हाल के वर्षों में जिन लेखिकाओं की कहानियों ने ध्यान खींचा है उनमें जयश्री रॉय का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. उनकी एक हाल की कहानी- जानकी पुल.
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हिया ने फ़ेसबुक से लॉग आउट किया और बिस्तर पर गिरकर रोने लगी… नील और जेनोभी दोनों ऑन लाइन हैं, ज़रुर चैट कर रहे होंगे! सबीना ठीक कह रही थी. दोनों के बीच इन दिनों कोई चक्कर चल रहा है. नील जेनोभी का हर पोस्ट लाईक कर रहा है, पिक्स पर कमेंट्स दे रहा है. उस दिन तो उसकी कविता भी अपने वाल पर शेयर किया. ओह गॉड! क्या नील मेरे साथ सचमुच टु टाइमिंग कर रहा है! सोच-सोचकर उसका दिल डूबा जा रहा था.
नील और वह तीन महीने से साथ हैं. दूसरे शब्दों में ’सीइंग इच अदर’ उससे पहले रॉनी के साथ एक छोटा-सा अफेयर… वैसे उसमें ’नथिंग वाज़ सीरियस’! कह सकते हैं ‘पार्ट ऑफ ग्रोइंग अप’. नील भी उनदिनों अपने ‘एक्स’ को भुलाने की क़ोशिश में था. दोनों कुछ क़दम साथ चले तो लगा रास्ता आसान हो रहा है. मगर अब… हिया कुछ भी सोच नहीं पा रही थी. इतने सारे डेट्स- के. एफ. सी., डोमिनोज़, आइनॉक्स… इस बार के नेवी बॉल में भी तो वही उसका डांस पार्टनर रही. दोनों ने ’बेस्ट डान्सिंग कपल’ का ख़िताब जीता. सभी कह रहे थे, उनकी जोड़ी बहुत जंचती है. तब तो नील भी कितना ख़ुश था उसके साथ! सारा क़सूर जेनोभी का है. शी इज़ अ रियल बीच! हर हैंडसम लड़के पर डोरे डालती है. पढ़ना-लिखना तो है नहीं. सारा दिन कॉलेज कैंटिन में बैठकर आवारा लड़कों के साथ ’हा-हा, हू-हू’ करती रहती है. बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद! जाने उसमें क्या है कि लड़के भी मधुमक्खी की तरह उसके पीछे पड़े रहते हैं.
रोते हुये ही जाने उसे कब नींद आ गई थी. मोबाईल के मैसेज अलर्ट से चौंककर उठी थी. डिस्प्ले स्क्रीन पर नील का नाम चमक रहा था. विकल्प में जाकर उसने मैसेज खोलकर पढ़ा था- ‘मिसिंग यू बेबी!’ झूठा! मक्कार! अपना निचला होंठ काटते हुये उसने किसी तरह अपनी रुलाई रोकी थी. मुझे मिस कर रहा है और उस चुड़ैल से चैट कर रहा है! शायद वह समझ रहा है कि उसे उसकी करतूत का कुछ पता ही नहीं. फ़ेस्बुक पर वह ऑन लाइन नहीं हुई थी. ऑफ लाइन रहकर ही दोनों पर नज़र रख रही थी.
थोड़ी देर बाद नील का दूसरा मैसेज आया था- “चुप क्यों हो?” उसने बिना कोई जवाब दिये फोन बंद कर दिया था. तभी उसकी मां दूध का गिलास लेकर कमरे में दाखिल हुई थीं- “हिया! पढ़ रही हो कि वही फ़ेसबुक पर बैठी हो? परीक्षा को सिर्फ चार दिन रह गये हैं. पिछली बार अर्थशास्त्र में फेल होते-होते बची हो, याद है ना?”
“अर्थशास्त्र?” आ गईं उपदेश झाड़ने… मन ही मन चिढ़ते हुये उसने मुंह बनाया था.
