आज पढ़िए चर्चित लेखिका संपादक जयंती रंगनाथन की कहानी ‘चौथा मुसाफ़िर’, जो ममता कालिया द्वारा संपादित ‘वर्तमान साहित्य’ के अंक में प्रकाशित हुआ है। जिन लोगों ने उस अंक में नहीं पढ़ा वे यहाँ पढ़ सकते हैं-
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उस रात में कोई तो बात थी।
तूफानी, बर्फीली, अजूबी और अकेली…
वो तीन शिद्दत से चौथे का इंतजार कर रहे थे। पूरे चौबीस घंटे से। वो तीनों एक दूसरे को लगभग जान चुके थे। उनमें से दो मुंबई से आए थे। साजन अपनी आने वाली फिल्म की शूटिंग की रेकी करने आया था। जॉर्ज एक ऐड एजेंसी में काम करता था। साजन की सांस हर समय फूली रहती। जॉर्ज उससे उम्र में बड़ा था, पर चुस्त–चौकस। तीसरा राज एक आईटी कंपनी में काम करता था। अपनी नीरस सी जिंदगी में रस भरने वो यहां आया था। चौथे के बारे में तीनों को नहीं पता। कल रात जब वो तीनों बस से इस गांवनुमा कस्बे में पहुंचे थे, उम्मीद थी कि सुबह होते ही वो अपने सफर पर निकल पड़ेंगे। पर उनके ट्रिप मैनेजर मलिक को उस चौथे का इंतजार था।
‘एक साथ जाएंगे सर जी। अकेले–अकेले वाली जगह नहीं है। मेरे पास फोन आया था, बोलीं, शाम तक पहुंच जाएंगी।’
बोली…ओह यानी लड़की!
तीनों के मुंह खुले रह गए। राज के मुंह से सीटी निकल गई, ‘इस ट्रिप में हमारे साथ एक लेडी चल रही हैं? इज देट सो?’
मैनेजर पांच फीट से थोड़ा सा ज्यादे का एक कन्फ्यूज्ड सा दिखने वाला मानव था। इस समय वो थोड़ा तनाव में था। पल–पल बदल रहा मौसम उसे डरा रहा था। पहाड़ पर, वो भी बर्फ में ये दिल्ली–मुंबई टाइप के आदमी चढ़ भी पाएंगे?
वो थोड़ा झींकते हुए बोला, ‘औरत लोगों को अलाउड नहीं है क्या इधर आना? अरे, ऐसा सवाल क्यों पूछ रहा है?’
साजन जो अब तक अपनी फूली सांस पर काबू नहीं पा सका था, अचानक मुस्कराने लगा। लड़की? वो भी उनके साथ? चलो अच्छा रहेगा। वैसे भी उसे जॉर्ज की कंपनी नहीं पसंद और ये जो बंदा अपने को आपको राज बता रहा है, बड़ा ही फेक लग रहा है। इन सबसे तो बेहतर ही होगी एक फीमेल कंपनी।
तीनों को इंतजार था उस चौथे का, जो चौथी बन गई थी। कौन होगी ये चौथी? अगर इस एडवेंचर सफर पर आ रही है तो जरूर जहीन–जवान होगी। शायद सुंदर भी। बात करने वाली हुई तो और भी अच्छा।
तीनों को अब इंतजार भला लगने लगा। सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम और अब रात होने आई। चौथी का कोई पता नहीं था। मलिक से जब भी सवाल करते, यही जवाब मिलता कि बस, अभी पहुंच रही है। टैक्सी से आ रही है ना। बीच में एक्सीडेंट हो गया। इसलिए देर हो गई।
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ठंड एकदम से बढ़ गई। मुंबई के बाशिंदों को ठंड क्या है यह तो पता ही नहीं। साजन बुरी तरह ठिठुर रहा था। जॉर्ज अपने जैकेट की जेब में एक हाथ डाल, दूसरे से सिगरेट फूंक रहा था और राज अपने लैपटॉप में लगा हुआ था।
पूरा दिन लगभग निकल गया। वैसे तो अभी शाम नहीं हुई, पर अंधेरा इतना कि जैसे आधी रात हो। तीनों में से किसी को बाहर जा कर डिनर करने का मूड नहीं था। लंच में रोटी और चिकन का कोर्मा मंगवाया था। वो बच गया था, ब्रेड और बिस्किट भी था। कमरे में केतली थी, राज हर आधे घंटे बाद पानी गर्म करके टीबैग से चाय बनाता। पीते तो सभी थे। कुछ देर पहले साजन ने अपने बैग पैक से रम की बोतल निकाल ली। अपनी चाय में साठ मिली रम मिला दिया। आह, अब जा कर जान में जान आई। उसकी देखादेखी राज ने भी अपना कप आगे बढ़ा दिया। साजन ने उसके कप में रम उंडेला, पर ध्यान से। ऐसा ना हो कि आज ही रात रम की पूरी बोतल खत्म हो जाए। अभी तो चार दिन और बिताना है पहाड़ों पर।
साजन ने जॉर्ज की तरफ देख कर कुछ जोर से पूछा, ‘रम है मेरे पास। तुम्हें चाहिए?’
