आज हिंदी के उपेक्षित लेकिन विलक्षण लेखक शैलेश मटियानी की पुण्यतिथि है. उन्होंने अपने लेखन के आरंभिक वर्षो मे ‘कविताएं’ भी लिखी थीं. आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी कुछ कविताएं यहां दी जा रही हैं, जिन्हें उपलब्ध करवाने के लिए हम दिलनवाज़ जी के आभारी हैं- जानकी पुल.
नया इतिहास
अभय होकर बहे गंगा, हमे विश्वास देना है –
हिमालय को शहादत से धुला आकाश देना है !
हमारी शांतिप्रिया का नही है अर्थ कायरता
हमे फ़िर खून से लिखकर नया इतिहास देना है !
लेखनी धर्म
शांति से रक्षा न हो, तो युद्ध मे अनुरक्ति दे
लेखनी का धर्म है, यु्ग-सत्य को अभिव्यक्ति दे !
छंद –भाषा-भावना माध्यम बने उदघोष का
संकटों का से प्राण-पण से जूझने की शक्ति दे !
संकल्प –रक्षाबंध
गीत को उगते हुए सूरज –सरीखे छंद दो ,
शौर्य को फ़िर शत्रु की हुंकार का अनुबंध दो ,
प्राण रहते तो ना देंगे भूमि तिल-भर देश की
फ़िर भुजाओं को नए संकल्प-रक्षाबंध दो !
मुक्तक
खंडित हुआ खुद ही सपन ,तो नयन आधार क्या दे
नक्षत्र टूटा स्वयं, तो फ़िर गगन आधार क्या दें
जब स्वयं माता तुम्हारी ही डस गई ज्यों सर्प सी
तब कौन तपते भाल पर चंदन –तिलक-सा प्यार दो !
दर्द
होंठ हँसते हैं, मगर मन तो दहा जाता है
सत्य को इस तरह सपनों से कहा जाता है।
खुद ही सहने की जब सामर्थ्य नहीं रह जाती
दर्द उस रोज़ ही अपनों से कहा जाता है!
8 Comments
शैलेश मटियानी नई कहानी आँदोलन के सबसे उम्दा कहानीकार थे। दुर्भाग्य कि जिस स्तर का उनका सृजन था उस स्तर तक आलोचना न पहुंच पाई।
shelesh ji ko shat shat naman
अभय होकर बहे गंगा, हमे विश्वास देना है –
हिमालय को शहादत से धुला आकाश देना है !
हमारी शांतिप्रिया का नही है अर्थ कायरता
हमे फ़िर खून से लिखकर नया इतिहास देना है ! naman…
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