जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

खुर्शीद अनवर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. मौलिक दृष्टि रखने वाले साहसिक विद्वान. उन्होंने अंग्रेजी के माध्यम से विदेशी भाषा के अनेक कवियों की महत्वपूर्ण कविता के अनुवाद किये थे. यहाँ प्रस्तुत है पाब्लो नेरुदा की एक लम्बी कविता का खुर्शीद अनवर द्वारा किया गया अनुवाद. 
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लफ्ज़ 

लफ़्ज़ वारिद हुआ 
खून में दौड गया 
परवरिश पाता रहा जिस्म की गहराइयों में 
और परवाज़ भरी होंटों से और मुँह से निकल 
दूर से दूर भी नज़दीक बहुत ही नज़दीक 
लफ़्ज़ बरसा किए 
पुरखों दर पुरखों भी और नस्लों की मीरास के साथ 
और वह बस्तियाँ जो पहने थी पत्थर के लिबास 
थक चुकी थीं जो खुद अपने ही बाशिंदों से दबी 
क्योंकि जब दर्द ने सडकों को छुआ और बढ़ा 
लोग आते भी गए दूर कहीं जाते भी 
बीज लफ़्ज़ों के दुबारा कहीं बोने के लिए 
पानी का रिश्ता ज़मीनों से बनाने के लिए 
और यही वजह है मीरास हमारी है यह 
वही झोके हैं हवाओं के कि जोड़ें हमको 
दफ़न इन्सानों से रिश्तों ने पिरोयें हमको 
और वह सुबह नई सुबह का पैग़ाम नया 
जो कि बेताब है मंज़र पे कभी आने को 
आज भी काँपती है सारी फ़िज़ा 
गूँज से लफ़्ज़ की जो पहले पहल बोला गया 
घोर अंधियारों में ड़र और किसी आह के साथ 
लफ़्ज़ उभरा तो सही पर कहीं गर्जा न कोई 
और फिर आहनी झंकार सी बहती ही रही
उसी एक लफ़्ज़ की 
जो पहले पहल बोला गया 
गो कि मुमकिन है कि एक लहर थी या इक क़तरा 
अब यह आलम है कि झरना है जो रुकता ही नहीं 
वक़्त गुज़रा तो फिर इस लफ़्ज़ में मानी उभरे 
कोई बच्चा था जो जीवन को सजाने आया 
तमाम खल्क़ महज़ जन्म थी और थी आवाज़ 
इत्तेफ़ाक़ , साफ़ और मज़बूती लिए 
साथ इनकार लिए 
और तबाही का,कभी मौत का पैग़ाम लिए 
सारी ताक़त सिमट के घुल गयी क्रियाओं में 
बिजलियाँ भर गईं रौनक़, जो मिले दो पहलू 
ज़िन्दगानी का वजूद और उसके साथ की ख़ुशबू 
रौशनी फैल गई और सजावट से धजी चाँदी से 
उसके कोनों थे हर्फ़ और जो अल्फ़ाज़ थे इन्सानों के 
और विरासत का था जो जाम वह छलका ऐसे 
खून में फैल गया अपना बयाँ साथ लिए 
यह वह लम्हा था कि ख़ामोशी का दामन फैला 
सफ़र पूरा हुआ इंसान के लफ़्ज़ों में समा 
मौत का ज़िक्र ही क्या, इंसान का पूरा ही वजूद 
भाषा विस्तार ले तो बालों में उगती है जुबाँ 
होंट हिलते भी नहीं मुंह से निकलते हैं लफ्ज़ 

घुल गया सारा वजूद लफ़्ज़ में इंसानों के 
यक-ब-यक नज़रें ही बन जाती हैं लफ्ज़ 
लफ़्ज़ों को लेता हूँ और नफ्स में भर लेता हूँ 
ऐसा लगता है कि यह लफ़्ज़ नहीं इंसाँ हैं 
लफ़्ज़ों के लय में उतरता हूँ तो खो जाता हूँ 
इनकी तरतीब मुझे डालती है हैरत में
बुदबुदाता हूँ कि जिंदा हूँ अभी 
और हैरत में हूँ कुछ बोल नहीं पाता हूँ ।

और धीरे से क़दम अपने बढाता हूँ उधर 
ख़ामोशी लफ़्ज़ों की छाई है जिधर 
जाम उठाता हूँ मैं लफ़्ज़ों के लिए 
लफ़्ज़ एक या कि दमकता शीशा 
जिसमे मैं ढ़ालता हूँ जाम अपना 
जाम यह भाषा की खालिस मय है 
कोई बहता हुआ पानी जो ठहरता ही नहीं 
लफ़्ज़ के जन्म का की वजह है यह 
जाम और पानी और खालिस यह शराब 
मेरे नग़मों को बुलंदी सी अता करते हैं 
क्रिया है लफ़्ज़ों की जां और ज़रिया वाहिद 
जिंदगी बन के मेरे खूं में उतर जाती है 
खून जो लफ़्ज़ों के मानी को बयां करता है 
खुद को फैलाव का पैगाम दिया करता है 
लफ़्ज़ शीशे को ज़िया देते हैं और खून को खून 
और जीवन को भी यह जीवन ही अता करते हैं 

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7 Comments

  1. कुछ नहीं सिर्फ इक खुर्शीद मरा है यारो !
    बड़ा खुद्दार था, ऊपर से, गिरा है यारो !

    बड़ा बदनाम था,कुछ खौफ नहीं खाता था
    इन दिनों नशे में,सूरज से लड़ पड़ा यारो !
    http://satish-saxena.blogspot.in/2013/12/blog-post_3416.html

  2. वाह इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए और आह खुर्शीद- तुम्हारे लिए।

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  5. Certains logiciels détectent les informations d’enregistrement d’écran et ne peuvent pas prendre de capture d’écran du téléphone mobile. Dans ce cas, vous pouvez utiliser la surveillance à distance pour afficher le contenu de l’écran d’un autre téléphone mobile.

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