“अर्थशास्त्र यानी इकॉनमिक्स! समझी? यहां सब अंग्रेज़ हैं!” मां ने झुंझलाकर दूध का गिलास टेबल पर रख दिया था- “कितनी बार कहा इनसे, परीक्षा के समय इंटरनेट का कनेक्शन बंद कर दे. सबके सब बिगड़ते जा रहे हैं. बाप उधर अख़बार या टी. वी. में सर डाले बैठा है, बेटा का रातदिन क्रिकेट, आई. पी. एल. और बेटी को फ़ेसबुक से फुरसत नहीं. रह जाती हूं बस एक मैं!”
“मां तुम फिर शुरु हो गई! मुझे पढ़ने दो…” हिया ने झल्लाकर कहा तो वे “हां जाती हूं, जाती हूं! पता है कितना पढ़ना है…” कहकर बड़बड़ाती हुई चली गई थीं.
उनके कमरे से बाहर जाते ही उसने उठकर ड्रेसिंग टेबल के आईने में अपना चेहरा देखा था और चिंहुक उठी थी- ओह गॉड! ये मुंहासा तो पक गया! कितना गंदा दिख रहा है! उस दिन नील कह रहा था ‘आई हेट पिंपल्स!’ सक्स! अब क्या करूं! उसे फिर रोना आने लगा था… बाल सीधे करने हैं, नेल पॉलिश लगाना है, स्नग फिट जिंस भी अभी तक सूखा नहीं! आईने में खुद को निहारते-निहारते जाने कितनी बातें उसे एक साथ परेशान कर रही थीं. टेस्ट ख़त्म होते ही जिम ज्वाइन करुंगी, जिंस टाईट होने लगी है. उस दिन राघव फैटसो कहकर चिढ़ा रहा था. और इस सांवलेपन का भी कोई ईलाज नहीं! पांच साल से शायद पांच सौ ट्युब निचोड़ डाले, मगर इन गोरे रंग का दावा करनेवाले क्रीम्स का कोई असर नहीं. सब झूठे, मक्कार! सोचते हुये उसने क्रीम का ट्युब उठाकर कमरे के कोने में फेंक दिया था. इसी गोरी रंगत की वजह से वो चुड़ैल जेनोभी सारे लड़को की फेवरिट बनी हुई है… रात के दो बजे जाने कितनी सारी चिंतायें लेकर वह सोने गई थी. इन सब के बीच उसकी बस पढ़ाई ही रह गई थी. ऐसा रोज़ होता है!
सुबह कॉलेज कैम्पस में जाते ही उसे बुरी ख़बर मिली थी- तनु ने आत्महत्या कर ली है!
’कब?’, ’कैसे?’, ’क्यों?’ – जाने एक ही साथ उसने कितने सवाल कर डाले थे.
“कल रात! सुना काम्पोस का पूरा पत्ता गटक गई थी. सुबह उसकी मां कॉलेज के लिये उठाने गईं तो उसे मरी हुई पाया!”
“मगर क्यों! उसे जान देने की नौबत क्यों आई?” हिया जैसे अब भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी. वह बहुत क़रीब से उसे नहीं जानती थी. दूसरे डिविजन में थी वह. कितनी ज़हीन थी तनु, पढ़ाई में हमेशा अब्बल! एस. एस. सी. में पूरे राज्य में पांचवी नम्बर पर थी.
“कहते हैं किसी ने उसका एम. एम. एस. बनाकर नेट पर डाल दिया था. सब उसके एक्स ब्यॉय फ़्रेंड का नाम ले रहे हैं. उसीने बदला लिया होगा. अपने मां-बाप के कहने पर उसने उसे छोड़ जो दिया था!”
“कौन, कुणाल?”
हिया के पूछते ही शैली ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया था- “शी… इनका नाम लेना भी खतरे से खाली नहीं! देखती नहीं, कैसे रातदिन कैंटिन में दबंगों के साथ बैठे रहते हैं ये लड़के? उसदिन किसी ने बाहर के लड़कों के कैम्पस में आने पर ऐतराज़ किया तो उन्होनें चाकू निकाल लिया. कभी कोई क्लास में नज़र आते हैं? प्रोफ़ेसर्स भी इनसे डरकर चलते हैं. स्पोर्टस टीचर सावंत और रंगनाथन की तो इनसे पूरी मिली-भगत है. इनके बल पर मैनेजमेंट पर भी रौब जमाने से बाज नहीं आते.”