जॉर्ज ने नहीं में सिर हिलाया और गर्म चाय की चुस्की लेते हुए बोला, ‘मुझे सही नहीं लग रहा। एक पूरा दिन यूं ही निकल गया। मैं शिकायत करूंगा मलिक की। ऐसे वो अपने क्लायंट को ग्रांटेड नहीं ले सकता। हमे तो वो ले जा सकता था आज।’
राज ने रम का लंबा घूंट मारा, ‘सही कह रहे हो यार। मलिक एक नंबर का घाघ है। देखो, लड़की के नाम पर हमें कैसे अटका रखा है।’
राज कप टेबल पर रख कर उठ खड़ा हुआ, ‘मैं जा कर पता करता हूं। अगर तुम दोनों तैयार हो तो कल सुबह निकल जाएंगे। वो चौथा आए या ना आए।’
राज कमरे से बाहर निकल गया। साजन ने खिड़की खोल ली। कुहासे में लिपटा एक उनींदा सा कस्बा। दूर तक जाती सड़क। सड़क किनारे ढाबा। ढाबे की बत्तियां जल चुकी थीं। दूर से बस वही बिजली के लट्टू जलते–बुझते से नजर आते। राज उसे ढाबे की तरफ जाता दिखा। साजन के देखते–देखते राज दो में बदल गया। राज की कद–काठी ज्यादा नहीं थी। अब उसे राज के पीछे–पीछे किसी और का कद नजर आने लगा। राज अब उसके साथ वापस लौट रहा था। जब दोनों पास आए तो साजन ने गौर किया, राज के साथ वाकई एक युवती थी, लंबी, गठीले बदन की, बालों को उसने सिर के ऊपर बन सा बना रखा था। गले में मोटा मफलर, लंबा ऊनी कोट, पैरों में बूट।
साजन हलके से बुदबुदाया, ‘ओह… तो यह है चौथी मुसाफिर…’
रजा दरवाजा खोल कर भीतर आया। वो हलका सा उत्तेजित था, ‘इनसे मिलो। अरुपा मैडम…’
अरुपा आगे आई, बेतकल्लुफी से बोली, ‘अरुपा। दोस्त मुझे आरू कहते हैं। आप सबसे पहले तो माफी मांगना चाहती हूं। मेरी वजह से आप लोगों का एक दिन वेस्ट हो गया।’
जॉर्ज कुर्सी पर बैठा था, बस उसने एक अरूपा की तरफ एक उचाट नजर डाली। साजन तो पहले से खड़ा था। अचानक जैसे कमरे में रौनक आ गई। ठंडी, उखड़ी और पस्त हवा को जैसे नई जिंदगी मिल गई।
अरुपा ने सबसे हाथ मिलाया और कोने में पड़े मोढ़े पर बैठती हुई बोली, ‘अगर दिक्कत ना हो तो मुझे बताएं कॉफी कैसे बनाते हैं आप लोग? मेरे पास सेशे हैं और…’
राज तुरंत हरकत में आ गया, ‘आरू जी, चाय–कॉफी बनाना तो मेरा डिपार्टमेंट है। बस पांच मिनट दीजिए। गर्मागर्म कॉफी हाजिर करता हूं।’
इस बीच साजन ने अपने बैगपैक से बिस्किट निकाल कर प्लेट में सजा दिया।
अरुपा भी अपने साथ खाने के लिए नमकीन लाई थी। राज ने सबके लिए कॉफी बनाई। गर्म कॉफी का कप हाथ में उठाते ही अरूपा बोली, ‘उफ, कितनी ठंड है। इतनी हड़बड़ी में चली कि शराब रखना भूल गई। इस समय एकाध घूंट मिल जाता तो… ’
साजन कूद कर आगे आया, ‘आप बताइए, क्या पीना चाहेंगी? मेरे पास रम और व्हिस्की है। थोड़ी देर पहले मैं चाय में रम मिला कर पी रहा था।’
अरूपा की आंखें चमकने लगीं, उसने अपना कप साजन के हाथ में देते हुए कहा, ‘वाह, तो मिलाइए ना मेरे कप में। मजा आ जाएगा।’
साजन ने अरूपा के कप में रम उंडेल दिया। वो कप उठा कर एकदम से गटक गई। उसका चेहरा लाल हो गया। आंखें चमकने लगीं।
अरूपा पीठ पर एक गद्दा लगा कर सोफे पर टिक कर बैठ गई। उसने अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और सबकी तरफ बढ़ा कर धीरे से बोली, ‘आपमें से कोई लेना चाहेगा?’
राज ने लपक कर एक सिगरेट उठा लिया। उसने टेबल पर पड़ा लाइटर उठाया और एक सिगरेट जला कर अरूपा की तरफ बढ़ा दिया।
अरूपा ने सिगरेट का लंबा कश लिया और चौड़ी हो कर बैठ गई। साजन ने भी सिगरेट सुलगा लिया और कुर्सी पर आ बैठा।
अरूपा ने कुछ बेतकल्लुफी से बात शुरू की, ‘अच्छा, यह बताइए, आप लोग इतने खराब मौसम में यहां क्यों आए हैं? कोई तो वजह होगी?’
