कुछ दिनों पहले वरिष्ठ कवयित्री सुमन केसरी ने मोनालिसा को लेकर कुछ कवितायेँ लिखी थी. आज समकालीन कवयित्री कलावंती की कुछ कवितायेँ, एकदम अलग रंग-ढंग में- जानकी पुल. ———————————————————————————————++++++++++++++++++++++++++++ मोनालिसा (सात चित्र)एकमोनालिसालोग सदियों से ढूंढ रहे हैंतुम्हारी मुस्कान का अर्थ!मुस्कान में ख़ुशी है या क्लेशकिसी की प्रषंसा है या द्वेषमुग्धा नायिका हो मोनालिसा या विरहिन अशेषतुम्हारी मुस्कान का अर्थ क्या है मोनालिसा?दोमोनालिसा किसी बहुतगहरे भाव में डूबी होक्या अपने प्रिय को देख लिया हैकिसी दूसरी प्रिया के साथदुःख में हो मोनालिसा?तीनमोनालिसाक्या बहुत गहरे दुःख में हो!या यह दुःख किसी सुन्दर सृजन सेपहले का दुःख हैजोसुख से भी ज्यादा सुन्दर होता…
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कुछ दिनों पहले वरिष्ठ कवयित्री सुमन केसरी ने मोनालिसा को लेकर कुछ कवितायेँ लिखी थी. आज समकालीन कवयित्री कलावंती की कुछ कवितायेँ, एकदम अलग रंग-ढंग में- जानकी पुल. ———————————————————————————————++++++++++++++++++++++++++++ मोनालिसा (सात चित्र)एकमोनालिसालोग सदियों से ढूंढ रहे हैंतुम्हारी मुस्कान का अर्थ!मुस्कान में ख़ुशी है या क्लेशकिसी की प्रषंसा है या द्वेषमुग्धा नायिका हो मोनालिसा या विरहिन अशेषतुम्हारी मुस्कान का अर्थ क्या है मोनालिसा?दोमोनालिसा किसी बहुतगहरे भाव में डूबी होक्या अपने प्रिय को देख लिया हैकिसी दूसरी प्रिया के साथदुःख में हो मोनालिसा?तीनमोनालिसाक्या बहुत गहरे दुःख में हो!या यह दुःख किसी सुन्दर सृजन सेपहले का दुःख हैजोसुख से भी ज्यादा सुन्दर होता…
युवा लेखक कुणाल सिंह सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं. हाल में ही दिवंगत हुए फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष पर उनका यह लेख रेखांकित किये जाने लायक है. ऋतुपर्णो घोष पर इस लेख में अनेक नई जानकारियां हैं, बंगला सिनेमा परंपरा में उनके योगदान का सम्यक मूल्यांकन भी. एक अवश्य पठनीय लेख- मॉडरेटर =============================================================== 13 अगस्त, 1963 को कलकत्ते में जनमे ऋतुपर्णो अर्थशास्त्र से स्नातक थे। पिता श्री सुनील घोष का सम्बन्ध फिल्मी जगत से था, सम्भवतः मां का भी, इसलिए ऋतुपर्णो बचपन से ही फिल्म-निर्माण की प्रक्रियाओं से वाकफियत रखते थे। अपने समकालीन अंजन दत्ता की तरह ही उन्होंने अपने करियर की शुरुआत विज्ञापन…
युवा लेखक कुणाल सिंह सिनेमा की गहरी समझ रखते हैं. हाल में ही दिवंगत हुए फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष पर उनका यह लेख रेखांकित किये जाने लायक है. ऋतुपर्णो घोष पर इस लेख में अनेक नई जानकारियां हैं, बंगला सिनेमा परंपरा में उनके योगदान का सम्यक मूल्यांकन भी. एक अवश्य पठनीय लेख- मॉडरेटर =============================================================== 13 अगस्त, 1963 को कलकत्ते में जनमे ऋतुपर्णो अर्थशास्त्र से स्नातक थे। पिता श्री सुनील घोष का सम्बन्ध फिल्मी जगत से था, सम्भवतः मां का भी, इसलिए ऋतुपर्णो बचपन से ही फिल्म-निर्माण की प्रक्रियाओं से वाकफियत रखते थे। अपने समकालीन अंजन दत्ता की तरह ही उन्होंने अपने करियर की शुरुआत विज्ञापन…
स्वाति अर्जुन को हम एक सजग पत्रकार के रूप में जानते रहे हैं, वह एक संवेदनशील कवयित्री भी हैं इसका पता इन कविताओं को पढ़कर चला. घर-परिवार, आस-पड़ोस के प्रति संवेदनशील दृष्टि, भाषा के सहज प्रयोग, सहज जिज्ञासाएं, भावना और बुद्धि का संतुलन- स्वाति अर्जुन की कवितायेँ हमें पढने के लिए विवश करती हैं और बहुत कुछ सोचने के लिए भी. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर.=====घरघर…मैं…घर, मैं और प्लंबर! घर…. कारपेंटर, मिस्त्री और हॉकर…गैस वाला, बिजली मिस्त्री… धोबी…कभी-कभी धोबन भी…सबसे अहम….कूड़े वाला !गृहस्थी…वैन ड्राईवर, ट्यूशन टीचर, आर्ट इंस्ट्रक्टर…सीटी बजाता रात-बिरात, चौकीदार..टूटी सीढ़ियों को चढ़ने लायक बनाता—ईंट-गारे वाला मिस्त्री…प्रॉपर्टी डीलर, सोसायटी इंचार्ज…कभी-कभी…
