चेतन भगत इस समय भारत में अंग्रेजी के निस्संदेह सबसे ‘लोकप्रिय’ लेखक हैं. सबसे बिकाऊ भी. जो बोल देते हैं वही चर्चा का सबब बन जाता है. पिछले दिनों उनका एक बयान मुझे भी अच्छा लगा था. उन्होंने इन्फोसिस के नारायणमूर्ति को ‘बॉडीशॉपिंग’ करने वाला करार दिया था. नारायणमूर्ति ने आइआईटी के विरूद्ध कोई निंदनीय बात कही थी. आइआईटी के इस पुराने छात्र ने करार जवाब दिया. वैसे इस बार उन्होंने कुछ ऐसा कहा है जिसकी कुछ खास चर्चा नहीं होगी. उस बयान का संबंद्ध किसी ‘सेलिब्रिटी’ से नहीं, गरीब-गुरबों की भाषा हिंदी से है.
एक मशहूर टीवी शो की मशहूर एंकर ने एक प्रसिद्ध कार्यक्रम में उनसे जब यह सवाल किया कि क्या कारण था जिसने उनको हिंदी में लिखने से रोका? उनका जवाब था कि उनके उपन्यासों में जिस तरह का ह्यूमर होता है वह उस तरह से हिंदी में नहीं कहा जा सकता था. और अगर उनको कोई ठीक-ठिकाने का हिंदी अनुवादक मिल भी जाता तो वह उस नई पीढ़ी के पाठकों को इतना ‘कूल’ नहीं लगता कि वे पढ़ने के लिए हिंदी की किताब खरीदें. वे हिंदी में लिखकर इतने बड़े सेलिब्रिटी नहीं हो सकते थे. उनके हर उपन्यास के प्रकाशन से पहले ही इतना हल्ला नहीं मचता जितना जितना मचता है. अभी हाल में ही उनका पांचवां उपन्यास ‘रिवोल्यूशन २०२०’ आया है मीडिया में चेतन भगत पर फोकस वैसे ही हो गया है जैसे आजकल किसी फिल्म के रिलीज होने से पहले उसके कलाकार मीडिया के माध्यमों में छा जाते हैं. जब उस एंकर ने उनसे पूछा कि अंग्रेजी के आलोचक उनके ऊपर यह आरोप लगाते हैं कि वे अंग्रेजी भाषा को बर्बाद कर रहे हैं. उनका जवाब था हमारे देश में अंग्रेजी अभी भी इतनी आबाद नहीं है कि कोई उसे बर्बाद करे. वे यह याद दिलाना नहीं भूले कि उनकी इसी अंग्रेजी की वजह से नई पीढ़ी के लाखों पाठकों ने उनके उपन्यासों से एक तरह से साहित्य पढ़ने की शुरुआत की, किताबें पढनी शुरु कीं. बहरहाल, हिंदी में लिखकर ऐसे ब्रांड नहीं बन सकते थे. यह सच्चाई है. हिंदी के मार-तमाम लोग कुछ लाख पाठक नहीं पैदा कर सकते. क्योंकि वह उनके शिक्षा की भाषा हो भी तो उनके लिए शान की भाषा नहीं बन पाई है. हिंदी-पट्टी में हिदी आज भी शर्म की भाषा ही बनी हुई है. नई पीढ़ी हिंदी की किताबें तब भी कम खरीदता था, आज भी कम खरीदता है. वह अंग्रेजी का चेतन भगत तो खरीद लेता है, हिंदी का सुरेन्द्र मोहन पाठक नहीं खरीदता. लेकिन वही सुरेन्द्र मोहन पाठक जब अनुवाद होकर अंग्रेजी में आता है तो उसे हाथोहाथ लेता है.
