मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए यह लेख लिखा था उदय प्रकाश जी ने। आप फिर से पढ़ सकते हैं-
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मनोहर श्याम जोशी बड़े लेखक थे। रोलां बर्थ जिसे ‘मेगा ऑथर’ कहा करते थे – ‘महालेखक’। अगर ध्यान से देखते तो हम लोग और बुनियाद भी मनोहर श्याम जोशी द्वारा टेलीविजन के पर्दे पर लिखे गये हिन्दी के महत्त्वपूर्ण उपन्यास ही थे। उनकी सारी बनावट उपन्यास की थी। भले ही रमेश सिप्पी, भास्कर घोष और मनोहर श्याम जोशी पर ये आरोप लगाये गये हों कि उन्होंने दूरदर्शन को लोकप्रिय बनाने के लिए किसी ‘मेक्सिकन’ सोप ऑपेरा से’आइडिया’ लिया था, लेकिन गहराई से देखें तो हम लोग और बुनियाद के सारे पात्र किसी सोप ऑपेरा के पात्र नहीं, किसी महत्त्वपूर्ण साहित्यिक उपन्यास के ही पात्र थे। इनमें जो आख्यान या ‘नैरेटिव’ था, वह किसी महाकाव्यात्मक भारतीय उपन्यास का नैरेटिव था।
कहा जाता है कि उपन्यास को पहचानने का सबसे प्रमुख लक्षण है उसमें से हमेशा झलकने-कौंधने वाली ‘ऐतिहासिकता’। हर उपन्यास अनिवार्यतः इतिहास से टकराता है। वह या तो उसका निषेध करता है या उसे स्थगित करता है या फिर उसे व्यक्त करता है। यानी नये सिरे से उसकी पुनर्रचना करता है। इस अर्थ में उपन्यास हमेशा अपने समय के इतिहास की ‘एंटीथीसिस‘ होता है। शायद यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण उपन्यास इतिहास से अधिक मौलिक और प्रामाणिक हुआ करता है। उपन्यास और कुछ नहीं, इतिहास के किसी अंश का साधारणीकरण और मानवीकरण है। उपन्यास इतिहास का लोकतंत्र है और एक अकेले नागरिक या मनुष्य की डायरी । मनोहर श्याम जोशी (इसे उनके साथ काम कर चुके पुष्पेश पंत, अमिताभ श्रीवास्तव, शुतापा इरफान और मेरे समेत कई लेखक अच्छी तरह से जानते हैं) कुछ भी लिखने के पहले शोध (रिसर्च) को हमेशा बहुत महत्त्व देते थे। पाँच-सात वर्ष पहले वे सुप्रसिद्ध कन्नड़ कथाकार भैरप्पा के उपन्यास दाटु (उल्लंघन) की पटकथा लिख रहे थे। उपन्यास कालक्रम के लिहाज से बहुत अराजक और आगे-पीछे था। इसकी ‘आधार कथा-रेखा‘ का छोटा-सा काम उन्होंने मुझे सौंपा। कहने की जरूरत नहीं कि उस काम के दौरान मुझे दक्षिण भारतीय राजनीति और उसकी जातीय टकराहटों का अच्छा-खासा इतिहास समझना पड़ा।
हम लोग और बुनियाद को पहले प्रसारण के दौरान जसा लोकप्रियता मिली थी, उससे कई बार तो ‘प्रिंट एज’ की शुरुआत की घटनाएं याद आती हैं। उस समय जब अखबार बिल्कुल नई चीज हुआ करता था और जब तोप के ‘मुकाबिल‘ अखबार निकालने का मुहावरा बना था। उस दौरान एलेक्जेंडर ड्यूमा और विक्टर ह्यूगो के सीरियल उपन्यासों का पाठक उसी तरह बेसब्री से इंतजार करते थे, जैसे हम लोग और बुनियाद की अगली कड़ियों का। शर्तें और बाजियां लगती थीं कि अब अगली कड़ी में नन्हें या बड़की या मंझली का क्या होगा। क्या यह एक अलग अध्ययन का विषय नहीं है कि जोशी जी के दोनों इलेक्ट्रॉनिक उपन्यास इतने ताकतवार थे कि उनमें अभिनय करने वालों की समूची पहचान बाद में उन पात्रों से कभी अलग नहीं हो पाई
और धारावाहिक के समाप्त होते ही वे परदे के पार के अंधेरे में पता नहीं कहाँ विलुप्त हो गए। मुझे नहीं लगता कि हमारे समय में हिंदी का कोई दूसरा लेखक समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में इस तरह प्रख्यात, लोकप्रिय और जाना-पहचाना रहा हो ।
