आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है. प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ- ================================== समाधि सूर्य भी नहीं है, ज्योति-सुन्दर शशांक नहीं, छाया सा व्योम में यह विश्व नज़र आता है. मनोआकाश अस्फुट, भासमान विश्व वहां अहंकार-स्रोत ही में तिरता डूब जाता है. धीरे-धीरे छायादल लय में समाया जब धारा निज अहंकार मंदगति बहाता है. बंद वह धारा हुई, शून्य में मिला है शून्य, ‘अवांगमनसगोचरं’ वह जाने जो ज्ञाता है. जाग्रत देवता वह, जो तुममें है और तुमसे परे भी, जो सबके हाथों में बैठकर काम करता है, जो सबके पैरों में समाया हुआ चलता है, जो तुम सबके घट में व्याप्त…
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आज मोहन राकेश का जन्मदिन है. हिंदी को कुछ बेजोड़ नाटक और अनेक यादगार कहानियां देने वाले मोहन राकेश ने यदा-कदा कुछ कविताएं भी लिखी थीं. उनको स्मरण करने के बहाने उन कविताओं का आज वाचन करते हैं- जानकी पुल.१.कुछ भी नहीं भाषा नहीं, शब्द नहीं, भाव नहीं,कुछ भी नहीं.मैं क्यों हूँ? मैं क्या हूँ? जिज्ञासाएं डसती हैं बार-बार कब तक, कब तक, कब तक इस तरह? क्यों नहीं और किसी भी तरह? आकारहीन, नामहीन,कैसे सहूँ, कब तक सहूँ,अपनी यह निरर्थकता?जीवन को छलता हुआ, जीवन से छला गया.कैसे जिऊँ, कब तक जिऊँ,अनायास उगे कुकुरमुत्ते-सा पहचान मेरी कोई भी नहीं आज तक. लुढकता…
यह फैज़ अहमद फैज़ की जन्मशताब्दी का साल है. इस अवसर पर हिंदी के मशहूर लेखक असगर वजाहत ने यह लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने फैज़ की शायरी और उनकी उस छवि को याद किया है जिसके कारण फैज़ को इस उप-महाद्वीप का सबसे बड़ा शायर माना जाता था. \’नया पथ\’ के फैज़ अंक में प्रकाशित यह दिलचस्प लेख आपके लिए- जानकी पुल.मेरी उर्दू भाषा और साहित्य की पढ़ाई किसी तमीज और सलीके से नहीं हुई. पैदा तो आज़ादी मिलने से पहले हो गया था स्कूल जाना शुरू किया आज़ादी के बाद. यह वह ज़माना था जब उर्दू को देश…
तुषार धवल की कविताओं में वह विराग है जो गहरे राग से पैदा होता है. लगाव का अ-लगाव है, सब कुछ का कुछ भी नहीं होने की तरह. कविता गहरे अर्थों में राजनीतिक है, उसकी विफलता के अर्थों में, समकालीनता के सन्दर्भों में. सैना-बैना में बहुत कुछ कह जाना और कुछ भी नहीं कहना. इस साल के विदा गीत की तरह जिसमें मोह भी है उसकी भग्नाशा भी, उम्मीद है तो निराशा भी- जानकी पुल. १.महानायक आचरण की स्मृतियों में हम कब के ही बीत चुके हैं ये मूर्तियाँ उनकी नहीं हैं जिनकी कि हैं ये प्रतिछायायें हैं संगठन की जिससे सत्ता…
सीएनएन-आईबीएन की पत्रकार रूपाश्री नंदा से बातचीत करते हुए लेखिका अरुंधती राय ने कहा कि उनको इस बात की कभी उम्मीद नहीं थी कि विनायक सेन के मामले में फैसला न्यायपूर्ण होगा. लेकिन वह इस कदर अन्यायपूर्ण होगा ऐसा भी उन्होंने नहीं सोचा था. बातचीत में उन्होंने आतंक और हिंसा को लेकर सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाये हैं. इस तरह की नीतियों पर जिसमें जनता के बीच काम करने वाला राष्ट्रद्रोही ठहराया जाता है और भ्रष्टाचारियों का बाल भी बांका नहीं होता. पढ़िए पूरी बातचीत हिंदी में- जानकी पुल. रूपाश्री नंदा- उस समय आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी जब…