उसदिन तनु की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना और एक मिनट के मौन के बाद कॉलेज की छुट्टी कर दी गई थी. हिया का मन उदासियों में डूबा हुआ था. आज उसने कॉलेज कैम्पस में नील को भी कहीं नहीं देखा था. बाहर निकलते हुये उसे राहिला ने बताया था कि उसने नील और जेनोभी को बास्किन रोबिन्स आईस क्रीम पार्लर में साथ-साथ आईस क्रीम खाते हुये देखा था. “जेनोभी अपने फेवरिट स्ट्राबेरी फ्लेवर के लिये नील से ज़िद्द कर रही थी…” बताते हुये राहिला ने शैली की तरफ देखकर शरारत से आंख मारी थी. सुनकर वह और उदास हो गई थी. आज सुबह से उसने कितने मिस कॉल दिये थे उसे, मगर उसने उसे मुड़कर फोन नहीं किया था. वह खुद भी उसे कॉल नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उसके फोन में बैलेंस नहीं बचा था. पापा साढ़े तीन सौ का रीचार्ज हर महीने करवाते हैं, मगर इससे क्या होता है! 1000 का मैसेज पैक भी 15 दिन से ज़्यादा नहीं चलता. नील बाकी रीचार्ज करवा देता है, मगर इस महीने जाने उसने क्यों नहीं करवाया. वह भी संकोच से कुछ कह नहीं पाई. जसिका ने कहा तो वह उसके साथ ममता को देखने उसके घर चली गई. ममता उनके क्लास में पढ़ती थे. उसकी तबियत बहुत दिनों से ठीक नहीं चल रही थी. जाने क्यों दिन पर दिन दुबली होती जा रही थी. उसे याद है स्कूल के दिनों में लड़कियां उसके सेब-से सुर्ख और फूले-फूले गालों की चुटकियां लिया करती थीं.
ममता के घर जाकर देखा था, वह अपने घर पर नहीं थी. खून की जांच करवाने पैथोलॉजी सेंटर गयी हुई थी. तीन दिन से उसका बुखार नहीं उतरा था. उसके घर में अमेरिका से उसकी आंटी आई हुई थीं जो मनोविज्ञान में बफेलो यूनिवर्सिटी से पी. एच. डी. कर रही थीं. ममता की मां उन्हें अपना नया बंगला घूम-घूमकर दिखा रही थीं. ममता का इंतज़ार करते हुये हम भी उनके साथ थे. ममता के कमरे में ममता की तस्वीर देखकर उसकी आंटी उसे यकायक पहचान ही नहीं पाई थीं- “ये ममता है! इतनी दुबली! उसकी तबीयत तो ठीक है?”
“अरे तबीयत को क्या हुआ! डायटिंग चल रही है. जानती हो ना आजकल ज़ीरो फिगर फैशन चल रहा है.” उनके सवाल पर ममता की मां ने हंसते हुये सहज भाव से जवाब दिया था और फिर फर्श पर पड़ी हुई ममता की कोई चीज़ उठाकर अलमारी में रखने के लिये जैसे ही उसके पल्ले खोले थे, प्लास्टिक का एक बड़ा थैला भरभराकर नीचे गिर पड़ा था. हम सब ज़मीन पर बिखरी हुई चीज़ों को हैरत से देखते रह गये थे- बासी, उबले अंडे, सड़े हुये टोस्ट, फल…
ममता की आंटी ने फर्श पर बिखरी चीज़ों से नज़र हटाकर एक बार ममता की तस्वीर की तरफ देखी थी और होंठों ही होंठों में बुदबुदाई थी- “ओह! आई सी… अनोरेक्सिया! खाना ना खाने की जानलेवा बीमारी!”
