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इस आयोजन के तो नागरजी मैं सख़्त ख़िलाफ़ हूँ लिखित में कोई बयान पर मुझसे न लीजिये मैं जो कह रहा हूँ उसी में बस मेरी सच्ची अभिव्यक्ति है वैसे भी मौखिक परंपरा का देश है यह जीभ यहाँ कलम से ज़्यादा ताकतवर रहती आयी है नारे से ज़्यादा असर डालती आयी है कान में कही बात आपने यह जो बनाया एक साधारण बयान लिखकर बढ़कर हर कोई दस्तखत कर देगाः हर व्यक्ति की इसमें बात आ गई, लेकिन आने से रह गई हर व्यक्ति की अद्वितीयता – ऐसे बयान का क्या फायदा?

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जल्दी ही राष्ट्रपति महोदया से समय लेने का प्रयास किया जा रहा है. मुख्यतः लेखिकाओं का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलकर लेखक समाज की व्यथा रखेगा और हम लेखकों की ओर से ज्ञापन उनको सौंपेगा. आप लोगों ने जिस तरह से सहयोग दिया है उसके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं.भारतीय ज्ञानपीठ की पत्रिका नया ज्ञानोदय के बेवफ़ाई सुपर विशेषांक 2 (अगस्त 2010) में प्रकाशित एक साक्षात्कार में दिये गये महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण राय के निम्न वक्तव्य की कड़े से कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हैं: लेखिकाओं में यह साबित करने की होड़…

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हिंदी में अमिताव घोष का सी ऑफ पॉपीज़ अफीम सागर के नाम से प्रकाशित हुआ है. ध्यान रहे कि इस उपन्यास की कथा का क्षेत्र पूर्वी भारत है. कहानी उस दौर की है जब वहाँ से लोगों को गिरमिटिया बनाकर मॉरिसस और कैरेबियाई देशों में भेजा जा रहा था. हिंदी अनुवाद में यह उपन्यास हिंदी के पाठकों को कुछ अपना-अपना सा लगेगा. इसलिए अंग्रेजी उपन्यास की की गई समीक्षा यहाँ प्रस्तुत है. अफीम सागर उसका अनुवाद है इसलिए इसकी कथा का एक आभास पाठकों को हो जायेगा. अमिताव घोष अंग्रेजी में लिखने वाले समकालीन भारतीय लेखकों में प्रथम पंक्ति के…

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मैं दुनिया की हक़ीकत जानता हूँकिसे मिलती है शोहरत जानता हूँमेरी पहचान है शेरो सुख़न सेमैं अपनी कद्रो-क़ीमत जानता हूँतेरी यादें हैं, शब बेदारियाँ हैंहै आँखों को शिकायत जानता हूंमैं रुसवा हो गया हूँ शहर-भर मेंमगर ! किसकी बदौलत जानता हूँग़ज़ल फ़ूलों-सी, दिल सेहराओं जैसामैं अहले फ़न की हालत जानता हूँतड़प कर और तड़पाएगी मुझकोशबे-ग़म तेरी फ़ितरत जानता हूँसहर होने को है ऐसा लगे हैमैं सूरज की सियासत जानता हूँदिया है ‘नक़्श’ जो ग़म ज़िंदगी नेउसे मै अपनी दौलत जानता हूँ 2.तमाम उम्र चला हूँ मगर चला न गयातेरी गली की तरफ़ कोई रास्ता न गयातेरे ख़याल ने पहना शफ़क…

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हिन्दी के लोकप्रिय उपन्यास इन दिनों हिन्दी के दो लोकप्रिय जासूसी उपन्यास-लेखकों की अंग्रेजी में बड़ी चर्चा है। पहला नाम है इब्ने सफी। आजादी के बाद के आरंभिक दशकों में कर्नल विनोद जैसे जासूसों के माध्यम से हत्या और डकैती की एक से एक रहस्यमयी गुत्थियां सुलझानेवाले इस लेखक के उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद प्रसिद्ध प्रकाशक रैंडम हाउस ने छापा है। खबर है कि हाउस ऑफ फियर नामक इस अनुवाद को जिस तरह से पाठकों ने हाथोहाथ लिया है कि प्रकाशक उनके अन्य उपन्यासों के अनुवाद छापने की योजना बना रहे हैं। इब्ने सफी मूल रूप से उर्दू में लिखते…

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आज 21 जुलाई को अमेरिकी लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे का जन्मदिन है. नोबेल पुरस्कार विजेता इस अमेरिकी लेखक ने दुनिया भर की भाषाओं के लेखकों को प्रभावित किया. न कहकर कहने की उनकी शैली में कहानियों के रहस्य दो पंक्तियों के बीच छिपे होते थे जिसे आलोचकों ने हिडेन फैक्ट की तकनीक के नाम से जाना. अतिकथन के दौर में वह मितकथन का लेखक था. मानीखेज़ चुप्पियों के इस अप्रतिम लेखक की एक छोटी सी कहानी यहाँ प्रस्तुत है जिसमें उनकी यह तकनीक देखी-पहचानी जा सकती है.कहानी: एक लेखिका लिखती हैअपने शयन कक्ष में मेज़ पर अखबार खोले बैठी वह खिडकी…

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मेरी एक पुरानी कहानी- प्रभात रंजन  =========================   चंद्रचूड़जी की दशा मिथिला के उस गरीब ब्राह्मण की तरह हो गई थी जिसके हाथ जमीन में गड़ी स्वर्णमुद्राएं लग गईं। बड़ी समस्या उठ खड़ी हुई। किसी को बताए तो चोर ठहराए जाने का डर न बताए तो सोना मिट्टी एक समान.. कभी-कभी उस दिन को कोसते जिस दिन रितेश उनके लिए विदेश से रेड वाईन की बोतल लेकर आया। उसी दिन से उनका मन तरह-तरह की कल्पनाओं में खोया रहने लगा था। तरह-तरह की योजनाएं बनाने लगा था… चंद्रचूड़ किशोर, कैशिएर, भारतीय जीवन बीमा निगम की नेमप्लेट वाले उस छोटे से…

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सन 2004 में आकाशवाणी के अभिलेखगार के लिए मैंने मनोहर श्याम जोशी जी का दो घंटे लंबा इंटरव्यू लिया था। उसमें उन्होंने अपने जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं को लेकर बात की थी। यहां एक अंश प्रस्तुत है जिसमें उन्होंने अपनी मां, पिताजी को लेकर कुछ बातें की हैं और यह बताया है कि किस तरह उनकी रचनात्मकता मुखर हुई- प्रभात रंजन  =======================================   प्रश्न- आपने उपन्यास-लेखन इतनी देर में क्यों शुरु किया? आपका पहला उपन्यास जब आया तब आप आप 47 के हो चुके थे… जोशीजी- एक लंबे अरसे तक मैं सोचता रहा कि शायद जोशीजी एक ठो वार…

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