भारतीय अंग्रेजी के आरंभिक उपन्यासों में से एक ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स‘ के प्रकाशन के 75 साल हो गए. लेकिन उसका गांव मालगुडी, उसका बच्चा स्वामी आज भी हमारी स्मृतियों में वैसे के वैसे बने हुए हैं- जानकी पुल.
१९३५ में भारतीय अंग्रेजी के आरंभिक लेखकों में एक आर. के. नारायण ने एक औपन्यासिक गांव बसाया था मालगुडी. ७५ साल हो गए वह उपन्यास ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ और उसका गांव मालगुडी करोड़ों पाठकों की स्मृतियों में आज भी वैसा का वैसा बसा हुआ है. आर. के नारायण अपने दीर्घ जीवनकाल के दौरान करीब २९ उपन्यास लिखे लेकिन ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ की बात ही कुछ और है. मुल्कराज आनंद के उपन्यास ‘अनटचेबल्स’ के साथ इस उपन्यास को भारतीय अंग्रेजी साहित्य के आधार स्तंभों में माना जाता है. आज भारतीय अंग्रेजी उपन्यासों की विश्व बाजार में धमक है. हर साल कुछ नए लेखकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशकों द्वारा दिए जाने वाले मोटे एडवांस के कारण खूब चर्चा होती है. लेकिन उनमें भारतीय समाज की कितनी कहानी होती है यह लंबे समय से बहस का विषय रहा है. ऐसे में यह याद करना सुखद है कि शुरूआती भारतीय अंग्रेजी उपन्यासों में गांव समाज की कथा उसी यथार्थवादी ढंग से कही गई है जिस तरह से बाद में भारतीय भाषाओँ विशेषकर हिंदी उपन्यासों में कही गई. आर. के. नारायण का उपन्यास ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ इसका जीवंत उदाहरण है.
प्रसंगवश, यही वह उपन्यास है जिसने भारतीय अंग्रेजी लेखन के सामर्थ्य को विश्वस्तर पर साबित किया. विश्वप्रसिद्ध लेखक ग्राहम ग्रीन मालगुडी के बच्चों स्वामी, राजम, मणि के कारनामों से इस कदर रीझे कि उन्होंने आर. के. नारायण को अपना प्रिय लेखक बताया. उन्होंने कहा कि भारत को समझने के लिए इस उपन्यास को पढ़ना चाहिए. अगर मुल्कराज आनंद के पहले उपन्यास ‘अनटचेबल्स’ को छपवाने में इ. एम. फोर्स्टर की महती भूमिका थी तो इस नारायण के उपन्यास ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ को यूरोप में छपवाने के लिए ग्राहम ग्रीन ने व्यक्तिगत तौर पर धन मुहैया करवाया. इसकी कहानी बड़ी रोचक है. आर. के. नारायण ने उपन्यास लिखाकर डाक से इंग्लैंड में अपने एक दोस्त के पास भेज दिया. उसने इसको छपवाने के बहुत प्रयास किये लेकिन सभी प्रकाशकों ने इसको छापने से मन कर दिया. जब नारायण के दोस्त ने उनको इसकी सूचना दी तो नारायण ने अपने दोस्त से कहा कि बजाय उसको डाक से वापस भेजने के वह उसमें पत्थर बांधकर उसे टेम्स नदी में डुबा दे. अंत में उनका वह दोस्त उपन्यास की पांडुलिपि लेकर ग्राहम ग्रीन के पास पहुंचा. उन्होंने इसे पढ़ा और चमत्कृत रह गए. इसकी मासूमियत में खो गए.
ग्राहम ग्रीन की सलाह पर ही आर. के. नारायणस्वामी के नाम से लिखने वाले लेखक ने अपना नाम बदलकर आर. के. नारायण कर लिया. नारायण ने इतने जतन से मालगुडी बसाया था कि जिसने उसे पढ़ा वही उसकी निश्छलता में खो गया. हाल ही में नोबेल पुरस्कृत लेखक मारियो वर्गास ल्योसा ने अपनी पुस्तक ‘लेटर्स टू ए यंग नॉवलिस्ट’ में लिखा है कि साहित्य वास्तव में यथार्थ की पुनर्रचना नहीं होता है. लेखक तो एक ऐसा संसार रचता है जो वास्तविक दुनिया के समतुल्य होता है. वास्तविक संसार से उसकी समतुल्यता जितनी अधिक होती है उतनी ही उसकी कथा विश्वसनीय होती है. इसमें कोई संदेह नहीं कि दक्षिण भारत के जीवन से अंग्रेजी के पाठकों का असली परिचय इसी उपन्यास ने करवाया.