राज आगे की तरफ झुक कर बोला, ‘मैडम, क्या करें, बड़े दिनों से छुट्टियां प्लान की थीं। अब जा कर मिली हैं।’
अरूपा मुस्कराने लगी, ‘सही है। वैसे एक बात कहूं, इस मौसम में घूमने का अलग ही मजा है। आपमें से पहले कभी कोई कटवार गया है? वहां से आगे का रास्ता खतरनाक है। वहीं हम ट्रेकिंग करने वाले हैं ना? पिछली बार जब मैं वहां गई थी, तो इससे भी ज्यादा बर्फ पड़ रही थी। जब हम ऊपर की तरफ जा रहे थे, तो ऐसा लगा नहीं था कि वापस आ पाएंगे।’
‘तो आप वहां पहले जा चुकी हैं? फिर से जा रही हैं?’
‘हां, वैसे एक जगह पर दो बार जाना गुनाह है क्या? मेरी भी कुछ वजह है।’
साजन चुप हो गया, फिर धीरे से बोला, ‘मैं वहां अगली फिल्म की रेकी करने जा रहा हूं। सितंबर में यूनिट वहां शूटिंग करना चाहती है।’
अरूपा ने सिर हिलाया, फिर जॉर्ज की तरफ देखने लगी। जॉर्ज तुरंत सिर झटक कर वहां से बाहर निकल गया। यह बात राज और साजन की नजर में आ गई। अरूपा जब से आई है, जॉर्ज उसे इग्नोर कर रहा है।
अरूपा चुप हो गई। राज ने टहोका, ‘आपने अपने आने की वजह नहीं बताई?’
अरूपा धीरे से बोली, ‘मेरी वजह वो नहीं जो आप सोच पा रहे हैं। दरअसल मैं कैसे बताऊं। आप लोग कहीं मुझे गलत तो नहीं समझेंगे?’
साजन ने तुरंत नहीं में सिर हिलाया और राज की तरफ देखने लगा।
अरूपा अपनी रौ में बोलने लगी, ‘पता नहीं, आप लोगों से यह कहना चाहिए कि नहीं। सबसे पहले तो यह बता दूं कि मेरा असली नाम अरूपा नहीं है। हां, यह सही है कि दोस्त आरू बुलाते हैं। पर सिर्फ ये बताने पर आप मुझे तलाश नहीं सकते।’
राज चौंक गया, ‘आप ये सब क्यों बता रही हैं? हम आपको जज थोड़े ही करने वाले हैं?’
‘मैं जो बताने जा रही हूं, उसके बाद जरूर जज करने लगेंगे।’
कमरे में माहौल एकदम से तल्ख हो उठा। ऐसा क्या बताने जा रही हैं मोहतरमा? अरूपा उन दोनों का चेहरा गहराई से तौलने लगी, फिर भारी आवाज में बोली, ‘मैं यहां कुछ तलाशने आई हूं। तलाश आसान नहीं है। आप लोगों की हैल्प चाहिए। बोलिए करेंगे?’
‘पहले यह तो बताइए कि बात क्या है, आपको हमसे कैसी मदद चाहिए?’ साजन की आवाज तेज थी।
अरूपा रुकी। उसके चेहरे का रंग बदलने लगा। आंखें तपने लगीं। एक अजब सा धुआं सा छाने लगा उसके आसपास। वह कह रही थी, ‘पिछले साल इन्हीं दिनों मैं यहां आई थी, अपने पति के साथ। हम दोनों की शादी दस साल पुरानी है। मेरे पति ने कभी मेरी कद्र नहीं की। हर वक्त लड़ाई–झगड़ा, मार–पीट। मुझे लगा था, एक दिन सब ठीक हो जाएगा…’
अरूपा लंबी सांस ले कर रुक गई। साजन और राज को उसका रुकना खल गया।
‘फिर क्या हुआ? सब ठीक हो गया, मतलब… आपके पति…’ साजन बेचैन हो उठा।
अरूपा हंसी, पहले धीरे से, फिर थोड़ा तेज, ‘आदमी की आदतें कभी बदलती हैं क्या? वो तो दिन ब दिन बदतर होता जा रहा था। मुझे पता चला कि उसका एक औरत के साथ चक्कर चल रहा है। वो उसके साथ शादी करने वाला है। मैं एकदम से टूट गई। बाकि सब मैं सह सकती हूं, पर बेवफाई… ’
अरूपा की आवाज भर्रा गई। साजन उठ कर खड़ा हो गया। मन कर रहा था, सामने बैठी इस लाचार औरत का कंधा पकड़ कर उसे दिलासा दे।
वो अरूपा के सामने आ गया, ‘मैडम, आपका परिवार, बच्चे, वो लोग आपके साथ थे ना?’