मुझे चेतन भगत की इस बात से एक पुराना वाकया याद आ गया. करीब १० साल पहले हिंदी में एक अंतरराष्ट्रीय वेबसाईट literateworld.com की लॉन्च पार्टी में तत्कालीन सरकार के एक कद्दावर मंत्री जसवंत सिंह ने कहा था कि हिंदी में सब कुछ है लेकिन ‘सेक्स अपील’ नहीं है. हिंदी में ‘सेक्स अपील’ पैदा करने के लिए कुछ करना चाहिए. हिंदी के गंभीर अखबार ने सम्पादकीय लिखकर विरोध जताया था. बस. वह सेक्स अपील अभी तक पैदा नहीं हुई है. इसीलिए तो चेतन भगत जैसा लेखक हिंदी भाषा से कतराता है. यहाँ वह ग्लैमर नहीं है, वह बाज़ार नहीं है जहाँ किताबों की बिक्री अब लेखक के ‘बड़े’ होने का पैमाना बनता जा रहा है. जिसने चेतन भगत को ‘सेलिब्रिटी’ लेखक बनाया है. क्योंकि आज के ‘कूल’ युवा उन किताबों को बुकस्टोर के सेल्फ से पैसे देकर उठाता है और अपने कमरे में लगा लेता है, पढता भी है.
हिंदी अभी उस चमक-दमक का हिस्सा नहीं बन पाई है. हिंदी की किताबें अभी भी उस तरह के भाव नहीं जगा पाती हैं कि उनको पढ़ने के फैशन का हिस्सा बनाया जा सके. हिंदी का बड़े से बड़ा लोकप्रिय लेखक भी अख़बारों की हेडलाइन नहीं बना पाता, हिंदी के टेलीविजन चैनल्स पर चेतन भगत की तरह बहस का हिस्सा नहीं बन पाता, उनके कार्यक्रमों में अवतरित होकर उसकी टीआरपी नहीं बढ़ा पाता. बमुश्किल कुछ गीतकार-फिल्म-लेखक इस जगह को भर पाते हैं. सुरेन्द्र मोहन पाठक या वेद प्रकाश शर्मा का भी वैसा ब्रांड नहीं बन पाया. चेतन भगत ने हिंदी की एक दुखती रग पर हाथ रख दिया है. कब हम इसका रोना रोते रहेंगे कि हिंदी समाज का मध्यवर्ग हिंदी से नहीं जुड़ना चाहता.
सवाल है क्यों नहीं जुड़ना चाहता?
चेतन भगत ने जाने-अनजाने हिंदीवालों की दुखती राग पर हाथ रख दिया है.
32 Comments
Bhaiya hum Namakool hain so Hindi novel hi padhty hain…
कोई कुछ भी कहे मुझे हिंदी भाषा से सदैव लगाव और गर्व रहेगा.
good sir ji
मैं चन्दन कुमार और अमितेश की बात से पूरी तरह सहमत हूँ । साहित्य बिकने की नही पढने व समझने की चीज है ।
चेतन भगत 'बड़े लेखक' हैं!!!!
आप 'सेलिब्रिटी लेखक' का उपयोग करें कोई बात नहीं, लेकिन बड़े लेखक पर आपत्ति है.
ये साहित्य के वे बिकाऊ पृष्ठ हैं जिन पर कलम साहित्य की बजाय कुछ और लिखती है|
अगर जीवन भर की दो चार घटनाओं, या कहीं बिताए चार-पांच सालों , या घुमे गए पांच छः स्थलों का मसालेदार वर्णन कर देने से उसे साहित्य कहने लगे हैं, तो यह सचमुच दुर्भाग्य है|
और वैसे भी चेतन भगत का लिखा हुआ उनके कन्फ्यूजन का परिणाम है|
जो व्यक्ति आइआईटी से पढ़ने के बाद आइआइएम जाता है और अंततः अपने आप को ब्रांड लेखक के रूप में बेंचता है, वह सब कुछ हो सकता है, लेखक या साहित्यकार नहीं|
रही बात टिप्पणी की तो नारायणमूर्ति के कहे गए को समझना और उससे सहमत होना किसी ऐसे आइआईटियन के लिए संभव नहीं है, जिसने अपने इंस्टिट्यूट को एक ब्रांड की तरह उपयोग किया हो. यद्यपि सच हमेशा कड़वा लगता है तथापि चेतन भगत को अपने तथाकथित 'साहित्य' और उसमे छौंका सेक्स अपील पर ही ध्यान देना चाहिए| बाकी कुछ समझना तो छः सात साल तक भारतीय संस्थानों में पढ़ लेने के बाद असंभव ही हो जाता है.
