हाल में ही पाकिस्तान के पत्रकार सईद अहमद की किताब आई है ‘दिलीप कुमार: अहदनामा-ए-मोहब्बत’. इसको पढ़ने से पता चलता है पाकिस्तान में लोग दिलीप कुमार से मोहब्बत ही नहीं करते, वे उनके दीवाने हैं. ऐसे ही दो दीवानों की दास्तान पढ़िए– जानकी पुल.
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स्टीफेन हेनरी के बारे में अजीब-सी ख़बरें सुनने में आ रही थीं. वह बीमार पड़ा लेकिन डॉक्टर के पास नहीं गया. दिलीप कुमार का फोटो देखकर ठीक हो गया.
अचानक अपेंडिक्स के दर्द से चीख उठा. हस्पताल पहुँचाया गया, डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी. उसने जिद की कि उसे दिलीप कुमार की फिल्म ‘दाग’ दिखाई जाए. फिल्म देखकर उसका अपेंडिक्स का दर्द खत्म हो गया. वह किसी मुश्किल में फंसा, उसने दिलीप कुमार को याद किया और उसकी परेशानी दूर हो गई. उसने अपना कारोबार शुरू किया, अपने ऑफिस में दिलीप कुमार की तस्वीर लगाई और उसका कारोबार चमक उठा.
मैं ऐसे बहुत से लोगों से परिचित हूँ जिन्हें कुंदनलाल सहगल, पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, लाता मंगेशकर, नूरजहाँ, मधुबाला और अपने युग के कलाकारों से अत्यधिक प्रेम था लेकिन स्टीफेन हेनरी का मामला बहुत संगीन और अविश्वसनीय लगता था.
एक दिन अचानक उससे मुलाकात हो गई. स्टीफेन हेनरी की जुबान से दिलीप कुमार के बारे में एक ऐसा वाक्य निकला जिसे सुनकर मुझे यूँ लगा जैसे मेरी रगों में बहता खून रुक गया है. अपने आप पर काबू पाने के बाद मैंने उसकी ओर देखा. उसकी आँखों में मुझे तेज रोशनी नज़र आई और जब उसने ठहाका लगाया तो उसके काले चेहरे पर सफ़ेद मोतियों की तरह चमकते हुए दांतों से किरणें फूट रही थीं. वह दीवानों की तरह खुश था और अपनी खुशी पर काबू नहीं रख पा रहा था. उसकी असीम खुशी ने मुझे परेशान कर दिया.
‘तुम इतने खुश क्यों हो?’ वह मुस्कराया और दिलीप कुमार की एक तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘यह प्रश्न आप उनसे कीजिये. ये मुझे खुशियाँ देते हैं, दुःख पहुंचे तो सुख देते हैं! तकलीफ हो तो उनको याद करके आराम मिलता है! मैं दिन-रात हर लम्हा, हर घड़ी उनके स्वास्थ्य और कुशलता के लिए ईसा मसीह के सामने हाथ उठाकर दुआ करता हूँ.’
उस आदमी में मेरी दिलचस्पी बढ़ चुकी थी. उससे मुलाकातों का सिलसिला बढ़ चुका था. कभी राह चलते हुए, कभी किसी पान-सिगरेट वाले की दुकान पर, कभी किसी रेस्तरां में और कभी उसके दफ्तर में. मैं उन मुलाकातों में उनको जानने की कोशिश करता रहा.