अरूपा ने आंखें उठाईं, ‘मेरे बच्चे नहीं हैं, तभी तो…वो इस बात का ताना देता रहता था। मेरे परिवार में कोई नहीं। उसके माता–पिता गुजर चुके थे।’
‘ओह, सो सॉरी। पर ऐसे में आप अपने पति के साथ यहां क्यों आईं?’ राज अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया।
‘वही तो बताने जा रही हूं। दरअसल, मेरे पति को नहीं पता था कि मुझे दूसरी औरत के बारे में पता है। मेरे पति के माथे पर एक गूमढ़ था। मैंने बहाने से उससे कहा कि कटवार के आगे झील के किनारे माता का एक मंदिर है। मंदिर में माता के दर्शन के बाद झील में डुबकी मारो तो पुराने से पुराने गल ग्रह भी ठीक हो जाते हैं। मेरा पति अंधविश्वासी था। वो मेरे साथ चलने को तैयार हो गया। हम दोनों ऐसे ही मौसम में कटवार पहुंचे। जब हम झील किनारे पहुंचे, तो मैंने अपने बैग में रखी हथौड़ी से उसके सर पर वार कर दिया।’
‘क्या?’ राज के हाथ से कप छूट कर नीचे गिर गया।
‘आप इतना चौंक क्यों रहे हैं? मेरा पति अगर मुझे तलाक दे कर किसी दूसरी औरत से शादी कर लेता तो मैं कहां जाती? उसके लिए आसान था, दुनिया को यह बताना कि मैं पागल हूं। मुझे पहले दो बार वो पागल खाने में एडमिट कर चुका था। मैं अपना घर–बार छोड़ कर उसके साथ आई थी। मैं अकेली कहां जाती? वो भी बिना पैसे के?’
अरूपा चुप हो गई। साजन ने झुरझुरी ली, ‘आपने अपने पति को मार डाला?’
‘तो आप उसकी साइड हैं? हां, आप भी उसकी तरह एक पुरुष हैं। आप लोग जो करें, वो सही। हम अगर अपने लिए लड़ें तो गलत? उसने दस सालों में मेरे साथ क्या–क्या नहीं किया, वो नहीं दीख रहा आपको?’ अरूपा की आवाज हलकी सी तेज हो गई।
इस समय शराब का घूंट मारती और सिगरेट फूंकती अरूपा को देख यह अनुमान लगाना मुश्किल था कि वो सच कह रही हैं।
अरूपा अपने हाथ में फंसा सिगरेट बुझा कर उठ खड़ी हुई, ‘यारों, मुझसे गलती हो गई, मैंने अपनी आपबीती सुना दी। कोई नहीं। भूल जाइए कि मैंने आपको कुछ बताया है। मुझे बहुत भूख लगी है। मैं ढाबे पर खाने जा रही हूं। आप लोग आना चाहेंगे?’
राज का मुंह अभी भी खुला हुआ था, उसने धीरे से कहा, ‘आरू, आपने कहा था कि आपको हमसे मदद चाहिए। क्या, वो तो आपने बताया नहीं?’
अरुपा सिर हिलाने लगी। सोच कर धीरे से बोली, ‘जाने दीजिए। आप लोगों से नहीं हो पाएगा।’
राज ने तुरंत कहा, ‘आप कह कर तो देखिए?’
‘क्या कहूं? आप दोनों का रिएक्शन देख कर ही समझ गई कि आप लोग किस टाइप के हैं?’
‘किस टाइप के मतलब?’ राज नाराज हो कर जरा तेज आवाज में बोल पड़ा।
‘अब आप मतलब भी जानना चाहते हैं? जब मैंने यह बताया कि मैं अबला हूं, मेरा पति मुझ पर टॉर्चर करता था, तो मैं आप लोगों की नजर में ठीक थी। जैसे ही मैंने कहा कि मैंने अपनी उसी पति को मारा, तो आप लोगों की नजरें बदल गईं। मैं समझ गई, आप लोगों को अपनी कहानी सुनानी ही नहीं थी। जो काम मैं आप लोगों से कहने वाली थी, वो खुद भी कर सकती हूं। मैंने अपने आपको भीतर और बाहर से बहुत मजबूत बना लिया है।’
‘आप गलत समझ रही हैं।’ साजन बीच में बोल पड़ा, ‘कम से कम मैं ऐसा नहीं समझता। मैं मुंबई में रहता हूं। जिंदगी में बहुत कुछ देखा है। आप मुझे बताइए।’
अरुपा ने उसकी तरफ गहरी निगाह डाली। उसकी आंखें सीधे जैसे उसकी रूह में झांक रह थी। अरूपा ने जैसे उसे ललकारते हुए कहा, ‘पहले कुछ खा लेते हैं। फिर देखते हैं…’
अरूपा अपना पर्स उठा कर कमरे से बाहर आ गई। उसके पीछे–पीछे साजन और राज भी आ गए। राज ने पीछे से आवाज दे कर कहा, ‘मैडम, अगर आप चाहें तो कमरे में भी खा सकते हैं। खाना रखा है। साथ में रस रंजन …’
‘हटिए, मैं इतनी ठंड में कुछ गर्म खाना चाहती हूं, आप लोगों को चलना हो तो चलिए। वरना मैं तो चली।’