“क्या!” हम सब के मुंह से लगभग एक साथ ही निकला था. ममता की मां का चेहरा एकदम से रक्त शून्य पड़ गया था. वे चुपचाप बिस्तर में बैठ गई थीं.
ममता की आंटी भी उनके पास बैठ गई थीं- “मुझे ममता के बारे में बताइये दीदी, सबकुछ!”
ममता की मां गहरे आश्चर्य में दिख रही थीं- “क्या बताऊं! सब कुछ तो ठीक था… ममता, मेरी बहुत अच्छी बच्ची! विनम्र, अनुशासित, कभी किसी बात का विरोध नहीं. ना कहना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं. सब कहते, बेटी हो तो हमारी ममता जैसी.” कहते-कहते वे रोने लगी थीं- “आप तो जानती हैं, हमारी एकलौती बेटी को हमने भी किस प्यार-दुलार से पाला! उसके मुंह खोलने से पहले ही उसकी सारी इच्छायें पूरी कर दी. कभी स्कूल-कॉलेज तक अकेली जाने नहीं दिया, किसी बुरी संगत में पड़ने नहीं दिया… इतनी भोली जो है मेरी बच्ची!”
सुनते हुये आंटी के चेहरे का रंग बदला था- “हां, ये सब तो मैं जानती हूं, उसमें हाल में आये बदलाव के बारे में बतलाइये.”
जाने वे क्या जानना चाहती थीं! हम भी ध्यान से सुन रहे थे. “इधर…” ममता की मां सोचने की क़ोशिश करते हुये बोल रही थीं- “इधर उसके रिजल्ट ख़राब आने लगे हैं.”
“हमसे भी ज़्यादा बोलती-बतियाती नहीं, अपने में गुमसुम-सी रहती है मैम!” हिया से रहा नहीं गया तो उसने भी बढ़कर कह दिया. आंटी सबकी बातें बहुत ध्यान से सुन रही थीं. “घर में भी अधिकतर अपने कमरे में पड़ी रहती है. खाना भी अपने कमरे में खाने की ज़िद्द करती है.” थोड़ी देर चुप रहकर ममता की मां ने संकोच के साथ रुक-रुककर कहा था- “मैंने उसदिन ब्रा पहनने की सलाह दी तो उसने अजीब-सी बात कही- ‘नहीं, मैं यह नहीं पहनूंगी! फिर मैं बड़ी हो जाऊंगी. मुझे बड़ी नहीं होना है!’”
सारी बातें सुनकर आंटी बेहद चिंतित नज़र आने लगी थीं. उन्होंने ममता की मां के दोनों हाथ पकड़ लिये थे- “सुनिये दीदी! हमारी बेटी बीमार है! उसे अनोरेक्सिया है! यह एक जानलेवा मानसिक बीमारी है. हमें और देर नहीं करनी चाहिये, ममता को मदद की आवश्यकता है.”
सुनकर ममता की मां बेहद घबरा गई थीं. फफक-फफककर रोने लगी थीं. जसिका ने ही फिर बढ़कर इस बीमारी के बारे में तफसील से जानना चाहा था. घबरा तो सभी गये थे. आंटी ने उन्हें साधारण भाषा में समझाने की क़ोशिश की थी- “यह मानसिक बीमारी अधिकतर सम्पन्न घर की लड़कियों को किशोरावस्था में होती है. कुछ लड़कियां ‘अच्छी बेटी’ बनी रहने के लिये बड़ों की हर जायज़-नाजायज़ बातों को मानती चली जाती हैं. दुर्बल व्यक्तित्व के होने के कारण ना चाहते हुये भी दूसरों की हर बात मानते चले जाने की विवशता उनके भीतर विद्रोह की भावना पैदा कर देती है. ममता के मामले में ही देख लो, बहुत ज़्यादा सुरक्षित माहौल में इनका आत्मविश्वास पनप नहीं पाता. मां-बाप की अनुशासित छ्त्र-छाया में उनका अपना परिचय खो जाता है. आईडेंटिटी क्राइसिस की मन:स्थिति में वे रात दिन घिरी रहती हैं. सेक्स के प्रति भी मन में कुंठा समा जाती है. वे बड़ी होने में असुरक्षित महसूस करने लगती हैं. इसलिये किशोरावस्था में शरीर में आनेवाले परिवर्तनों से भी परेशान हो जाती हैं. नहीं खाकर, दुबली रहकर वे खुद को जिस्म से बच्ची बनाये रखना चाहती हैं.”