कुछ अरसा पहले जब मनोहर श्याम जोशी ने हरिया हरक्यूलीज़ की हैरानी (हम लोग इसे मजाक में ‘ह ह है‘ कहा करते थे) लिखा तो, (जिसका उन्हें और हम सबको अंदाजा था) तथाकथित ‘हिंदी समाज‘ में भरपूर बवाल हुआ। इंडिया टुडे को चिट्ठियां
भेजी गईं। निंदा अभियान चलाया गया। लेकिन इस विनम्र सत्य को स्वीकार किया जाना चाहिए कि मनोहर श्याम जोशी जैसे बड़े रचनाकार के हास्य और गाली के पीछे भी वह प्रचंड पवित्र आधुनिक प्रतिभा सदा उपस्थित रहती थी, जो हमेशा इतिहास और ‘मिथक‘ के मूल सवालों को अपनी रचना की आँख से ओझल नहीं होने देती थी। जो लोग समाजविज्ञान, लोक-संस्कृति (फोकलोर) और नृतत्त्व विज्ञान (एंथ्रोपोलॉजी) से जुड़े हुए थे, ‘हरिया हरक्यूलीज़‘ ने उन्हें एक नई दृष्टि दी। मनोहर श्याम जोशी का यह ‘हल्का-फुल्का’, ‘मल-मूत्र’ वाला उपन्यास भी जाति, कुटुंब, गोत्र और क्षेत्रीयता के हाथों गढ़े जाते किसी दंतकथा के नायक की व्युत्पत्ति का एक अनोखा उत्तर-आधुनिक गल्प कुछ वर्ष पहले, जोधपुर में दिवंगत कोमल काठारी ने इस पर बातचीत के दौरान कहा था कि हरिया हरक्यूलीज़ को समझने के लिए रवींद्रनाथ ठाकुर के प्रसिद्ध लेख पहला राजा और लुई वेग्नर द्वारा संपादित मॉर्फोलॉजी ऑफ फोकटेल को पढ़ना चाहिए। जाहिर है, किस साहित्यकार की कौन-सी कृति किन लोगों द्वारा पढ़ी जा रही है, इसे समझना अब बहुत जरूरी हो गया है। वरना निर्मल वर्मा, अज्ञेय, धर्मवीर भारती, मुक्तिबोध और अब मनोहर श्याम जोशी की रचनाओं के प्रति ‘सामूहिक-समन्वित’ आचरण की रोक-थाम भविष्य में भी नहीं हो पाएगी। अमेरिका में वर्जीनिया विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के विभागाध्यक्ष और हिंदी के सुप्रसिद्ध विद्वान और अनुवादक रॉबर्ट ए ह्यूक्सटेड ने ह ह है और ट-टा प्रोफेसर का अनुवाद किया और इस अनुवाद को ब्रिटेन का महत्त्वपूर्ण ‘क्रॉसवर्ड‘ पुरस्कार भी मिला। (मुझे नहीं पता कि हिंदी समाज के पुरस्कार-तंत्र के दिग्गजों को इसका पता भी होगा)।
रॉबर्ट की अगली योजना क्याप के अनुवाद की थी, जिसके लिए जोशी जी से उनकी बात भी हो चुकी थी। तीन दिन पहले जब मैं उन्हें जोशीजी के न रहने की सूचना दे रहा था, जेएनयू की वह पांच साल पहले की शाम लगातार याद आ रही थी, जब ह
ह है और ट–टा प्रोफेसर पर लंबी बात हुई थी और कसप के नायक डीडी के बारे में इतनी रोचक जानकारियाँ मिली थीं कि उनका जिक्र फिर कभी। अभी, जब मैं यह टिप्पणी लिख रहा हूँ, वर्जीनिया से उनके अनुवादक और मेरे मित्र रॉबर्ट का पत्र आ गया है : ‘ओह! कितना बड़ा आघात! किसी दिन उनकी मृत्यु होगी, इसका विचार तक मेरे दिमाग में कभी नहीं था । वे हमेशा कितने युवा और जीवंत लगते थे। खासतौर पर अपनी सोच और रचनाओं में। पिछली गर्मियों में जब वे यहाँ अमेरिका में थे, मैं उनसे मिलने नहीं जा सका था क्योंकि मैं दुर्भाग्य से उन दिनों बहुत अधिक व्यस्त था और तब मुझे हल्का-सा अंदेशा भी नहीं था कि मैं उन्हें अब कभी नहीं देख पाऊँगा। इतनी जल्द ! मैंने अभी-अभी उनके बेटे को पत्र भेजा है, जो यहीं के एक शहर में है। यहाँ से कार द्वारा सिर्फ चार घंटे की दूरी पर। हो सकता है वह अभी वहाँ हो।
कसप हिंदी की पहली शुद्ध आधुनिक औपन्यासिक प्रेमकथा है। एक कामयाब प्रेम-उपन्यास। न गुनाहों का देवता जैसा अर्ध-छायावादी और घनघोर हिंदी पट्टी वाली भावुकता से लबलबाता दूसरे दर्जे का असफल उपन्यास, न शेखर-एक जीवनी जैसा