कहा जा सकता है कि १० साल के बालक स्वामी और उसके दोस्तों के माध्यम से लेखक ने भारतीय समाज के संक्रमण का कथा-रूपक रचने का प्रयास किया है. उसके अलग-अलग पात्र समाज के अलग-अलग मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते दिखाई देते हैं. मणि अगर ग्रामीण सहजता और भोलेपन का प्रतीक है तो स्वामी का दूसरा राजम शहरी हृदयहीनता, अक्खड़ता का प्रतीक बनकर उभरा है. वास्तव में, यह उपन्यास नहीं है १९२०-३० के दशक में भारतीय समाज में आ रहे बदलावों को इसकी कथा में पिरोया गया है. नजदीकी रेलवे स्टेशन से ६० किलोमीटर दूर बसा यह छोटा सा क़स्बा धीरे-धीरे अंग्रेजी आधुनिकता के के प्रभाव में भारतीय समाज में आ रहे बदलावों का आइना सा बनता जाता है पाठकों के लिए. कभी बच्चे बड़ों की बातचीत के क्रम में आज़ादी के आंदोलन और अंग्रेजों के बर्बर शासन की कहानी सुन लेते हैं तो कभी मालगुडी में क्रिकेट क्लब की स्थापना करते देखे जाते हैं. अंग्रेजी शिक्षा के बढते प्रभाव की और भी लेखक ने उपन्यास में इशारा किया है.
इसी तरह की घटनाओं, प्रसंगों के माध्यम से बहुत सूक्ष्म रूप से इसमें लेखक ने ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ में आधुनिकता और परम्परा के द्वन्द्व को उभारने का प्रयास किया है. जो कि उस समय के समाज की सच्चाई भी थी. उस समय संयोग से हिंदी, उर्दू लेखन की तरह अंग्रेजी लेखन में भी यथार्थवादी लेखन का जोर था. समाज का उसमें सूक्ष्म अंकन होता था. आर. के. नारायण ने भी उसी यथार्थवादी शैली को अपनाया है लेकिन उनकी प्रविधि गल्पात्मक है और इसीलिए वह अधिक कलात्मक भी प्रतीत होता है. केवल सामाजिक यथार्थ ही नहीं औपन्यासिक कला के निकष पर भी इस उपन्यास का अपना मुकाम है. अकारण नहीं है कि अनेक आलोचक अतिरेक में आकार इसकी गणना बीसवीं शताब्दी के प्रथम उत्तरार्ध के महान उपन्यासों में करने पर जोर देते हैं. बहरहाल, महान हो या न हो एक ‘माइलस्टोन’ अवश्य है.
बहुलार्थों वाले इस उपन्यास की पढ़त कई रूपों में संभव है. एक कथा यह ही हो सकती है कि ‘स्वामी एंड फ्रेंड्स’ में बच्चों के माध्यम से वे उस समय के बनते ‘इण्डिया’ और उसके प्रभाव में आते जाते ‘भारत’ की कहानी कहने का प्रयास कर रहे हैं. यह भविष्य के भारत की तस्वीर है जो औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के बाद उभरनी थी. उपन्यास में स्वामी और उनके दोस्तों का भोलापन है तो उसकी दरकन भी है. उपन्यास में एक प्रसंग आता है जब स्वामी और उसका दोस्त मणि एक स्वतंत्रता सेनानी का भाषण सुनते हैं जिसमें वह नेता यह कहता है कि अगर सभी भारतीय जाकर इंग्लैंड पर थूक दें तो वह उसी में डूब जायेगा. स्वामी यह तय करता है उसे इसकी शुरुआत करनी चाहिए. लेकिन मणि जब यह कहता है कि अंग्रेज बड़े ज़ालिम हैं. वे गोली मार देते हैं तो वह अपना फैसला मुल्तवी कर देता है. एक दिन वह अपने हेड मास्टर की छड़ी छीन लेता है.
उपन्यास में बच्चों और बचपन का चित्रण इतनी सूक्ष्मता से किया गया है कि जिसने इसे पढ़ा वही इसका मुरीद होकर रह गया. सबके बचपन के प्रसंग इससे जुड़ने लगते हैं. सबका बचपन होता है, उसकी मासूमियत होती है. जिसे हम सब पीछे छोड़ आये होते हैं. यह उपन्यास हमें उसी मासूम संसार में ले जाता है. शायद यही कारण है कि हर युग में यह उपन्यास प्रासंगिक प्रतीत होता है. १९८६ में जब दूरदर्शन पर ‘मालगुडी डेज’ नामक धारावाहिक का प्रसारण शुरू हुआ उसमें इस उपन्यास की कुछ कहानियां भी थी. धीरे-धीरे मालगुडी नामक वह औपन्यासिक गांव साकार होने लगा और स्वामी नामक वह बच्चा घर-घर का दुलारा बन गया.
कुछ सपने होते हैं जो हमेशा हमारे साथ चलते हैं, हमारी स्मृतियों में कुछ लोग होते हैं, कुछ प्रसंग होते हैं जो हमेशा बने रहते हैं. ७५ साल हो गए स्वामी अब भी बच्चा है, उतना ही मासूम, उतना ही शरारती. मालगुडी एक ऐसे गांव के रूप में बना हुआ है जिस पर समय की खराशें नहीं पड़ी हैं. वह कालजयी बन चुका है.
49 Comments
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民意調查是什麼?民調什麼意思?