स्टीफेन हेनरी को किसी नियम या चौखटे या किसी फ्रेम और किसी क्रम में देखा ही नहीं जा सकता. वह जिंदगी की तरह है, बेमकसद और बेमानी. वह उन लोगों में से है जो सिर्फ होते हैं और उनके लिए यह सवाल कोई महत्व नहीं रखता कि वे क्यों हैं और उन्हें क्या होना चाहिए, क्या नहीं होना चाहिए. उसको अपना जन्मदिन याद नहीं लेकिन हर वर्ष ग्यारह दिसंबर को वह दिलीप कुमार का जन्मदिन मनाने के लिए अपने घर को रौशनियों से सजाता है. अपने दोस्तों को शानदार दावत पर बुलाता है. बड़े शौक और गर्मजोशी से केक ऑर्डर पर बनवाकर उस पर ‘happy birthday to dilip kumar’ लिखवाता है. दिलीप कुमार की फिल्म ‘तराना’ वाली मुस्कुराती हुई तस्वीर केक के पास रखकर सब दोस्तों को केक के चारों ओर खड़ा करता है और दुआ के लिए हाथ उठाकर बाइबल और कुरआन मजीद की तिलावत करके दिलीप कुमार को सालगिरह की मुबारकबाद देता है.
उस वक्त स्टीफेन हेनरी के चेहरे पर एक अमर खुशी झलकती है जो मनुष्य की कल्पना में भी नहीं आ सकती. वह अपने हाथों से अपने सारे दोस्तों को केक खिलाता है और हर बार ‘हैप्पी बर्थडे टू दिलीप कुमार’ कहता है. उसका दिल चाहता है कि वह दिलीप कुमार से बात करे. वह टेलीफोन पर कॉल बुक करता है लेकिन मुंबई में दिलीप कुमार के टेलीफोन की घंटी नहीं बजती. वह आकाश की ओर देखता है और दुआ पढकर अपना सन्देश हवाओं के परों से बांधकर दिलीप कुमार को भेज देता है और बहुत खुश होता है. वर्षगाँठ के केक के बाद वह अपने मेहमानों को दिलीप कुमार की पसंद का खाना खिलाता है. वर्षगाँठ के समारोह के अंत में वह फिल्म दाग दिखाना नहीं भूलता. दरअसल उसके नायक शंकर के साथ स्टीफेन हेनरी का रिश्ता और लगाव बहुत पुराना है.
स्टीफेन अनारकली में धनी रोड के सामने एक गली में स्थित सेंट फ्रांसिस स्कूल में पढता था. वह सबकी आँखों में धूल झोंककर स्कूल से भाग निकलता और अनारकली से लोहारी दरवाज़े की ओर जाते हुए वह मशहूर पैसा अखबार वाली गली से होकर भाटी चौक में अपने छोटे-से स्वर्ग में पहुँच जाता. स्टीफेन के इस स्वर्ग में तीन सिनेमाघर थे. निगार में ‘अंदाज़’, मलिक थियेटर में ‘बरसात’ और पैरामाउन्ट में ‘दाग’ लगी होती थी. एक दिन स्टीफेन के पास फिल्म देखने के लिए पैसे नहीं थे और उसने अपनी किताबों को एक रूपए चार आने में बेच दिया. उस दिन स्टीफेन ने फिल्म ‘दाग’ के तीन शो देखे. वह बहुत खुश था. उसने सारा दिन और आधी रात शंकर के साथ गुजारी थी. स्टीफेन को किताबें बेचने की कोई परेशानी नहीं थी. उसको दुःख इस बात का था कि पारो ने अपनी चूडियाँ उतार कर शंकर को दी थीं कि वह उन्हें बेचकर माँ के लिए दवाई लेकर आये लेकिन शंकर शराब पीने चला जाता है और माँ मर जाती है.
शंकर की परेशानियों में स्टीफेन का बचपन गुजर गया. फिल्म ‘आन’ लाहौर में रिलीज हुई तो स्टीफेन ने सुख की सांस ली. लाहौर की मशहूर सड़क मैक्लोड रोड पर स्थित रतन सिनेमा में ‘आन दिखाई जा रही थी और १९५३ में ‘आन’ का टिकट ५० रुपए ब्लैक में हाथोहाथ बिकता था. लोग अपनी-अपनी चारपाई और बिस्तर लेकर रात को ही रतन सिनेमा पहुँच जाते और अगले दिन लाइन में खड़े होकर टिकट का इंतज़ार करते. ‘आन’ ने बॉक्स ऑफिस के सारे रेकोर्ड तोड़ दिए थे. ‘आन’ में जिस तरह का कपड़ा दिलीप कुमार पहनता है उसी तरह का कपड़ा स्टीफेन हेनरी ने भी सिलवाया. रेशमी कमीज़, खुले बाजू, तंग पांयचों वाली पतलून और लॉन्ग शूज़ पहनकर स्टीफेन दिलीप कुमार बन चुका था. ‘आन’ में एक दृश्य है जिसमें दिलीप कुमार पेड़ की लता से झूलकर कमरे में आता है जहाँ नादिरा बिस्तर पर लेटी होती है.
