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कुंवर नारायण के किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है. ८० पार की उम्र हो गई है लेकिन साहित्य-साधना उनके लिए आज भी पहली प्राथमिकता है. भारत में साहित्य के सबसे बड़े पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे जा चुके इस लेखक से शशिकांत ने बातचीत की. प्रस्तुत है आपके लिए- जानकी पुल.रचना जीवन मूल्यों से जुड़कर अभिव्यक्ति पाती है। लेखक का हदय बड़ा होना चाहिए, अन्यथा आपका लेखन बनावटी-सा लगता है। जिस दौर में मैंने पढऩा-लिखना शुरू किया, हमारे बीच ऐसे कई लेखक थे, जिनकी रचनाओं में और उनके व्यक्तित्व में सामाजिक सरोकार और जीवन-दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी।…

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युवा पत्रकार विनीत उत्पल एक संवेदनशील कवि भी हैं. यकीं न हो तो उनकी कविताएँ पढ़ लीजिए- जानकी पुल.कुत्ते या आदमी कुछ लोग कुत्ते बना दिए जाते हैंकुछ लोग कुत्ते बन जाते हैंकुछ लोग कुत्ते पैदा होते हैंकुत्ते बनने और बनाने का जो खेल हैकाफी हमदर्दी और दया का हैक्योंकि न तो कुत्ते के पूंछसीधे होते हैं और न ही किए जा सकते हैं आदमी थोड़ी देर पैर या हाथ मोड़करसोता है लेकिन थोड़ी देर बाद सीधा कर लेता हैलेकिन कुत्ते की पूंछ हमेशा टेढ़ी ही रहती हैन तो उसे दर्द होता है और न ही सीधा करने की उसकी इच्छा होती…

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खलीलुर्रहमान आज़मी मशहूर शायर शहरयार के उस्तादों में थे. इस जदीदियत के इस शायर के बारे में शहरयार ने लिखा है कि १९५० के बाद की उर्दू गज़ल के वे इमाम थे. उनके मरने के ३२ साल बाद उनकी ग़ज़लों का संग्रह हिंदी में आया है और उसका संपादन खुद शहरयार ने किया है. उसी संग्रह ‘जंज़ीर आंसुओं की’ से कुछ गज़लें- जानकी पुल.(१)कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा थायाद आता है कि इक ख्वाब कहीं देखा था.रात जब देर तलक चांद नहीं निकला थामेरी ही तरह से ये साया मेरा तनहा था.जाने क्या सोच के तुमने मेरा…

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नजीर अकबराबादी की नज्मों के साथ सबको वसंतपंचमी मुबारक- जानकी पुल.१.फिर आलम में तशरीफ़ लाई बसंतहर एक गुलबदन ने मनाई बसंततवायफ ने हरजां उठाई बसंत इधर औ उधर जगमगाई बसंत हमें फिर खुदा ने दिखाई बसंत मेरा दिल है जिस नाज़नीं पे फ़िदावो काफिर भी जोड़ा बसंती बनासरापा वो सरसों का बन खेत सा वो नाज़ुक से हाथों से गडुआ उठाअजब ढंग से मुझ पास लाई बसंत.वो कुर्ती बसंती वो गेंदे का हारवो कमबख्त का ज़र्द काफिर इजार दुपट्टा फिर ज़र्द संजगाफदारजो देखी मैं उसकी बसंती बहारवो भूली मुझे याद आई बसंतवो कड़वा जो था उसके हाथों में फूल गया…

