विमल कुमार ने यह कविता कुछ दिनों पहले प्रकाशित प्रीति चौधरी की कविता के प्रतिवाद में लिखी है. एक कवि अपना मतान्तर कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा है. स्त्री-विमर्श से कुछ उदारता बरतने का आग्रह करती यह कविता पढ़ने के काबिल तो है, जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों ही- जानकी पुल.
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सिर्फ प्यार से लड़ा जा सकता है हिंसा के खिलाफ
मंडराते रहे सदियों से
अब तक न जाने कितने गिद्ध
तुम्हारे इर्द-गिर्द
घूमते रहे
शहर में
न जाने कितने भेडिये
दिन-रात तुम्हारे पास
जानता हूं
चाहकर भी नहीं कर पाती
कई बार तुम मुझ पर यकीन
समझ लिया है
तुमने भी मुझे
एक भेडिया आखिरकार
मान लिया है गोया
मैं हूं एक गिद्ध
तुम जब करोगी प्यार मुझे
तो लौट जाओगी चीख कर
सपने में जो दिखेगा तुम्हें
मेरे चेहरे पर लटका एक मुखौटा
डराता हूं तुम्हें
इतनी आशंकाओं के बीच जी रही हो तुम
न जाने कब से इतनी क्रूरताओं के बीच
बहुत स्वाभाविक है तुम्हारा संशय
पर इस तरह कैसे जी पाओगी तुम
अपना यह सुंदर जीवन
मेरे साथ
मैं भी कहां जी पा रहा यह जीवन
कहां मिल पा रहा वह सुख
जब चारों ओर फैला हो झूठ दुनिया में
क्या तुमने कभी सोचा है
किसने पैदा किया यह अविश्वास
किसने तोड़ा भरोसा एक दूसरे पर से
तुमने मुझे जन्म दिया है एक मनुष्य के रूप में
तो फिर कैसे मैं बन गया
एक भेडिया बड़ा होकर
कैसे पैदा हो गया
एक गिद्ध मेरे भीतर
क्या तुम्हें नहीं लगता
तुम्हारे गर्भ के बाहर ही बना हूं
मैं एक नरभक्षी
अपने समय में
क्या तुम यह नहीं मानती हो
सिर्फ प्यार से ही लड़ा जा सकता है
इस संसार में
किसी भी तरह की हिंसा से
एक दूसरे को चुनौती देकर नहीं.
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