स्टीफेन को उन दिनों एक लड़की से मोहब्बत हो गई थी. उसका नाम रुकैया था. वह उसके पड़ोस में रहती थी. उससे मिलना बहुत कठिन था. स्टीफेन ने दिलीप कुमार वाला रास्ता अपनाया. वह बड़ी मुश्किल से छत पर चढ़कर दीवार से छलांग मारकर उस लड़की के कमरे में पहुँचने में सफल हो गया लेकिन लड़की ने उसको देखकर शोर मचा दिया और लड़की के भाई भागते हुए आ गए. स्टीफेन ने छत से गली में छलांग लगा दी. उसकी टाँगें ज़ख़्मी हो गई.
उसका दिल टूट गया. वह फिल्म ‘दाग’ देखकर दिल बहलाता रहा. समय बीतता गया. एक दिन वही लड़की अचानक उसके कमरे में आई. स्टीफेन उसे देखकर हैरान रह गया. वह शरमा रही थी, स्टीफेन भी शरमा रहा था. लड़की ने मुश्किल से सिर्फ इतना कहा और भाग गई, ‘मैंने फिल्म आन अब देखी है.’
आन ने डायमंड जुबली मनाई. लाहौर के रेलवे स्टेशन के सामने रिवोली सिनेमा में राज कपूर की ‘बरसात’ ने दौलत की इतनी बरसात की कि सिनेमा का मालिक बोरियों में नोट भरकर घर ले जाता था और आखिरकार थककर उसका हार्ट फेल हो गया.
१९६४ में पाकिस्तान में हिन्दुस्तानी फिल्मों के प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी गई. स्टीफेन परेशान हो गया. उसने दिलीप कुमार की तस्वीरें तलाश कीं और उनसे अपना दिल बहलाता रहा. अब अपने जीवन की साथ बहारें देखने के बाद अब सिर्फ उसकी एक ख्वाहिश है. वह दिलीप कुमार को देखना चाहता है और वह कहता है कि जब मैं उनके सामने जाऊँगा तो मैं उनके पाँव पर गिरकर अपनी जान दे दूँगा.
कुछ साल पहले दिलीप कुमार अपनी बेगम सायरा बानो के साथ पाकिस्तान आये तो करांची में उनके ठहरने के दौरान बड़ी भावनात्मक घटना हुई. मैंने स्टीफेन को वह घटना सुनाई.
करांची के स्टेट गेस्ट हाउस में सुबह के समय एक महिला अपनी जवान बेटी के साथ दिलीप कुमार से मिलने आई. दिलीप कुमार को खबर दी गई तो उन्होंने कहा कि मेहमानों को आदर के साथ वेटिंग रूम में बिठाया जाए. दिलीप कुमार के सेक्रेट्री ने अच्छे कपड़ों में आई उस महिला से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे दिलीप कुमार से जाती तौर पर नहीं मिलना चाहती हैं बल्कि वह किसी का सन्देश और कुछ तोहफा पहुंचाने के लिए सिंध के दूर-दराज़ के इलाके से सफर करती हुई स्टेट गेस्ट हाउस पहुंची है. महिला ने एक रुमाल और दो सोने की अंगूठी की डिबिया सेक्रेट्री को देते हुए कहा कि वह दिलीप कुमार को यह चीज़ें अपने सामने देना चाहती हैं.