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महात्मा गाँधी के ऊपर शायद हिंदी में सबसे अधिक कविताएँ लिखी गई हैं. महात्मा गाँधी के जन्मदिन के मौके पर प्रस्तुत हैं रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई कुछ कविताएँ- जानकी पुल.गांधी (१)तू सहज शान्ति का दूत, मनुज के सहज प्रेम का अधिकारी,दृग में उंडेल कर सहज शील देखती तुझे दुनिया सारी.धरती की छाती से अजस्रचिरसंचित क्षीर उमड़ता है,आँखों में भर कर सुधा तुझे यह अम्बर देखा करता है.कोई न भीत, कोई न त्रस्त,सब ओर प्रकृति है प्रेम भरी.निश्चिन्त जुगाली करती है छाया में पास खड़ी बकरी.(२)क्या हार-जीत खोजे कोईउस अद्भुत पुरुष अहंता की,हो जिसकी संगर-भूमि बिछीगोदी में जगन्नियन्ता की?संगर की…

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उदयप्रकाश हिंदी के उन थोड़े से ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल्स’ में हैं समय के साथ समाज में जिनकी विश्वसनीयता बढती गई है- अपने लेखन से, बेबाक विचारों से. आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर उनके विचार जानते हैं- जानकी पुल.२१ वीं सदी के पहले दशक की ऐसी कई बातें हैं जो मुझे बेहद कचोटती हैं. पहली बार मैंने देखा कि नेता, नौकरशाह, न्यायपालिका और मीडिया के बाद सेना के हाथ भी भ्रष्टाचार में सने हैं. इन सब पर सरकार की ख़ामोशी देखकर मुझे तरस आता है. यह गणतंत्र जनता का नहीं बल्कि संसद में बैठे 408 करोड़पति सांसदों का है. गणतंत्र मनाने…

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अदम गोंडवी की ग़ज़लों ने एक ज़माने में काफी शोहरत पाई थी. उस दौर की फिर याद इसलिए आ गई क्योंकि वाणी प्रकाशन ने उनकी शायरी की नई जिल्द छापी है ‘समय से मुठभेड़’ के नाम से. हालांकि इनमें ज़्यादातर गज़लें उनके पहले संग्रह ‘धरती की सतह पर’ से ही ली गई हैं. लेकिन कुछ नई भी हैं. यहाँ उनकी कुछ नई-पुरानी गज़लें-कुछ शेर- जानकी पुल. १.जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगेकमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे.सुरा व सुन्दरी के शौक में डूबे हुए रहबर दिल्ली को रंगीलेशाह का हम्माम कर देंगे.ये वन्देमातरम का…

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कुछ महीने पहले हमने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कहानी ‘टामी पीर’ को आप तक पहुँचाई थी. बाद में प्रो. मंगलमूर्ति जी से यह पता चला कि जेपी ने एक और कहानी लिखी थी ‘दूज का चाँद’. वास्तव में, ‘हिमालय’ में प्रकाशित यह कहानी उनकी पहली कहानी थी जो उन्होंने हिंदी में ही लिखी थी. शिवपूजन सहाय हिमालय के संपादक थे. अंग्रेजी के विद्वान और सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर मंगलमूर्ति जी शिवपूजन सहाय के पुत्र भी हैं. उन्होंने न केवल उस कहानी की प्रति उपलब्ध करवाई बल्कि उसकी पृष्ठभूमि को लेकर एक नोट भी लिखा. प्रस्तुत है जेपी की वह दुर्लभ कहानी ‘दूज…

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पीयूष दईया की कविताओं को किसी परंपरा में नहीं रखा जा सकता. लेकिन उनमें परंपरा का गहरा बोध है. उनकी कविताओं में गहरी दार्शनिकता होती है, जीवन-जगत की तत्वमीमांसा, लगाव का अ-लगाव. पिता की मृत्यु पर लिखी उनकी इस कविता-श्रृंखला को हम आपके साथ साझा करने से स्वयं को रोक नहीं पाए- जानकी पुल.पीठ कोरे पिता डॉ. पूनम दईया के लिए1.मुझे थूक की तरह छोड़कर चले गये पिता, घर जाते हो? गति होगीजहां तक वहीं तक तो जा सकोगे –ऐसा सुनता रहा हूंजलाया जाते हुए अपने को क्या सुन रहे थे? आत्माशव को जला दोवह लौट कर नहीं आएगा२.शंख फूंकता…

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