अंग्रेजी में सेक्स अपील कहना बहुत अच्छा लगता है.. हिन्दी में कहिए न यौन उत्तेजना टाइप कुछ.. सेक्स अपील कहते हैं तो दूसरे के घर की औरत दिखाई देती है हॉट पैंट्स पहनी हुई… वहीं बात हिन्दी में कहते हुए बहुत जोर से लगती है… माफी चाहती हूं महिला हो कर ऐसी बात कर रही हूं.. लेकिन भाषा में सेक्स अपील सामाजिक व्यवहार से आती है… अगर भाषा में ये उत्तेजकता आ जाएगी तो समाज में क्या होगा ये सोच लेवें…
पियक्कड़ और गे अचेतन भगत ने नशे में अपने पार्टनर से सेक्स करने के बाद फूल को कूल बोल दिया और आप लोग लगे इसकी व्याख्या, वाहवाही करने? अब तो सुधर जाओ अंग्रेजों के मानस पुत्रों.
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Vijendra, aap tukbandi ke alaava bhi kuchh karte hain?
चेतन, भगत ,शोभा डे , खुशवंत सिंह जैसे किरदार के लोग स्वयम्भू साहित्यकार है …..उल्टा – सीधा लिख के या उलूल -जुलूल बयान बाजी से सिर्फ़ सुर्ख़ियों में रहना और अपनी किताब बेचने के इंतजाम में ये लोग लगे रहते है ….सच्चा अदीब वो है जो हर ज़ुबान की इज़्ज़त करे ….किसी भी मुल्क और कौम की तहज़ीब की सच्ची तस्वीर होती है ज़ुबान ,ये लोग अपनी मादरे ज़ुबान के सबसे बड़े दुश्मन है ….
मेरा एक दोहा है ऐसे नकली अदीबों की शान में …
उल्टा – सीधा जो लिखे , मत कह उसे अदीब !
पुस्तक बेचन के लिए , है सारी तरक़ीब !!
विजेंद्र
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प्रभात जी, कोई माने या न माने पर सच्चाई यही है कि अंग्रेजों ने हमे बहुत पहले छोड़ दिया पर अनुकरण करने की आदत जो खून में मिल गई है उससे पीछा बहुत से लोग नहीं छुड़ा पा रहे हैं। आज के समय में जब हिन्दी पिछड़ती जा रही है उसको बढ़ावा देने एवं उसके विकास हेतु प्रयास करने की जिम्मेदारी हम भारतीयों की है।मैं नहीं समझता कि यदि किसी हिन्दी लेखक की रचना का प्रचार किया जाए तो पाठक उसमें रुचि न लें।आज हर आदमी विज्ञापन के पीछे भाग रहा है।फिलहाल अंग्रेजी भाषा में कूल जैसी बात समझ में नहीं आई।
जानकी पुल का पुल छोटा हो गया है या नीचे नदी चौड़ी हो गई है जो अंग्रेजी के एक चालू लेखक [अंगेजी के गुलशन नंदा]चेतन भगत पर लेख देने वह विवश हो गई.चेतन भगत अंग्रेजी में भले लिखे पर उन्हें दाल-रोटी हिंदी समाचार पत्रों में अपनी उड़न छू शैली में कुछ भी लिख कर उसे सामयिक लेखन बताने से ही मिल रही है और इतना ही नहीं थ्री इडियट फिल्म लिखने के बाद भी जब फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपडा ने फिल्म टाइटिल में उनका नाम अंत में बिलकुल छोटे अक्षरों में दिया था तो घायल और तिलमिलाए चेतन भगत हर चेनल पर यहाँ तक कि इंग्लिश चेनल्स पर भी अपना दुखडा हिंदी में ही दर्शकों के सामने रखते रहे थे ,क्योंकि उन्हें मालूम था कि देश की भाषा में ही वे अपनी बात देश भर में पहुंचा सकते हैं.