दिलीप कुमार कमरे में आये. महिला ने उन्हें बताया कि करांची से कई मील दूर सिंध के एक दूर-दराज़ गांव में एक महिला ने बड़ी राजदारी के साथ उनको यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वह आपको यह चीज़ें पहुंचा दें.
‘दो सोने की अंगूठियां हैं. एक दिलीप कुमार के लिए और दूसरी सायरा बानो के लिए. एक खत में लिखा यह पैगाम है कि आपको शादी मुबारक. आपको तो सायरा बानो मिल गई लेकिन मुझे पूछा भी नहीं.
कपड़े के रेशमी रुमाल पर खून से दिल बनाया गया था और दिलीप कुमार के लिए मोहब्बत का कोई सन्देश था. महिला ने बताया कि उस बदनसीब औरत को उसके रिश्तेदारों ने कमरे में बंद कर रखा है कि कहीं वह आपसे मुलाकात के लिए भाग न जाए. महिला ने यह भी बताया कि वह स्त्री शादी से इनकार करती है और खुल्लमखुल्ला इस बात का इकरार करती है कि उसने सारी जिंदगी दिलीप कुमार के मोहब्बत में गुज़ार दी.
स्टीफेन ने बड़े ध्यान से यह घटना सुनी और खामोश रहा.
इस्लामाबाद के सिंध हाउस में एक बड़े और कुशादा लॉन में पेड़ों के नीचे छांव में बैठे हुए दिलीप कुमार के गहरे दोस्त आसिफ अली ने स्टीफेन हेनरी की कहानी उन्हें सुनाई. दिलीप कुमार ने स्टीफेन हेनरी से बात करने की इच्छा प्रकट की स्टीफेन हेनरी का फोन नंबर मिलाया गया.
दिलीप कुमार ने कहा, ‘स्टीफेन, मैं आपके जज़्बात की बेहद कद्र करता हूँ.’
स्टीफेन हेनरी ने कहा, ‘आप… आप.. मेरे… मैं कैसे यकीन कर लूं कि… आप हैं?’
स्टीफेन हेनरी कोई बात नहीं कर सका. वह खामोश हो गया. उसकी ज़बान से कोई शब्द न निकल सका.
एक दुआ बचपन से उसके होंठों पर थी. उसके होंठ थरथराने लगे और कोई आवाज़ दूसरी तरफ न पहुँच सकी. खुदाबंद आपको सेहत और लंबी उम्र अता करे. आमीन.
यह किताब वाणी प्रकाशन से आई है.
यह किताब वाणी प्रकाशन से आई है.
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12 Comments
इस किताब के लेखक सईद अहमद मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। जब यह किताब लिखी जा रही थी, तब उन्होंने इसका जिक्र मुझसे किया था लाहौर में… दिलीप कुमार हील क्या किसी भी महान शख्सियत पर यह अपनी किस्म की अलग ही किताब है… मुझे फक्र है कि यह किताब मेरे अज़ीज़ दोस्त ने लिखी है…
मैं एक सहाफी हूं…इन पर प्रोग्राम करने की ख़वाहिश रखता हूं…मेरी आपसे गुज़ारिश है कि मेरी मदद करें…खुशी होगी
हिंदी सिनेमा का बेताजबादशाह……….दिलीप कुमार……..मैं इनके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानना चाहता हूं
मुहब्बत करने वाले कम न होंगे !
दिलचस्प है….
स्टीफन हेनरी को किसी तर्क से नहीं समझा जा सकता. इश्के हकीकी और इश्के मजाज़ी को जानना पड़ेगा.
… bahut sundar !
ये दीवानगी हमारे अन्दर नहीं आ सकती| कितने खुशनसीब हैं वो लोग जो खुदा को मूरत में ढूंढ लेते हैं, जमाना उन्हें पागल कहे , दीवाना कहे, चाहे जिन्दा जला दे, लेकिन दर्द उन्हें तब तक नहीं होता , जब तक उन्हें उनके खुदा से जुदा न किया जाए|
मीराबाई को इसीलिए लोग आज भी याद रखते हैं|
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