वे सब हैरत से मुंह खोले उनकी बात सुन रहे थे. ओह! मन की दुनिया कितनी अजीब होती है! किसी भूलभुलैया से कम नहीं! आंटी का कहना ख़त्म नहीं हुआ था- “यह खाना ना खाना, अपनी मर्ज़ी का करना एक तरह से उसी विद्रोह की अभिव्यक्ति है. इसमें वे अपनी जीत देखती हैं. इस बीमारी का ईलाज इसलिये भी कठिन हो जाता है कि बीमार अपनी ग़लत सोच को सही समझता है और नहीं खाकर जितना दुर्बल होता जाता है, स्वयं को अपने इस मिशन में उतना ही सफल मानने लगता है. इस ग़लत बात के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है.”
“अब ये बताओ हम करें क्या?” ममता की मां लगातार रोये जा रही थीं.
“सबसे पहला काम तो यही है कि ममता के खतरनाक ढंग से गिर गये वजन को नॉर्मल स्तर तक लाना पड़ेगा. उसके बाद ही आगे की सोची जायेगी.”
ममता अभी तक नहीं लौटी थी. उन्हें यहां आये हुये काफी देर हो चुकी थी इसलिये वे फिर आने की बात करके वहां से चली आयी थीं. रास्ते भर हिया को आंटी की बात याद आती रही थी. मन और भी विषन्न हो उठा था. आज का दिन ही मनहूस है. हर तरफ से बस बुरी ख़बरें!
घर में आते ही बुआ को देखकर उसका रहा-सहा मूड भी एकदम से बिगड़ गया था. इस झुमरी तलैयावाली बुआजी को वह ज़रा बर्दास्त नहीं कर पाती. हर बात में दूसरों के फटे में टांग अड़ाना, ताने देना, जासूसी करना… रिश्तेदारों के बीच मैडम ’हिन्दुस्तान टाइम्स’ के नाम से जानी जाती हैं. इसकी ख़बर उसे, उसकी ख़बर इसे… बस अब यही एक काम बचा है इनके जीवन में. एकलौते बेटी की शादी हो चुकी है. ज़ाहिर है, बहू से भी नहीं बनती. ये सेर तो बहुरिया सबा सेर! इसलिये हर दूसरे, तीसरे महीने अचार, मठरी लेकर किसी ना किसी रिश्तेदार के घर छापा मारने निकल पड़ती हैं. उनको देखकर सभी का मुंह बन जाता है.
पैर छूते ही उन्होंने अपनी तहक़ीकात शुरु कर दी थी – “बड़ी देर कर दी बिट्टो आज तो आने में!” फिर दीवार घड़ी की तरफ देखा था- ” बहू तो कह रही थी दो बजे तक घर आ जाती हो!” इसके बाद बाबूजी की ओर मुड़ी थीं – “समय बहुत ख़राब है नंदू! निर्भयावाला मामला देखा ना… दूसरों को दोष देकर क्या होगा. औरतों को खुद सम्हलकर रहना चाहिये… बाद में गला फाड़ते रहो, उससे क्या होने वाला! गया तो अपना ही जायेगा ना?”
