वरिष्ठ कवि दिनेश कुमार शुक्ल की कुछ कविताएँ. उनकी कविताओं में लोक-भाषाओं की गूँज सुनाई देती है जो सघन स्मृति-बिम्बों के बीच दूर से उम्मीद की तरह टिमटिमाती दिखाई देती हैं. उनकी समकालीनता में अतीत रचा-बसा दिखाई देने लगता है. आज उनकी कुल तीन कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.================================================================ चौथ का चंद्रमावह गली उधर से उधर हीकिसी तरफ़ मुड़ती चली जाती थीऔर जाने कहाँ जा निकलती …बहुत प्रयत्न के बाद भीउन पाँच में सेएक भी कभी जान नहीं पायागली का गंतव्यतब रातें बहुत जल्द हीशुरू हो जाती थीं,कण्ठ कुछ देर से फूटता था,हाफ़पैण्ट पहन कर एक अच्छी उमर तकलड़के स्कूल जाया…
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पहली सवाक फिल्म \’आलम आरा\’ पर एक रोचक लेख पढ़िए दिलनवाज का- जानकी पुल. ============================================================ सिनेमा के सन्दर्भ में \’सवाक \’ फिल्मों का आगमन प्रस्थान बिंदु की तरह स्मरण किया जाता है . बॉम्बे सिनेमा में इस तकनीक का भव्य स्वागत हुआ. स्पष्ट हो चुका था कि फ़िल्में पोपुलर तत्वों की और जाएंगी . स्पष्ट था कि गुजरा दौर यादों में बिसर जाने को है . एक चलन को आने में कभी- कभी वर्षो का इंतज़ार होता है . कभी हर वर्ष कुछ न कुछ नया देखने को मिल जाता है. हरेक फिल्म संदेश देकर कुछ अलग विचार को सींच सकती है. इसके मद्देनज़र फास्ट -फॉरवर्ड परिवर्तन का जो…
पॉल लाफार्ज और विल्हेम लीबनेख्त द्वारा लिखे गए \’मार्क्स के संस्मरण\’ के हिंदी अनुवाद से वहीं परिचय हुआ. पॉल लाफार्ज मार्क्स के दामाद थे. इसलिए ये संस्मरण बड़े आत्मीय और विश्वसनीय लगते हैं. पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया है हरिश्चंद्र ने और प्रकाशक हैं जन-प्रकाशन गृह, मुंबई. यह संस्मरण \’हिंदी समय\’ पर भी मौजूद है. पढियेगा- मॉडरेटर ====================================================================== जो मार्क्स के मानव हृदय को जानता चाहते है, उस हृदय को जो विद्वत्ता के बाहरी आचरण के भीतर भी इतना स्निग्ध था, उन्हें मार्क्स को उस समय देखना चाहिये जब उनकी पुस्तकें और लेख अलग रख दिये जाते थे, जब वह…
आज बाल दिवस पर कुछ बाल कविताएँ. कवि हैं भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि प्रेम रंजन अनिमेष- जानकी पुल.===============1.मोटी रोटीदादी की यह मोटी रोटीछूछी भी लगती है मीठीगेहूँ मकई चना मिला हैघर की चक्की का आटा हैउपलों पर इसको सेंका हैसत कुछ बूढ़े हाथों का हैजैसे जीवन जैसे माटीसोंधी सोंधी लगती रोटी2.अलसमैं भी रानी तू भी रानीकौन भरे गगरी में पानीगगरी खुद जाये पनघट तकभरकर आ जाये चौखट तक< div class=\"MsoNormal\" style=\"line-height: 150%;\">पर फिर गगरी कौन झुकायेकोई आये और पिलायेपानी की देखो मनमानीसूखे होंठ, आँख में पानी३.टमटमजिस गाड़ी को खींचे घोड़ाहमने उस पर चलना छोड़ारोता रहता इक्के वालामैंने वचन …
भानु भारती के निर्देशन में गिरीश कर्नाड के नाटक ‘तुगलक’ का भव्य मंचन दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हुआ. इस नाटक की प्रस्तुति को लेकर बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है अमितेश कुमार ने- जानकी पुल.================================“निर्देशक का यह मूलभूत कर्तव्य है कि वह नाटक के अर्थ को सशक्त दृश्यबिंबों के ऐसे क्रम में जमा दे कि दर्शको को अनजाने में ही उसका ग्रहण सुलभ हो जाय।\” इब्राहिम अलकाज़ी ने यह ‘तुगलक़’ के निर्देशकीय में कहा था. तुगलक देखे के लौटा तब से यह लाईन घूम रही थी दिमाग में. घर आया नाटक निकाला और पढ़ा. अब तुगलक को देखने का…
