः नहीं लिखी जातीं। पुस्तक की भाषा बेहद प्रभावशाली है। हिन्दी उर्दू और फारसी के शब्द-मणियों से सजी पुस्तक की लेखन शैली पढ़ने वाले को आकर्षित करती है, और अंत तक बांधे रखती है। दर्शन और सांस्कृतिक प्रभावों से सुसज्जित युगल जोशी की लेखन शैली पाठकों के अंतस तक जाकर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ती है। पुस्तक को पढ़ने के बाद इसके प्रभाव से खुद को बाहर निकालने में समय लगता है। बेहतरीन बात यह है कि साहित्यिक भाषा में लिखी गई इस पुस्तक की भाषा भी नई पीढ़ी के युवा पाठकों को भी बांधकर रखने का प्रभाव रखती है इसे लेखकीय जादू ही कहा जाना चाहिए। हालांकि युगल जोशी अंग्रेजी में ही लिखते रहे हैं और “अग्निकाल” उनकी हिन्दी में पहली पुस्तक है। पुस्तक में ऐसी अनगिनत खूबियाँ है जिनका आस्वाद पढ़ते हुए ही लिया जा सकता है। माणिक का जीवन-संघर्ष गहन है। पुस्तक में ऐसे तमाम अनुभव हैं जिन्हें पाठक अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से जोड़कर देखता है और प्रभावित होकर सीखता है।

आज जब समकालीन हिन्दी में युवाओं के लिए ऐसी पुस्तकों का बोलबाला है जिनका हेतु मनोरंजन मात्र है, ऐसे में हिन्दी साहित्य बिरादरी को “अग्निकाल” जैसे अनूठे प्रयासों पर अपनी चुप्पी तोड़कर इस पुस्तक का खुले मन से स्वागत करना चाहिए। आशा है “अग्निकाल” हिन्दी को समृद्ध करने वाली पुस्तक साबित हो।

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पुस्तक: अग्निकाल (सल्तनतकालीन सिपहसालार मालिक काफ़ूर की कहानी), उपन्यास

लेखक: युगल जोशी   

प्रकाशक: पेंगविन हिन्दी

मूल्य: 499/- (पेपरबैक)

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