चेतन भगत की और भी २-१ फ़िल्में आने को हैं और वे भी हिंदी में ही होंगी.एक फिल्म के तो वे स्वयं सह निर्माता इसलिए बन गए हैं ताकि थ्री इडियट जैसा धोखा फिर न खा जाएँ.थ्री इडियट फिल्म में हमारी प्रमुख शिक्षा संस्थानों की शिक्षण शैली का मजाक उडाया गया था.कोई आश्चर्य नहीं होगा कि कभी इस पुस्तक को या भगत कि ऐसी ही किसी दूसरी पुस्तक को रेमन मेगसेसे पुरस्कार मिल जाए क्योंकि वह ऐसे ही लेखन के लिए निर्धारित है जिसमें देश की कमियों को कुत्सित रूप में प्रस्तुत किया जाता है.अंग्रेजी लिखने और बोलने वाले चेतन भगत चाहे जिस भाषा में लिखे रोटी- हिंदी की ही खा रहे हैं.हिंदी की खाना और अंग्रेजी की बजाना हिंदी क पाठकों को स्वीकार नहीं है,यह वे कृपया न भूलें.
देवेन्द्र सुरजन , न्यूयार्क
hume aise logo ke vaktavyo ko prakashit karke hindi ka majak nahi udana chahiye. aapne likha hi kyu? koi attention mat dijiye…gina chuna samuday chetan bhagat ko padta hai. Mai khud angreji bhasha se snatak hun lekin chetan bhagat ko padne ki iksha aaj tak balwati nahi hui…kyunki uski lekhni ka tto standard 12th stnd wale ke english medium students ke liye hai…chetan bhagat jaise log gaal per wo massa hai jo khubsurti kharab karte hain.
chetan bhagat ke saath hindi lekhan ki dhara ko nahin jodo ja sakta. lekhan ka kam wahi nahin hai jo chetan ya unke prashansak samajhte hain. hindi abhineta aur hindi lekhak mei antar karo.
श्रीमन्त भाई,
सब कुछ बताना आवश्यक नहीं होता। अब आप प्रेमचन्द से ही चेतन जैसे अचेतन की तुलना कर रहे हैं तब तो कोई बात नहीं क्योंकि सुन कर या फिल्म देखकर साहित्य के प्रेमी बनने वालों की कमी अब नहीं है…आगे फिर कभी कहता हूँ…
आज हमारी हिन्दी भाषा जिस मुकाम पर पहुँच रही है हमें गर्व करना चाहिए इस समय हम घर बैठे वेब पर हिन्दी में लिख-पढ़ रहे हैं यहाँ तक कि फेसबुक पर अंग्रेजी में बातचीत करने वाले लोग,शौकिया हिन्दी में बात कर रहें हैं और जिन्हें नहीं आती वह भी सबसे पूछ कर सीखने का प्रयास कर रहें हैं भले ही चमक-दमक न हो ये तो क्षणिक होता है,पर हमारी हिन्दी गर्व से सिर उठाकर चल रही है चाहे भारतवर्ष हो या विदेश हो हमारी संस्कृति व सभ्यता महज हिन्दी की वजह से कायम है किसी के भी कमज़ोर कह देने मात्र से कोई असर नहीं होना चाहिए..|
नारायण मूर्ति ने सही कहा था आई आई टी बंद दिमाग के मशीनी मानवो को पैदा कर रही है! एक पिस चेतन भगत के रूप में भी है!