महज २८ साल की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को कुछ लोग हिंदी का कीट्स भी कहते हैं. उनकी कविताओं की एक किताब \’चन्द्रकुंवर बर्त्वाल का कविता संसार\’ हाथ लगी तो अपने जन्मदिन के दिन अपने इस प्रिय कवि को पढ़ता रहा. डॉ. उमाशंकर सतीश द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में बर्त्वाल जी की कई अच्छी कविताएँ हैं. बहरहाल, उनकी कुछ छोटी-छोटी कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल ========================================================================१.सुख-दुःख सपनों में धन- सा मिलता हैसुख जग में जीवन कोबिजली-सी आलोकित करती क्षण भर हँसी रुदन को.पहिन बसन काँटों में आता दुःख बांहें फैलाये निर्मम आलिंगन से करता…
आज \’प्रभात खबर\’ के संपादक हरिवंश ने मीडिया को लेकर एक आत्मालोचन परक लेख लिखा है. पढ़ने के काबिल लगा तो सोचा आप सबको भी पढ़वाऊं- प्रभात रंजन.====================================== मीडिया की ताकत क्या है? अगर मीडिया के पास कोई शक्ति है, तो उसका स्रोत क्या है? क्यों लगभग एक सदी पहले कहा गया कि जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो? सरकार को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है. न्यायपालिका अधिकारों के कारण ही विशिष्ट है. विधायिका की संवैधानिक भूमिका है, उसे संरक्षण भी है. पर संविधान में अखबारों, टीवी चैनलों या मीडिया को अलग से एक भी अधिकार है? फिर मीडिया का यह…
सुनील गंगोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास ‘प्रथम आलो’ जो बांग्ला पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि पर लिखा गया महाकाव्यात्मक उपन्यास है. इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘फर्स्ट लाइट’ के नाम से अरुणा चक्रवर्ती ने किया है. इसका हिंदी अनुवाद \’प्रथम आलोक\’ नाम से वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है, अनुवाद किया है लिपिका साहा ने- प्रभात रंजन.============================================ज्योतिरिन्द्रनाथ की गाड़ी छह बिडन स्ट्रीट में नेशनल थियेटर के सामने आकर खड़ी हो गई. थियेटर की इमारत पूरी तरह लकड़ी से बनी है. चारों ओर तख़्त का बाड़ा बना है और ऊपर छत टिन की. आज शो का मौका नहीं है, इसलिए अधिक भीड़-भाड़ भी नहीं है. ज्योतिरिन्द्रनाथ ने…
अपने कथ्य और शिल्प में विशिष्ट प्रेम रंजन अनिमेष की कवितायें हर बार कुछ नया रचने की कोशिश करती हैं । ‘मिट्टी के फल’ और ‘कोई नया समाचार’ के बाद उनका नया कविता संग्रह ‘संगत’ हाल ही में प्रकाशन संस्थान से आया है। पिता के जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान उनके साथ के जैसे गहन आत्मीय एवं मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत संग्रह में हैं वे हिंदी कविता में दुर्लभ हैं। यह आज के सयाने जमाने में एक सीधे सरल किंतु जीवन मूल्यों के साथ और जीवन मूल्यों के लिए जीने वाले सहृदय मनुष्य का वृत्तांत भी है। डायरी, संस्मरण, आत्मकथा…