उनकी बात सुनकर हिया का सर गरम हो गया था. मगर मां का चेहरा पीला पड़ गया था. बाबूजी उसे इशारे से शांत रहने को कह रहे थे. फिर भी उससे चुप रहा नहीं गया था – “अगर जमाना बुरा है तो औरतों को घर के भीतर रहना पड़ेगा? क्यों भला! अंदर वह रहे जिसकी नीयत ख़राब है. क्या हम जंगल में रहते हैं कि शेर, भालू के डर से बाहर ना निकलें? और अगर दरिंदे खुले घूम रहे हैं तो उन्हें पिंजरे में बंद करो! मर्दों के डर से औरतें बहुत घरों में रह चुकीं, अब घर में रहने की बारी उनकी है. मैं तो कहती हूं शाम के बाद सारे लफंगों, दबंगों को लॉक अप्स में डाल देना चाहिये ताकि लड़कियां निश्चिंत होकर घर से बाहर निकल सके!”
सुनकर बुआ मुंह फाड़कर हंसी थीं – “तेरी बेटी तो वाकई बहुत पढ़-लिख गई है रे नंदू!” फिर किसी तरह अपनी हंसी रोकते हुये व्यंग्य से बोली थी – “क़िताबों की दुनिया से बाहर निकलकर चीज़ों को देखना सीखो बिटिया, कितने धान से कितना चावल निकलता है पता चल जायेगा…”
उनकी बातों को टालने के लिये मां पहले ही भीतर चली गई थीं. अब हिया भी पैर पटकते हुये उनके पीछे चली गई थी. जाते हुये उसने सुना था, बुआ पापा से कह रही थीं – “मेरी नज़र में एक बहुत अच्छा लड़का है नंदू…”
खाने बैठकर वह बड़बड़ाती रही थी – “इन्हें मना कर देना, मेरे मामलों में टांग ना अड़ाया करें!”
मां ने खाना परोसते हुये अपने होंठों पर उंगली रखी थीं – “शी…! ऐसा नहीं कहते. तुम्हारे भले की सोचती हैं. पढ़ी-लिखी नहीं हैं इसलिये बोलने का सलीका नहीं आता. साई बाबा के दर्शन के लिये सीरीडिह जायेंगी परसों, दो दिन की ही बात है.”
जानकर हिया का मूड ख़राब हो गया था – “दो दिन!”
उसने खाना शुरु किया ही था की मोबाईल का मैसेज अलर्ट आने लगा था. एक के बाद एक तीन. मोबाईल किताबों के बैग में था. शीट! मोबाईल साइलेंट पर करना भूल गई! वर्ना हमेशा वह घर में घुसने से पहले मोबाईल को याद से साइलेंट मोड में कर देती है. कॉल लॉग, मैसेज- सब मिटा देती है. उसने सारे लड़कों के नाम भी लड़कियों के नाम से सेव कर रखे हैं. ये मोबाईल भी जान का जंजाल बना हुआ है! कॉलेज में भी हर टीचर की नज़र से छिपाओ. बीच-बीच में क्लास के सी. आर. से तलाशी ली जाती है तो कभी प्रिंसिपल खुद छापा मारने आ जाता है. ओह गॉड! पूरी दुनिया हमें सुधारने के पीछे पड़ी हुई है! स्कर्ट घूटनों से दो इंच नीचे होनी चाहिये, ब्लाउज के सारे बटन बंद होने चाहिये, नो स्लीबलेश, नो टाइट्स, नो फैशन… जोसुआ ठीक ही कहता है- ‘ये बूढ़े-खुसट हम नौजवानों से जलते हैं! जो खुद करना चाहकर भी कर नहीं पाते, वही करने से हमें रोकते हैं!’ शैली कहती
9 Comments
maarmik kahani
आपके ब्लॉग को ब्लॉग – चिठ्ठा में शामिल किया गया है, एक बार अवश्य पधारें। सादर …. आभार।।
नई चिठ्ठी : चिठ्ठाकार वार्ता – 1 : लिखने से पढ़ने में रुचि बढ़ी है, घटनाओं को देखने का दृष्टिकोण वृहद हुआ है – प्रवीण पाण्डेय
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बहुत खूबसूरत कहानी…
Very nice story…
bahut umda kahani… ise sajha karne ka bahut bahut shukriya prabhat ji…
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