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1857 के जुबानी किस्से अभी हाल में ही रूपा एंड कंपनी से इतिहासकार पंकज राग की पुस्तक आई है 1857- द ओरल ट्रेडिशन। पुस्तक में उन्होंने लोकगीतों एवं किस्से-कहानियों के माध्यम से 1857 के विद्रोह को समझने का प्रयास किया है। प्रस्तुत है उसका एक छोटा-सा अंश जिसका संबंध कुंवर सिंह से जुडे किस्सों से है। आम जनता के मानस में इस विद्रोह में भाग लेना जीवन और मृत्यु के कर्मों में भाग लेने से कम आवश्यक कर्म नहीं था। ऐसे अनेक लोकगीत हैं जिनमें इस बात का वर्णन मिलता है कि किस तरह राजा कुंवर सिंह और उनके छोटे…

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नश्तर ख़ानकाही की शायरी में फ़कीराना रक्स है। कुछ-कुछ लोकगीतों की सी छंद, खयाल की सादगी। हिन्दी में उनकी ग़ज़लें हो सकती है पहले यदा-कदा कहीं छपी हो। इस गुमनाम शायर की चुनिंदा ग़ज़लें पढ़िए और खयालों में खो जाइए-===============================1.धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गयाहम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया। तुझसे भी जब निशात का एक पल न मिल सकामैं कासा-ए-सवाल(1) लिए दरबदर गयाभूले से कल जो आईना देखा तो जेहन मेंइक मुन्दहिम(2) मकान का नक्शा उभर गयातेज़ आंधियों में पांव जमीं पर न टिक सकेआखिर को मैं गुबार की सूरत बिखर गयागहरा सुकूत(3) रात…

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कल दोपहर बाद हम युवा लेखकों को बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ जब हमने वरिष्ठ लेखक काशीनाथ सिंह का फेसबुक पर दोस्ती का रिक्वेस्ट देखा। यही नहीं हिन्दी में फेसबुक पर टाइप करने के संबंध में उन्होंने सुझाव भी मांगे थे। शायद ही कोई युवा लेखक रहा हो जिसकी तरफ उन्होंने दोस्ती का हाथ न बढ़ाया हो। मैं तो फूला नहीं समा रहा था और खुशी के मारे मैंने अनेक समवयस्कों को इस संदर्भ में फोन भी किया। अनेक युवा लेखकों ने उनका फेसबुक पर स्वागत किया और उनसे आशीर्वाद भी मांगा। लेकिन इस प्रकरण का दिलचस्प पहलू रात में उनसे…

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ज्ञान प्रकाश विवेक हिन्दी के उन चंद शायरों में शुमार किए जाते हैं जिनमें उर्दू शायरी की रवानी भी है और हिन्दी कविता की सामाजिकता पक्षधरता भी। एक जमाने में जब कमलेश्वर लिंक ग्रुप की पत्रिका गंगा का संपादन कर रहे थे तो उन्होंने पत्रिका के संपादकीय में ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें उसी तरह प्रकाशित की थीं जिस तरह से सारिका पत्रिका के दौर में उन्होंने संपादकीय में दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें छापी थीं। उस दौर में गंगा पढ़नेवालों की स्मृतियों में ज्ञान प्रकाश जी के ऐसे शेर बचे होंगे- खुद से लड़ने के लिए जिस दिन खड़ा हो…

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उर्दू के युवा शायरों में फरहत एहसास का नाम ऐसे शायरों में शुमार किया जाता है जिनको पढ़ने-लिखने वालों के तबके में भी सराहा जाता है। अहसास की शिद्दत और बेचैनमिजाजी के इस शायर के शेर जुबान पर भी चढ़ते हैं और ठहरकर सोचने को भी मजबूर कर देते हैं। हिन्दी में पहली बार उनकी दो गजलें-(1)मैं रोना चाहता हूं खूब रोना चाहता हूँ मैं और उसके बाद गहरी नींद में सोना चाहता हूं मैं तेरे होंठों के सहरा में तेरि आंखों के जंगल मेंजो अब तक पा चुका हूं उसको खोना चाहता हूं मैंये कच्ची मिट्टियों का ढेर अपने…

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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इटली में उभरने वाले महान फिल्म-निर्देशकों एंतोनियोनी, फेलिनी के साथ पासोलिनी की भी गणना की जाती है। उनकी गणना उच्चकोटि के गद्य-लेखकों में भी की जाती रही है। उन्होंने अनेक यादगार कहानियाँ लिखीं। 1960 के दशक में प्रसिद्ध उपन्यासकार अल्बर्तो मोराविया के साथ वे भारत यात्रा पर आए थे। यह गद्यांश उनके इसी भारत-यात्रा के अनुभवों पर आधारित है, जो अंग्रेजी में \’सेंट ऑफ इंडिया\’ के नाम से प्रकाशित है।========================भारतीय मध्यवर्ग के दो चेहरेमध्यवर्ग को संसार की सबसे मुश्किल विशिष्टताओं में से एक माना जाता है। हालाँकि भारतीय मध्यवर्ग में अनिश्चितता का एक ऐसा भाव है…

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2009 में जे. एम. कोएत्जी के उपन्यास \’समरटाइम\’ पर लिखा था. लेखक के जीवन की निस्सारता को लेकर एक अच्छा उपन्यास है- प्रभात रंजन ================ स्पेनिश भाषा के कद्दावर लेखक मारियो वर्गास ल्योसा ने अपनी पुस्तक लेटर्स टु ए यंग नॉवेलिस्ट में लिखा है कि सभी भाषाओं में दो तरह के लेखक होते हैं- एक वे जो अपने समय में प्रचलित भाषा और शैली के मानकों के अनुसार लिखते हैं, दूसरी तरह के लेखक वे होते हैं जो भाषा और शैली के प्रचलित मानकों को तोड़कर कुछ एकदम नया रच देते हैं। अंग्रेजी उपन्यासकार जेम्स मैक्सवेल कोएट्‌जी(जे. एम. कोएट्‌जी) इस…

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संगीत का कुंदन कुंदनलाल सहगल हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। १९३० और ४० के दशक की संगीतमयी फिल्मों की ओर दर्शक उनके भावप्रवण अभिनय और दिलकश प्लेबैक के कारण खिंचे चले आते थे। शरद दत्त की पुस्तक कुंदन उसी गायक-अभिनेता की जीवनी है। उस के. एल. सहगल की जिनका फिल्मी सफर महज सोलह सालों का रहा। इन सोलह सालों के दौरान उन्होंने हिंदी की २७ और बांग्ला की ७ फिल्मों में काम किया। और करीब १७६ गाने गाए। जीवनीकार ने सही लिखा है कि इतनी कम फिल्मों में काम करके और इतने कम गाने गाकर जो…

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रोशन भारत, अंधेरा भारत(अरविंद अडिगा के उपन्यास द व्हाइट टाइगर का एक अंश)बंगलोर की ज्यादातर सफल कहानियों की तरह मेरी जीवन कहानी भी बंगलोर से काफी दूर शुरू हुई। अभी तो मैं रोशनी के बीच दिखाई दे रहा हूं, लेकिन मेरी परवरिश अंधेरों में हुई। मैं भारत के एक ऐसे हिस्से की बात कर रहा हूं जो इस देश का करीब एक तिहाई है, धान और गेंहूं के खेतों से भरपूर, जिनके बीच में तालाब होता है जो जलकुंभियों और कमल के फूलों से पटा होता है। उन कमल के फूलों ओर जलकुंभियों को खाती-चबाती भैंसें जिनमें नहाती रहती हैं।…

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