अरूपा को आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी। राज और साजन उसके साथ हो लिए। ढाबे पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। दो–चार टूरिस्ट थे। ठंड इतनी कि दांत चरमरा जाए।
एक कुर्सी पर पसरते हुए अरूपा बोली, ‘आपके साथ वो तीसरा आदमी… उसे कुछ दिक्कत है क्या? मैं देख रही हूं, जबसे मैं आई हूं, वो एटीट्यूड दिखा रहा है।’
साजन ने राज की तरफ देखा और कंधे उचकाते हुए कहा, ‘ऐसा ही है। अजीब सा। वैसे हमारी भी मुलाकात उससे यहीं हुई है।’
अरूपा ने मेज पर पड़ा मेन्यू उठा लिया और बुदबुदाते हुए पढ़ने लगी, ‘मटर पनीर, दाल मखनी, सोया चाप, मलाई कोफ्ता। उफ, पहाड़ों में भी यही सब मिलता है। मैं तो गर्मगर्म मैगी खाऊंगी।’
उन दोनों ने भी अरूपा की देखादेखी मैगी का ऑर्डर दे दिया। खाना आने तक सब चुप रहे। ठंढ बढ़ रही थी। मेज पर रखी कटलरी हवा से बजने लगी थी। दांत बजने लगे थे। उंगलियां जमने लगी थीं। जैसे ही वेटर ने खाना लगाया, अरूपा ने गर्म प्लेट पर अपने दोनों हाथ रख लिए और लंबी सांस ले कर बोली, ‘लगता है, आज रात खूब बर्फ पड़ने वाली है।’
‘देट इज ग्रेट आरू जी। मैं तो यहां बर्फ देखने ही आया हूं। लाइफ में पहला एक्सपीरिएंस है।’ राज ने उत्साह के साथ कहा।
अरूपा ने कुछ कहा नहीं। हालांकि उन दोनों को उसके कहने का इंतजार था। मैगी खत्म करने के बाद अरूपा चैन से कुर्सी के पीछे टिक कर बैठी। पर्स से सिगरेट निकाल कर सुलगाया।
‘साल भर से बुरी लत लग गई है। बस वापस जाते ही छोड़ दूंगी।’
सिगरेट का एक–दो कश लेने के बाद वो सामने की तरफ झुक कर बोली, ‘मैं जो आपसे मदद चाहती हूं, पता नहीं आप कर पाएंगे या नहीं। दरअसल मुझे दस दिन पहले ही पता चला कि मेरे पति अपने दाएं हाथ में नीले रंग की हीरे की अंगूठी पहनते थे, वो बेहद महंगी अंगूठी थी। वो मेरे पति के दूर के रिश्तेदार कुछ दिनों पहले अमेरिका से आए थे। वो बता रहे थे उस अंगूठी के बारे में। तीन साल पहले एक लाख डॉलर में खरीदी थी। तो कितने की हुई? अस्सी लाख?’
साजन की आंखें हलका सा झपकीं।
‘मैंने अपने पति की लाश जहां दफन की थी, वो जगह बस मुझे पता है। मुझे लगा, एक बार देखना चाहिए, अंगूठी मिल जाए तो कितना अच्छा हो। मतलब… मेरी जिंदगी बन जाएगी। मेरे पति कुछ ज्यादा मेरे लिए छोड़ कर नहीं गए हैं। एक पुराना सा दो कमरे का घर है। मुझे लगा था कि उनके पास बहुत पैसे होंगे। पर वो सब उस औरत पर लुटा चुके थे।’
‘आपने अपने पति की लाश को अकेले दफनाया?’ साजन की आवाज फुसफुसाहट से तेज थी।
‘श्श्श्श्। आप भी गजब करते हैं। सबको बताना चाहते हैं क्या? आप पर यकीं करके बता रही हूं।’
राज गंभीर हो गया, ‘आप ये काम हमसे क्यों करवाना चाहती हैं?’
अरूपा हलका सा हंसी, ‘आप नहीं समझे? मैं किसी जानकार को अपने साथ ला कर फंसना नहीं चाहती। अनजान आदमियों पर भरोसा करना ज्यादा सही होता है।’
‘पर हम आपका काम क्यों करेंगे? मतलब हमें इससे क्या फायदा होगा?’
राज की इस बात से साजन भी सहमत था। वो धीरे से सिर हिलाने लगा, ‘आरू जी, अगर मान लीजिए कि हमने आपकी बात मान ली। आपकी मदद करने को तैयार हो गए। लेकिन लाश को बाहर निकालते समय अगर किसी ने हमें देख लिया तो? हम तो बेमौत मारे जाएंगे ना?’
‘लगता है आप क्राइम थ्रिलर वगैरह ज्यादा देखते हैं। मैंने अपने पति को जहां दफन किया है, वहां बहुत कम मुसाफिर जाते हैं। और इस मौसम में तो और भी नहीं।अगर वहां कोई होगा तो जाहिर है हम यह काम तब नहीं करेंगे। वैसे भी यह एक रिस्क है। मैं आपको फोर्स नहीं कर रही हूं। करना चाहें ता करें। वरना मैंने कहा ना, अकेली ही काफी हूं।’
‘और हमें आपका काम करने के बदले क्या मिलेगा?’