स्वाति अर्जुन को हम एक सजग पत्रकार के रूप में जानते रहे हैं, वह एक संवेदनशील कवयित्री भी हैं इसका पता इन कविताओं को पढ़कर चला. घर-परिवार, आस-पड़ोस के प्रति संवेदनशील दृष्टि, भाषा के सहज प्रयोग, सहज जिज्ञासाएं, भावना और बुद्धि का संतुलन- स्वाति अर्जुन की कवितायेँ हमें पढने के लिए विवश करती हैं और बहुत कुछ सोचने के लिए भी. आप भी पढ़िए- मॉडरेटर.=====घरघर…मैं…घर, मैं और प्लंबर! घर…. कारपेंटर, मिस्त्री और हॉकर…गैस वाला, बिजली मिस्त्री… धोबी…कभी-कभी धोबन भी…सबसे अहम….कूड़े वाला !गृहस्थी…वैन ड्राईवर, ट्यूशन टीचर, आर्ट इंस्ट्रक्टर…सीटी बजाता रात-बिरात, चौकीदार..टूटी सीढ़ियों को चढ़ने लायक बनाता—ईंट-गारे वाला मिस्त्री…प्रॉपर्टी डीलर, सोसायटी इंचार्ज…कभी-कभी…
प्रियदर्शन की ये कविताएं प्रासंगिक भी हैं और बहुत कुछ सोचने को विवश भी करती हैं- \’जानवरों से हमें माफ़ी मांगनी चाहिए\’- जानकी पुल.=========================== जानवरों से हमें माफ़ी मांगनी चाहिएएकलोमड़ी चालाक होती है,सियार शैतानसांप ख़तरनाकबाघ डरावनागधा मूर्खघोड़ा तेज़और कुत्ता वफ़ादार,ये सब उस इंसान ने तय कर लिया जो कभी चालाक होता है, कभी शैतानकभी डरावना, कभी मूर्ख, और कभी-कभी तेज़ और वफ़ादार भी।वह एक ही साथ सांप भी हो जाता है और सियार भी जानवरों से हमें क्षमा मांगनी चाहिएउनके जंगल सभ्यताओं की तरह छलावों के घर नहीं रहेवे जो हैं, वे दिखते रहेउनके दांत, नाखून, रोएं, पंजे सब बिल्कुल सामने…
प्रियदर्शन की ये कविताएं प्रासंगिक भी हैं और बहुत कुछ सोचने को विवश भी करती हैं- \’जानवरों से हमें माफ़ी मांगनी चाहिए\’- जानकी पुल.=========================== जानवरों से हमें माफ़ी मांगनी चाहिएएकलोमड़ी चालाक होती है,सियार शैतानसांप ख़तरनाकबाघ डरावनागधा मूर्खघोड़ा तेज़और कुत्ता वफ़ादार,ये सब उस इंसान ने तय कर लिया जो कभी चालाक होता है, कभी शैतानकभी डरावना, कभी मूर्ख, और कभी-कभी तेज़ और वफ़ादार भी।वह एक ही साथ सांप भी हो जाता है और सियार भी जानवरों से हमें क्षमा मांगनी चाहिएउनके जंगल सभ्यताओं की तरह छलावों के घर नहीं रहेवे जो हैं, वे दिखते रहेउनके दांत, नाखून, रोएं, पंजे सब बिल्कुल सामने…
पेशे से प्राध्यापिका सुनीता एक संवेदनशील कवयित्री हैं. कुछ सोचती हुई, कुछ कहती हुई उनकी कविताओं का अपना मिजाज है. उनकी कुछ चुनी हुई कवितायेँ- जानकी पुल.================================================== जेहन जेहन के जहान में खोने-पाने के अतिरिक्त ‘दौलत की डिबिया’ जैसा कुछ है! हाँ, उत्तर-दक्खिन और पूरब-पश्चिम जैसा कुछ नहीं है।अगर कुछ है भी, तो उजाले का गीत, अँधेरे से लड़ाई,असमानता से भिडंत, और समय से सीधे-तीखे होड़! सजग< b>एक दुर्दांत शिखर पर बतौर प्रहरी देखती हूँ—(कई सारे काम के बीच समय निकालकर नीदों को तजकर)मिट्टी की खुशबू फूलों की महक महल-दो-महल के माहौल ख्यालों में गूँजते गोलियों की धुनदेखते-देखते दरख़्त में तब्दील होते…
पेशे से प्राध्यापिका सुनीता एक संवेदनशील कवयित्री हैं. कुछ सोचती हुई, कुछ कहती हुई उनकी कविताओं का अपना मिजाज है. उनकी कुछ चुनी हुई कवितायेँ- जानकी पुल.================================================== जेहन जेहन के जहान में खोने-पाने के अतिरिक्त ‘दौलत की डिबिया’ जैसा कुछ है! हाँ, उत्तर-दक्खिन और पूरब-पश्चिम जैसा कुछ नहीं है।अगर कुछ है भी, तो उजाले का गीत, अँधेरे से लड़ाई,असमानता से भिडंत, और समय से सीधे-तीखे होड़! सजग< b>एक दुर्दांत शिखर पर बतौर प्रहरी देखती हूँ—(कई सारे काम के बीच समय निकालकर नीदों को तजकर)मिट्टी की खुशबू फूलों की महक महल-दो-महल के माहौल ख्यालों में गूँजते गोलियों की धुनदेखते-देखते दरख़्त में तब्दील होते…