民意調查又稱為輿論調查或民意測驗,簡稱民調。一般而言,民調是一種為了解公眾對某些政治、社會問題與政策的意見和態度,由專業民調公司或媒體進行的調查方法。
目的在於通過網路、電話、或書面等媒介,對大量樣本的問卷調查抽樣,利用統計學的抽樣理論來推斷較為客觀,且能較為精確地推論社會輿論或民意動向的一種方法。
以下是民意調查的一些基本特點和重要性:
抽樣:由於不可能向每一個人詢問意見,所以調查者會選擇一個代表性的樣本進行調查。這樣本的大小和抽樣方法都會影響調查的準確性和可靠性。
問卷設計:為了確保獲得可靠的結果,問卷必須經過精心設計,問題要清晰、不帶偏見,且易於理解。
數據分析:收集到的數據將被分析以得出結論。這可能包括計算百分比、平均值、標準差等,以及更複雜的統計分析。
多種用途:民意調查可以用於各種目的,包括政策制定、選舉預測、市場研究、社會科學研究等。
限制:雖然民意調查是一個有價值的工具,但它也有其限制。例如,樣本可能不完全代表目標人群,或者問卷的設計可能導致偏見。
影響決策:民意調查的結果常常被政府、企業和其他組織用來影響其決策。
透明度和誠實:為了維護調查的可信度,調查組織應該提供其調查方法、樣本大小、抽樣方法和可能的誤差範圍等詳細資訊。
民調是怎麼調查的?
民意調查(輿論調查)的意義是指為瞭解大多數民眾的看法、意見、利益與需求,以科學、系統與公正的資料,蒐集可以代表全部群眾(母體)的部分群眾(抽樣),設計問卷題目後,以人工或電腦詢問部分民眾對特定議題的看法與評價,利用抽樣出來部分民眾的意見與看法,來推論目前全部民眾的意見與看法,藉以衡量社會與政治的狀態。
以下是進行民調調查的基本步驟:
定義目標和目的:首先,調查者需要明確調查的目的。是要了解公眾對某個政策的看法?還是要評估某個政治候選人的支持率?
設計問卷:根據調查目的,研究者會設計一份問卷。問卷應該包含清晰、不帶偏見的問題,並避免導向性的語言。
選擇樣本:因為通常不可能調查所有人,所以會選擇一部分人作為代表。這部分人被稱為“樣本”。最理想的情況是使用隨機抽樣,以確保每個人都有被選中的機會。
收集數據:有多種方法可以收集數據,如面對面訪問、電話訪問、郵件調查或在線調查。
數據分析:一旦數據被收集,研究者會使用統計工具和技術進行分析,得出結論或洞見。
報告結果:分析完數據後,研究者會編寫報告或發布結果。報告通常會提供調查方法、樣本大小、誤差範圍和主要發現。
解釋誤差範圍:多數民調報告都會提供誤差範圍,例如“±3%”。這表示實際的結果有可能在報告結果的3%範圍內上下浮動。
民調調查的質量和可信度很大程度上取決於其設計和實施的方法。若是由專業和無偏見的組織進行,且使用科學的方法,那麼民調結果往往較為可靠。但即使是最高質量的民調也會有一定的誤差,因此解讀時應保持批判性思考。
為什麼要做民調?
民調提供了一種系統性的方式來了解大眾的意見、態度和信念。進行民調的原因多種多樣,以下是一些主要的動機:
政策制定和評估:政府和政策制定者進行民調,以了解公眾對某一議題或政策的看法。這有助於制定或調整政策,以反映大眾的需求和意見。
選舉和政治活動:政黨和候選人通常使用民調來評估自己在選舉中的地位,了解哪些議題對選民最重要,以及如何調整策略以吸引更多支持。
市場研究:企業和組織進行民調以了解消費者對產品、服務或品牌的態度,從而制定或調整市場策略。
社會科學研究:學者和研究者使用民調來了解人們的社會、文化和心理特征,以及其與行為的關係。
公眾與媒體的期望:民調提供了一種方式,使公眾、政府和企業得以了解社會的整體趨勢和態度。媒體也經常報導民調結果,提供公眾對當前議題的見解。
提供反饋和評估:無論是企業還是政府,都可以透過民調了解其表現、服務或政策的效果,並根據反饋進行改進。
預測和趨勢分析:民調可以幫助預測某些趨勢或行為的未來發展,如選舉結果、市場需求等。
教育和提高公眾意識:通過進行和公布民調,可以促使公眾對某一議題或問題有更深入的了解和討論。
民調可信嗎?
民意調查的結果數據隨處可見,尤其是政治性民調結果幾乎可說是天天在新聞上放送,對總統的滿意度下降了多少百分比,然而大家又信多少?
在景美市場的訪問中,我們了解到民眾對民調有一些普遍的觀點。大多數受訪者表示,他們對民調的可信度存有疑慮,主要原因是他們擔心政府可能會在調查中進行操控,以符合特定政治目標。
受訪者還提到,民意調查的結果通常不會對他們的投票意願產生影響。換句話說,他們的選擇通常受到更多因素的影響,例如候選人的政策立場和政府做事的認真與否,而不是單純依賴民調結果。
從訪問中我們可以得出的結論是,大多數民眾對民調持謹慎態度,並認為它們對他們的投票決策影響有限。
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