अरूपा के चेहरे का रंग बदलने लगा। वो मुस्कराने लगी, ‘ये की ना आपने काम की बात। आपको क्या चाहिए, कैश या काइंड? देखिए कैश तो अभी दे नहीं पाऊंगी। अंगूठी मिल भी गई तो उसे बेच कर पैसे आने में वक्त लगेगा। काइंड…’
‘वो क्या है?’ राज अधीर हो उठा।
अरूपा की आवाज जैसे गहरे कुएं से आने लगी, ‘मैं आपके साथ सो सकती हूं।’
साजन और राज का मुंह खुला का खुला रह गया। अरूपा शांत थी, जैसे उसने कुछ ना कहा हो। वेटर बिल ले कर आ गया। साजन ने बिल चुकाया। तीनों उठ कर बाहर आए। सड़क सुनसान हो चली थी। हवा ठंड से भरी और तेज थी। अरूपा उन दोनों के बीच चल रही थी। अचानक उसने कहा, ‘आपको सौदा ठीक लगा?’
साजन ठिठक गया, ‘अगर काम होने के बाद आप मुकर गईं तो?’
अरूपा हंसी, ‘ओह, तो इसमें क्या बड़ी बात है? काम शुरू होने से पहले ले लीजिए।’
राज भौचक्का सा खड़ा रहा। साजन ने फिरकी ली, ‘अगर कल सुबह मैंने आपका काम करने से मना कर दिया तो?’
अरूपा ने लापरवाही से कंधे उचकाए, ‘माइ बैड लक। मैंने तो आप पर यकीन किया ना, आप मना कर देंगे तो मैं क्या कर सकती हूं? किसी एक को पहले यकीं करना होगा। मैं ही सही।’
माहौल गर्म होने लगा। राज कमरे तक आते–आते पस्त पड़ गया। उसने इशारे से साजन को अपने पास बुलाया, ‘ब्रो, यह सही होगा क्या? मतलब यूं उसके साथ सेक्स करना?’
‘तुम उसकी हैल्प करना चाहते हो क्या? इसमें गलत कुछ नहीं है भाई। वो अपनी मर्जी से दे रही है। कोई हम जबरदस्ती थोड़े ही कर रहे हैं।’
राज हिचकिचाया, ‘हम दोनों? आज की रात? वो कैसे…’
‘अरे यार, तू कुछ ज्यादा सोच नहीं रहा? जो काम वो कह रही है, वो मुश्किल नहीं है। हम दोनों साथ रहेंगे तो जल्दी हो जाएगा। फिर वो अपने रास्ते, हम अपने रास्ते। हम वैसे भी तो यहां मजा मारने और एडवेंचर के लिए ही तो आए हैं!’
राज चुप हो गया। साजन ने उसके कंधे पर हाथ रखा, ‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’
‘नहीं यार। मुझे जम नहीं रहा। मैं रहने देता हूं।’
‘वाह। तुम्हारे मुंह के पास मिठाई है और तुम खाने से मना कर रहे हो? मौसम है, माहौल है, बिना किसी रिस्क के सेक्स मिल रहा है तो मना क्यों कर रहा है? ऐसा करते हैं, हम दोनों बारी–बारी कर लेते हैं। ऐसा कर, पहले तू जा। फिर मैं…’
राज नहीं में सिर हिलाया, ‘मैं तैयार नहीं हूं। वो क्या है ना, घर में हजार पचड़े हैं। मेरी वाइफ को पता लग गया तो कहीं का नहीं छोड़ेगी।’
‘उसे पता कैसे लगेगा डफर? कौन बताएगा? आरू, मैं या तुम खुद?’
‘मुझे रहने दे यार। मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही। सोना चाहता हूं। तू कर ले। एंजॉय…’
साजन ने उसकी तरफ ऐसे देखा, जैसे उससे ज्यादा अहमक उसने कभी देखा ना हो।
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इस समय मलिक उन चारों के साथ था। उन्हें बता रहा था कि कल सुबह छह बजे यहां से निकलेंगे। डेढ़ घंटे में कटवारा जा कर पहुंचेगे। वहां नाश्ता करके आगे बढ़ेंगे। आगे का रास्ता चल कर तय करना है। दो घंटे की चढ़ाई है। दोपहर तक गेस्ट हाउस पहुंच जाएंगे। लंच वहीं होगा। रात को वहीं रुक कर अगले दिन वापस आएंगे। मलिक उन सबको वार्न करते हुए बोला, ‘ट्रेकिंग किसी भी समय रुक सकती है। अगर कटवारा से आगे का रास्ता बंद हुआ तो हमें वापस लौटना होगा। मुझे उम्मीद है कि कल सुबह का मौसम साफ होगा। आप सब लोग रेस्ट कीजिए। सुबह अलार्म लगा कर उठ जाइए। टाइम से निकलेंगे। कोई अगर नहीं आना चाहता तो यहीं रुक जाए। नो प्रॉब्लम।’
जॉर्ज बड़बड़ाया, ‘यहां तो कल से रुके हैं बड्डी। यहां रुकने के लिए तो इतने पैसे नहीं दिए?’