पंगा है की आई आई टी में पढ़ने वाले खुद को प्रौधिगिकी तक सिमित नहीं समझ कर स्वय को समाज साहित्य राजनीति कानून सब का विशेषग्य समझने लगते हैं! हूमर भाषा आधारित नहीं क्षेत्र और नृवंश आधारित होता है! अब ये बात समाज शास्त्र वाले ही समझेंगे प्रौधिगिकी वाले नहीं
अब देखिये मैंने यहाँ गलती करदी बात के बजाये ब्लॉग का लिंक पोस्ट होगया गलती से
http://bringtoanend.blogspot.com/
ANONYMOUS says…
Isko aise padhen,,,JO NAMA"KOOL" HOTE HAIN WO HINDI NOVEL NAHI PADHTE.
चेतन भगत और साहित्य . मुझे तो हँसी आ रही है भैया .गुलशन नंदा का रद्दी साहित्य खूब बिकाऊ था ऐसे ही इन साहबान का भी
अंग्रेजी के गंभीर पाठक चेतन भगत को पढ़ते हैं क्या? वैसे भी बाडीगार्ड अगर चार सौ करोड़ कमा लेती है इसका मतलब यह नहीं है कि सलमान खान सबसे अच्छा अभिनेता है. हिन्दी में चर्चित लेखक पाठकों के लिये नहीं आलोचकों के लिये लिखता है और एक कहानी से मार्खेज दूसरी कविता से इलियट बनना चाहता है. हिन्दी का सबसे 'लोकप्रिय' कथाकार का रोना यह है कि उसका सही मूल्यांकन नहीं है.
सबसे बड़ी बात यह है कि हिन्दी में कौन सी कला है जो रो नहीं रही है. रंगमंच अलग बेहाल है, कहानी कविता का वहीं हाल है…कला, नृत्य और सिनेमा पर लेखकों का अभाव है. हिन्दी मेम अपनी सहलवाने और दुसरों की सहलाने से फ़ुरसत मिले तब तो गंभीर काम हो. यहां तो खुद को बड़ा घोषित करवाने और बड़ा घोषित करने की होड़ है. याद रखिये अभी भी चेतन भगत को लोग उतना नहीं पढ़्ते होंगे जितना एक महीना में हिन्दी सरस सलिल पढ़ लेते हैं.
हिंदी-पट्टी में हिदी आज भी शर्म की भाषा ही बनी हुई है. नई पीढ़ी हिंदी की किताबें तब भी कम खरीदता था, आज भी कम खरीदता है. वह अंग्रेजी का चेतन भगत तो खरीद लेता है……yahee zawaab hai is prashn ka …Malysia se singapore ai hun ,ek Indian School me jane ka mauka mila ..vahan mujhe ashchry hua ki principal hee nahin school ke aur log bhee jyadatar hindi me baat kar rahe the …jab ki india me main jahan teacher hun vahan hindi bolne par bachchon ko saza ka praavdhan hai
चन्दन भाई ,अगर हम अपने हिंदी को कुछ ही गंभीर लोगो के लिए नियत कर दें तो यह इसके सेहत के लिए सही नहीं हैं | आप सोचिये , चेतन भगत को वो लोग भी पढ़ रहे हैं जिनकी साहित्य में गहरी रूचि नहीं है, क्यों ? एक बात और, हम आप मिलकर परसाई और प्रेमचंद को कब तक अच्छा बताते रहेंगे | कभी तो आम लोगो को भी मौका दीजिये | जब चेतन भगत बहुत अच्छा नहीं लिख कर भी पैसा लुट रहा है तो कब तक हम प्रेमचंद और अमरकांत की तरह अभावों में ही जीते रहेंगे ? एक फायदा ये भी होगा मार्केटिंग का कि हमारा क्षेत्र भी बढ़ता जायेगा |
श्रीमन्त भाई, चेतन को पढ़ने वाले है कौन, यह भी ध्यान रखा जाय। 121 करोड़ लोगों में से कितने पढ़ते हैं और पैसे की बात क्या करें? प्रेमचन्द हों या परसाई उनकी हैसियत, उनका स्थान हमेशा चेतन से अनन्तगुणा ऊपर रहेगा, भले वे पैसे न लूट(कमा नहीं, लूट) सके…
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