जटिल, जो ‘इंसेस्ट सेक्सुअलिटी‘ से लेकर क्रांतिकारिता तक की तमाम कौड़ियाँ बटोरता है। कसप पूरे खिलंदड़ेपन, हास्य और संवेदना से भरा हुआ एक बेहद पठनीय प्रेमाख्यान है। शायद हिंदी का अकेला आधुनिक प्रेम-उपन्यास। इस उपन्यास में मनोहर श्याम जोशी अपने पूरे सृजनात्मक फॉर्म में हैं। अपने बर्बाद फ्रीलांसर इंटेलेक्चुअल युवा प्रेमी डीडी के प्यार से हारी हुई नायिका ‘बेबी‘ के अंत में विवाहित हो जाने के बाद भी पहली बार समर्पण में जो वाक्य बोलती है, उसे जोशी जी के अलावा कोई और नहीं लिख सकता था। वह वाक्य था, ‘आ, भोग लगा ले मेरा ।’ आख्यान के भीतर किसी घटना के आविष्कार का ऐसा कौतुक, कोई दूसरा रचनाकार ही जान सकता है कि यह कितना कठिन और असाध्य होता है। कसप में डीडी और बेबी की पहली भेंट तब होती है और प्रेम का पहला बीज उन दोनों के हृदय में उस समय पड़ता है, जब नायक टॉयलेट जाना चाहता है और उसके पाजामे के नाड़े में ‘बह्मगांठ’ लग गई है। उस गांठ को बेबी नाखून और दांत से खोलती है। प्रेम का यह उद्दीपन प्रसंग और घटना-संदर्भ किसी औसत रचनाकार के बस की बात नहीं। ऐसी कल्पनाशीलता और विदग्धता हिंदी के जिस दूसरे कथाकार में थी और जो अपनी तरह से गल्प का दूसरा सिद्ध उपन्यासकार था, उसका नाम था-हजारी प्रसाद द्विवेदी।
अनामदास का पोथा में तरुण रैक्व के हृदय में भी प्रेम का पहला बीज ऐसे ही अनोखे वैचित्र्य से भरे प्रसंग से होता है।
अभी जोशी जी के न रहने का आघात बहुत गहरा है। पिछले महीने भर में उनसे हुई मुलाकातें और उनका हँसता हुआ चेहरा बार-बार सामने आता है। वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी द्वारा उनके सम्मान में घर की छत पर आयोजित ‘मित्र-मिलन‘ और
फिर दरियागंज में ‘होली मिलन‘ । ओम थानवी ने निकट भविष्य में ऐसा ही आत्मीय-सा अनौपचारिक आयोजन राजस्थान में उनके जन्म-स्थान अजमेर में करने की योजना बनाई थी और जोशी जी इसके लिए बहुत उत्सुक थे। उन्हें जल्द ही मेरे घर की छत पर भी आना था।
उस शाम जब आयोजन समाप्त होने को था, यह एक संयोग ही था कि तीन लोग एक जगह उस कक्ष में एक साथ देर तक रह गए थे। जोशी जी, ‘सराय‘ के रविकांत और मैं। और उन्होंने हँसते हुए कहा था, “देखो, हिंदी साहित्य के ‘लुंपेन प्रोलितेरिएत’
इस हाल में भी अंत में एक जगह इकट्ठा हैं।” इसके बाद वे त्रिनेत्र जोशी की बिटिया के विवाह की रात मिले । वहाँ भी वही ‘विट‘ और प्यार। ‘तुम डांस नहीं करोगे? अपनी पत्नी या किसी फ्रेंड के साथ?’ वे सचमुच एक महान ‘प्रोलेतेरिएत‘ थे। सामंती
अभिजात और बुर्जुआ पाखंड की धज्जियां उड़ाने वाले मेहनतकश लेखक। मुझे गहराई से यह लगता है कि स्वतंत्रता के बाद उत्तर-औपनिवेशिक भारत में आख्यान की जो एक दूसरी परंपरा निर्मित-विकसित हुई, जिसके निर्माण में हजारी प्रसाद द्विवेदी, अमृतलाल नागर, श्रीलाल शुक्ल और एक हद तक फणीश्वरनाथ रेणु की महत्त्वपूर्ण सृजनात्मक भूमिका थी, मनोहर श्याम जोशी आख्यान की उसी दूसरी परंपरा के अप्रतिम कथाकार थे। एक जीनियस मेगा ऑथर। उनका वास्तविक मूल्यांकन तब
हो पाएगा जब हिंदी की अकादमिक आलोचना में पीढ़ी परिवर्तन होगा और इसके रुग्ण सामंती चेहरे की बजाय इसका एक ताजा आधुनिक चेहरा हमारे सामने उपस्थित होगा ।