‘वाजिब बात सर जी। मैं तो कह रहा हूं कि चलेंगे। बर्फ में ट्रेक कीजिए। आनंद है साब आनंद।’
जॉर्ज महसूस कर रहा था कि अरूपा की नजरें उससे चिपकी हुई हैं। वो मलिक की बातें शायद सुन भी नहीं रही थी। वो जानबूझ कर उसके पास बैठी थी और लगातार उससे सटने की कोशिश कर रही थी। साजन की निगाह से यह बात नहीं छिपी। मलिक के जाते ही साजन ने कुछ जोर से कहा, ‘आरू जी, मेरे कमरे में चलते हैं। आपसे जरूरी काम है।’
अरूपा बेमन से उठी और साजन का हाथ पकड़ कर उसके साथ चलने लगी। जॉर्ज ने राज की तरफ देखा और भौंह ऊपर कर हाथ के इशारे से पूछा, क्या माजरा है। राज उठ कर उसके पास आ गया। धीरे से बोला, ‘ये औरत कमाल की चीज है। एक साल पहले अपने हजबैंड के साथ यहां आई थी। उसे मार कर कटवारा में कहीं गाड़ दिया। अब डेडबॉडी से रिंग लेने आई है। उस काम में हमारी हैल्प चाहती है। कह रही थी हैल्प करने के लिए वो सेक्स करने को तैयार है।’
जॉर्ज बुरी तरह चौंक गया, ‘ये क्या चूतियापा है बे? और वो साजन, उस मोहतरमा को इसलिए अपने कमरे में ले कर गया है?’
राज ने जोर से हां में सिर हिलाया। जॉर्ज उत्तेजना से उठ कर खड़ा हो गया, ‘हमें मलिक को बताना चाहिए। कल को अगर कुछ उलटा–सीधा हो गया तो ये बेचारा फंस जाएगा।’
‘उलटा–सीधा माने? वो बंदा तो पहले ही मर चुका है। एक साल पहले…’
‘तुम इतने श्योर कैसे हो सकते हो? जो बंदी अपने पति को मार सकती है, उसके लिए एक अजनबी की क्या बिसात? और अब तो उसकी स्टोरी तुम भी जानते हो।’
‘मतलब, वो क्या करेगी? मुझे भी, मुझे भी…’ कहते–कहते राज ने झुरझुरी ली, ‘ब्रो, मैं साजन के पास जा कर उसे ये बताऊं? वो अभी…’ राज हकलाने लगा।
जॉर्ज ने उसकी पीठ पर धौल मारते हुए कहा, ‘क्या कहेगा उससे? वो सुनेगा तेरी बात? चल मेरे साथ। मलिक के पास।’
दोनों तेजी से बाहर निकले। उन्हें लगा, मलिक भी इसी होटल में ठहरा होगा। पर वो तो मोटरसाइकिल से अपने घर जा चुका था। पांच किलोमीटर दूर एक गांव में रहता था मलिक। कल सुबह भी उसे यहां नहीं आना था। गाड़ी के साथ जो ड्राइवर आने वाला था, वो ही उनका गाइड भी था।
राज की हालत खराब थी। वो हलका सा कांप रहा था। जॉर्ज उसकी फिरकी लेते हुए बोला, ‘क्या हुआ ब्रो? तू इतना परेशान क्यों है? क्या तेरे पास उस औरत का ऑफर नहीं था?’
राज ने हां में सिर हिलाया, फिर धीरे से बोला, ‘मेरी हिम्मत नहीं हुई। मुझे वो… दिक्कत है…मैं दवाई ले रहा हूं। ’
जॉर्ज जोर से हंस पड़ा। राज ने सिर झुका लिया, फिर बुदबुदा कर बोला, ‘भाई क्या लगता है तुझको? वो औरत मेरे साथ भी कुछ करेगी?’
जॉर्ज ने उसका कंधा थपथपा दिया, ‘पता नहीं। मुझे तो यह भी नहीं पता कि वो सच कह रही है या झूठ। एक काम करते हैं। कल हम दोनों उनके साथ चलते हैं। कटवारा पहुंच कर पता चल ही जाएगा…’
राज ने लौटते ही साजन के कमरे के दरवाजे पर कान लगा लिया। जॉर्ज ने उसे पीछे से टहोका, ‘ब्रो, तू कर क्या रहा है?’
राज खिसियाता हुआ हंसा, ‘कोई आवाज नहीं आ रही। मुझे लगा…’
जॉर्ज उसका हाथ पकड़ कर उसके कमरे तक ले आया, ‘बड़ा कन्फ्यूज बंदा है तू। अच्छा, थोड़ी देर सो जा। कल सुबह जल्दी निकलना है।’
राज ने अलार्म लगा लिया। पर उसे बिलकुल नींद नहीं आई। आई भी तो टूट–टूट कर। पांच बजे उठ कर बाहर आ गया। किचनेट में केतली में पानी गर्म कर चाय बनाने लगा। उसकी निगाह लगातार साजन के कमरे के दरवाजे पर थी। दो–तीन बार वो दरवाजे के पास कान गढ़ा आया। एकदम सन्नाटा।
आधे घंटे बाद जॉर्ज उठ कर आया। राज ने उसके हाथ में गर्म कॉफी का कप पकड़ाते हुए कहा, ‘वो दोनों लगता है अभी उठे नहीं।’
जॉर्ज सिर हिलाने लगा, ‘आ जाएंगे भाई। काम तो उन दोनों को करना है।’
राज उसके उत्तर से संतुष्ट नहीं था, ‘तुम कह रहे हो, हमें भी उनके साथ जाना चाहिए। मुझे लग रहा है…’
‘ब्रो, चिल। इतना मत सोचो। पहले ड्राइवर को आ जाने दो।’
छह बजे साजन अपने कमरे से निकला।
‘गुड मार्निंग। तुम दोनों तैयार हो? आरू कहां है? इज शी अप?’
