अमृत रंजन की कविताएं तब से पढ़ रहा हूँ जब वह कक्षा 6 में था. अब वह कक्षा 7 में है. डीपीएस पुणे के इस प्रतिभाशाली की कविताएं इस बार लम्बे अंतराल के बाद जानकी पुल पर आ रही हैं. इससे पहले आखिरी बार हमने इसे तब पढ़ा था जब इसने चेतन भगत के उपन्यास ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ की समीक्षा लिखी थी. इसकी कविताओं की भावप्रवणता, प्रश्नाकुलता और उनके बीच अपनी वैचारिक राह बनाने की आकुलता बार बार आकर्षित करती है. आप भी पढ़िए और राय दीजिए- मॉडरेटर.
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(1)
कृष्ण तुमने वह कर दिखाया
हे श्री कृष्ण
तुम हमारे भगवान हो।
तुमसे बड़ा इस पूरे संसार में कोई नहीं है।
तुम भिन्न-भिन्न रूप धारण
करके पृथ्वी पर आते हो।
तुम धर्म और सच्चाई की पूजा करते हो।
फिर…क्यों
तुमने द्रोण
तुम्हारा भक्त,
जो अपने बेटे के खोने के झूठ से,
तपस्या करने चला गया था।
अपने हथियार, सब कुछ फेंक दिए थे।
और उसे तुमने बेरहमी से मार गिराया।
यहाँ धर्म और सच दोनों टूटे।
माना एक गलती हुई,
सबसे होती है।
एक भगवान से भी।
लेकिन तुमने कर्ण,
जिसके रथ का पहिया
मिट्टी में फंस गया था।
उसे मार गिराया।
माना कि दूसरी गलती हुई,
सबसे होती है,
एक भगवान से भी।
लेकिन भीष्म,
तुम जानते थे कि भीष्म
तुम्हारे जैसा नहीं है,
वह धर्म और सच के रास्ते चलता है।
इसलिए शिखण्डी
जो एक और पैदा हुई थी
उसे भीष्म के सामने खड़ा कर दिया।
भीष्म ने तलवार फेंक दी
और तभी तुमने अर्जुन को उन्हें मारने बोला।
लेकिन यह तीसरी गलती
इंसान नहीं कर सकता,
वह एक भगवान ही कर सकता है।
हम इसलिए तुम्हारी पूजा करते हैं
तुमने वह कर दिखाया
जो इंसान नहीं कर सकता।
(सी. राजगोपालाचारी की महाभारत (मूल) पढ़ने के बाद)
(08-01-2015)
(2)
रोज़ा
आगे बैठती थी वह उसके
मालूम नहीं कि कैसे गणित, हिन्दी, अंग्रेजी
सब उसकी जुल्फ़ों को देखकर गुजर जाते।
उसे हर दिन स्कूल
जाने का मन करने लगा।
रोज़े का समय आया,
वह कुछ नहीं खाती
उसके साथ वह भी कुछ नहीं खाता।
एक दिन बड़ा लज़ीज़ कोफ़्ता लाई थी वह,
सब कुछ मैं ही खाए जा रहा था।
वह रोक नहीं सका और एक कोफ़्ता खा लिया।
जब मैं स्कूल ख़त्म होने के बाद उससे मिला
तो वह रो रहा था,
“यार आज मैं उसका साथ नहीं दे पाया।”
(3)
खुशी का ज़ीना
हताश में एक आदमी नीचे बैठ गया,
उस समय उसके दिमाग में कुछ नहीं आया,
बस खुशी के ज़ीने ने उसे घेर लिया।
दिन रात वह सोचता रहता था
खुशी के बारे में
कुछ भी कर सकता था वह अपनी
खुशी के लिए,
एक तिनके भर खुशी
उसकी जिंदगी का मकसद बन गई।
उसने एक दिन दुख को मरते देखा,
हालात में पड़ गया वह।
जो दुख उसे अभी भी
हताश से तड़पा रहा था
उसके सामने,
उसके पैरों पर,
उससे मदद माँग रहा था।
उसने अपने दिल से सोचा
मन से नहीं।
उसने दुख की जान बचाई,
यह करने से उसके दिल को शांति मिली,
दुख का हाथ उसके कंधे पर था,
दोनों एक साथ चले
अहसास को दोनों में से कोई नहीं जानता था,
साथ चलने को जानते थे।
(04-10-2014)
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(4)
चीड़
जंगलों की सैर करने गया था
आवाज़ों को पीने की कोशिश की थी
लेकिन
पेड़ों ने बोलने से इन्कार कर दिया।
चीड़ की चिकनी छाल को छुआ
लेकिन
उसने मेरे हाथों में काँटे चुभा दिए।
(5)
दिल के पन्ने
इन पन्नों को कई बार पढ़ चुका हूँ,
सुन चुका हूँ।
लेकिन इनमें बस
कुछ शब्द सुनाई पड़ते हैं,
पूरा वाक्य कभी नहीं।
इन नटखट शब्दों से वाक्य को
बेतहाशा जानने का मन करता है,
लेकिन वाक्य कहीं खो जाते,
आँखों के सामने नहीं आना चाहते मेरी।
यह किसके दिल के पन्ने हैं?
कुछ कहना ही नहीं चाहते।
शब्द स्पष्ट होने लगते हैं कि
एक लड़की इन पन्नों को
छीन ले जाती है।
मैं समझ जाता हूँ।
यह उस औरत के पन्ने थे
जो कहानी कहना नहीं जानती।
(12 – 09 – 2014)
(6)
अव्वल सपनों की दुनिया
माँ चाहती थी परीक्षा में अव्वल आऊँ
पा की भी यही चाहत थी।
लेकिन मैं यह नहीं चाहता था।
मैं बस सपनों को देखने की दौड़ में
अव्वल आना चाहता था।
ज़रा सोचिए कि मैंने सपना ही
क्यों चुना?
सपना,
इसलिए कि यह वही चीज़ है
जिसकी आप पूरे दिल से चाहत करो,
तो भी यह अपना मुँह मोड़ के,
किसी और के दिल में
जगह बनाकर
आखिर में
मुँह मोड़ के चली जाएगी।
मैं इस सपने को मना कर,
सपना पूरा करूँगा।
और आख़िर में
सपने से मुँह मोड़ के,
काली रात में
समा जाउँगा।