कवि और वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र राजन ने अभी-अभी एक कविता भेजी है. विनायक सेन को अदालती सजा ने हम-आप जैसे लोगों के मन में अनेक सवाल पैदा कर दिए हैं. कविता उनको वाणी देती है और उनके संघर्ष को सलाम करती है-जानकी पुल. जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थेवे गुलछर्रे उड़ा रहे थेजब तुम मरीज की नब्ज टटोल रहे थेवे तिजोरियां खोल रहे थेजब तुम गरीब आदमी को ढाढस बंधा रहे थेवे गरीबों को उजाड़ने कीनई योजनाएं बना रहे थेजब तुम जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थेवे संविधान में सेंध लगा रहे थेवे देशभक्त हैंक्योंकि वे व्यवस्था…
विनायक सेन पर क्या आरोप है? जिसके आधार पर विनायक सेन को उम्र कैद की सजा सुना दी गई है. सवाल खड़ा होता है कि रायपुर के जिला और सत्र न्यायलय का यह फैसला ठोस अर्थों में न्यायिक है या इस पर एक खास तरह के राजनीतिक सोच का असर है? सजा सिर्फ विनायक सेन को दी गई है या इसके ज़रिये उन तमाम लोगों और समूहों को सन्देश देने की कोशिश है, जो सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता और शांति के बारे में तथाकथित मुख्यधारा सोच से सहमत नहीं हैं? और इस रूप में क्या यह फैसला असहमति की आवाज़ को…
इस साल साहित्य के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक मारियो वर्गास ल्योसा अपने जीवन, लेखन, राजनीति सबमें किसी न किसी कारण से विवादों में रहते आये हैं. इस बार उन्होंने विकीलिक्स के खुलासों पर अपनी जुबान खोली है. इन दिनों वे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में नोबेल पुरस्कार समारोह के लिए गए हुए हैं. वहीं एक बातचीत में इस वेबसाइट द्वारा किये गए खुलासों पर एक दो तरह की बातें कहकर एक नए विवाद की शुरुआत कर दी है. उन्होंने एक तरफ तो इन खुलासों का स्वागत किया है, लेकिन दूसरी तरफ यह भी कहा है कि बहुत अधिक पारदर्शिता अंतिम…
यह बताने की आवश्यकता नहीं लगती है कि नागार्जुन वैद्यनाथ मिश्र के नाम से मैथिली में कविताएँ लिखते थे और उनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार मैथिली के कवि के रूप में ही मिला था. उनकी जन्मशताब्दी के अवसर पर उनकी कुछ मैथिली कविताओं का अनुवाद युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने किया है. अंतिम कविता स्वयं बाबा नागार्जुन के अनुवाद में है- जानकी पुल.1. हाँ, अब हुई बारिशप्रतीक्षा में बीत गये कई पहरप्रतीक्षा में बदन के रोएं-रोएं से, पसीना निकला घड़ा भर-भरके प्रतीक्षा में रूक गया पेड़ का पत्ता-पत्ता, नहीं बरसी फुहार भी प्रतीक्षा में सूरज रह गया ढँका हुआ…
दो सालों से हिंदी में उपन्यासों को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही थी. चर्चा के केद्र में नए-नए कथा-कथा लेखक आ गए थे. कुछ पुरनिया इनको सर पर बिठाए फिर रहे थे, कुछ मिनरल वाटर पी-पे कर कोस रहे थे. ऐसे में एक साथ आठ उपन्यास प्रकाशित करके लगता है वाणी प्रकाशन पाठकों का ध्यान एक बार फिर उपन्यासों की तरफ मोडना चाहती है. 8 दिसंबर की सर्द संध्या लगता है इन उपन्यासों की चर्चा से गर्म रहने वाली है. उपन्यासों में असगर वजाहत का \’पहर दोपहर\’, रमेशचंद्र शाह का \’असबाबे वीरानी\’. ध्रुव शुक्ल का \’उसी शहर में उसका…