जॉर्ज और राज एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। जॉर्ज ने व्यंग्य से कहा, ‘ये तो तुम्हें पता होगा। रात को तुम उसके साथ थे।’
साजन खिसियानी सी हंसी हंसते हुए बोला, ‘ओह, तो राज ने तुम्हें सब बता दिया? कहां? वो तो मेरे कमरे में आते ही बोली, तबीयत खराब है, सिर में दर्द है। फिर चली गई।’
जॉर्ज हंसने लगा, ‘यार, वो तो तेरा केएलपीडी कर गई!’
साजन के चेहरे का रंग उड़ गया।
ड्राइवर थोड़ी देर से आया। उसके पास सुनाने के लिए एक खबर थी, ‘साब, कल रात को बारह बजे होटल से मैडम का फोन आया था। वो बोली, उनको रात को जाना है। अर्जेंट गाड़ी चाहिए। उनको छोड़ कर अभी लौट रहा हूं।’
साजन का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘कहां छोड़ कर आए हो उनको?’
‘वो कटवार जाना था। बोलीं, उनका पुराना घर है। वहां से कुछ लेना है।’
‘और? तुम उसको वहां छोड़ कर आ गए?’
ड्राइवर ने सिर झुका लिया।
‘बोल स्साले, पूरी बात क्यों नहीं बताता? क्या किया तूने उसके साथ?’
ड्राइवर के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘ साब…बोला ना। मैं तो बस उनको छोड़ने गया था।’
‘गधे, उल्लू के पठ्ठे, वहां उसका घर है? वो तो वहां किसी दूसरे काम से गई है।’ जॉर्ज की आवाज तेज थी।
साजन ने ड्राइवर का कॉलर पकड़ लिया, ‘हमें तू ले चल वहां। देखते हैं, तू सच बोल रहा है या झूठ।’
कटवार के रास्ते में वो तीनों मुसाफिर चुप थे। बस सबके दिल धड़क रहे थे। वहां क्या करने गई है अरूपा, वो भी इस तरह अकेले में निकल कर।
कटवार शुरू होते ही नए–पुराने मकान दिखने लगे।
ड्राइवर ने एक घर के सामने गाड़ी रोक दी। साजन झटपट गाड़ी से उतरा और दौड़ता हुआ गेट खोल कर उस पुराने से दिख रहे घर की घंटी बजाने लगा।
दरवाजा खुला। उसके सामने एक बंदा खड़ा था, तगड़ा, लंबा–चौड़ा। साजन हकलाने लगा, ‘वो आज सुबह अरूपा यहां आई थीं। उनसे बात हो सकती है?’
‘कौन अरूपा? ऐसा तो कोई नहीं आया। तुम गलत घर पर आ गए हो ओल्ड मैन। मैं यहां अकेले रहता हूं। कोई शक?’
साजन ने पीछे मुड़ कर ड्राइवर की तरफ देखा। ड्राइवर सिर झुकाए हां में सिर हिला रहा था।
किसी का मन वहां से आगे जाने का नहीं था। इतने ठंडे मौसम में ट्रेकिंग सबको बेकार का आयडिया लगने लगा।
शाम तक कटवारा में समय गुजारने के बाद तीनों वापस लौट पड़े। अगले दिन होटल से निकल कर मनाली जाने के लिए टैक्सी स्टैंड पहुंचे। वहां उन्हें एक बेंच पर नजर आ गई, वही, आरू। लेकिन आरू ने उन तीनों को पहचानने से इंकार कर दिया। किसी बात का जवाब दिए बिना वो अपने मोबाइल पर लगी रही। यही कहती रही, आप मुझे जो समझ रहे हैं, मैं वो हूं नहीं। आप लोगों को कोई धोखा हुआ है।
पता नहीं वो चौथी मुसाफिर कहां जा रही थी। जब वो टैक्सी में बैठी तो उन तीनों की तरफ देख कर जोर से हाथ हिला कर मुस्कराते हुए बोली, ‘सी यू सम अदर टाइम।’
टैक्सी चली गई। साजन चौंका सा खड़ा था। अचानक उसके मुंह से निकला, ‘देखो, देखो, उसने जानबूझ कर अपना हाथ हिलाया। वो आरू ही थी। वो तो बस हमारी फिरकी ले रही थी। क्या कल रात उसने ये नीले हीरे की अंगूठी पहन रखी थी?’
राज ने बस कंधे उचका कर कहा, ‘पता नहीं यार…’
तीनों मुसाफिरों ने एक–दूसरे की तरफ देखा और मनाली जाने वाली टैक्सी की तरफ बढ़ गए।