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ललन चतुर्वेदी की यह कविताएँ स्त्रियों के संघर्ष के विभिन्न पहलुओं की ओर ध्यान ले जाती हैं। आइए, उनकी यह कविताएँ पढ़ते हैं- अनुरंजनी =======================================रोशनी ढोती औरतें * उसने हजारों बार देखा हैबहारों को फूल बरसाते हुएपर उसकी जिंदगी में कभी बहार नहीं आईउसने हजारों बार पाँवों को थिरकते देखा हैजब किसी का पिया घर आयापर उसके पाँव कभी थिरक नहीं पाएउसने हजारों बार सुनी हैशहनाई की मादक-मधुर धुनपर उसके लिए कभी बजी नहीं शहनाईयहाँ तक कि उसके जन्म परकिसी ने थाली नहीं बजाईइस दुनिया में उसके आने काकोई अर्थ नहीं थादुनिया से उसके कूच कर जाने कीकहीं कोई चर्चा…

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 यह सवाल बहुत वाजिब है कि क्या स्त्रीवादी होने का मतलब केवल स्त्री हक़ तक ही सीमित है या इसमें सभी मनुष्य शामिल होते हैं। इसके जवाब सबके पास अलग-अलग हो सकते हैं। इसी विषय पर होती दुविधाओं को आज हमारे समक्ष शिवानी प्रिया रख रही हैं। शिवानी हिन्दी साहित्य की विद्यार्थी रह चुकी हैं और अब दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई कर रही हैं तथा इग्नू से जेंडर डेवलपमेंट से स्नातकोत्तर की पढ़ाई भी कर रही हैं। इन्होंने ‘टेस्ट ऑफ़ फेमिनिज्म’ के तहत कई लड़कियों के संघर्ष को हमारे सामने लाया है। आज उनका यह संक्षिप्त लेकिन ठोस…

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यतीन्द्र मिश्र की किताब ‘गुलज़ार सा’ब: हज़ार राहें मुड़ के देखीं’ पर यह टिप्पणी लिखी है कवि-लेखक यतीश कुमार ने। आप भी पढ़ सकते हैं- मॉडरेटर=========================  इक इक याद उठाओ और पलकों से पोंछ के वापस रख दो … गुलज़ार दूध की ख़ाली बोतल की तरह आपके दरवाज़े पर खड़ा हूँ, जैसा हास्यबोध गुलज़ार का हो सकता है, एक आम पाठक या सिनेमा प्रेमी नहीं जानता, वो तो जानता है एक धीर-गंभीर शायर को, एक बेहद संवेदनशील पटकथाकार को, समुद्र की गहराई लिए पंक्तियों के रचयिता को, तो कभी प्रतिबद्ध फ़िल्मकार को! लेकिन इस किताब ने हम जैसे आम पाठक…

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आज पढ़िए अरविंद कुमार मिश्र की कविताएँ। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं और कविताएँ लिखते हैं। जानकी पुल पर उनकी कविताएँ पहली बार प्रकाशित हो रही हैं- मॉडरेटर =========================1तुम इस काल का पटाक्षेप होआंखों में फैल रहा आकाशऔर गुज़रे हुए कारवों की यादमन के हर कोने में काबिजदरख़्तों की छांवऔररातों में हर तरफ फैल जाने वालाबेला और जूही का तिलिस्मयह कोई कविता है?या सुदूर कहीं जमीन में अंकित हो गईतुम्हारे पावों की छापउन पुरातन चट्टानों की तमाम गाथाओं मेंतारों और ताराधीश से होने वाली मुलाकातों के दर्ज किस्सेऔर दूर कहीं अलसायी हुई नीलगायों का तुमको निहारनाअरे रुको…….क्या…

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आज पढ़िए संध्या नवोदिता की कहानी ‘विष खोपरा’। एक छोटी सी घटना कितने बड़े संदर्भों से जुड़ सकती है इस कहानी में देखा जा सकता है- मॉडरेटर ======================== पहली बार जब वह अजब-गजब जानवर दिखा तो भौंचक कर गया. बहुत देर तक समझ में ही नहीं आया कि यह अजूबा था क्या ! पांच फुट लम्बी, खूब तंदुरुस्त छिपकली, अपने चारों पैरों पर ठसक से बलखाती, कालोनी की सड़क क्रास कर रही थी. मंत्रमुग्ध कर देने वाली चाल. बस कुछ ही पल का नज़ारा. लगा यह तो डायनासोर छिपकली है. इतनी बड़ी छिपकली ज़िंदगी में कभी नहीं देखी. फिर दिमाग…

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आज पढ़िए कवयित्री जसिंता केरकेट्टा के कविता संग्रह ‘ईश्वर और बाज़ार’ पर अपूर्वा बनर्जी की टिप्पणी। यह संग्रह राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है-=========================कुछ दिनों से पढ़ रही हूं जसिंता केरकेट्टा का संग्रह ईश्वर और बाज़ार। 115 कविताओं का यह संग्रह किसी क्रांति की तरह है। कलम इतनी धारदार है, प्रतिवाद का स्वर इतना सशक्त है कि कभी उसकी आक्रामक शैली आपको भी भीतर से उत्तेजित करती है, आक्रोश से भरती है तो कभी उसका मिज़ाज, उसके प्रश्न, उसके व्यंग्य तिलमिला देते हैं और ठीक इसी के बरक्स कभी आपसे इस तरह संवाद करती है कि जीवन की पीड़ा और विवशता…

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स्त्री-मन विद्रोह करना चाहता है लेकिन क्या ऐसा हो पाता है ? अगर होता भी है तो किन परिस्थितियों में ? जीवन के किन क्षणों में? इन सवालों का कोई निश्चित जवाब नहीं। आलोक कुमार मिश्रा की कहानी ‘बुआ चली गई’ ऐसी तमाम स्त्रियों की कहानी है जो अपने जीवन के अंतिम दिनों में आख़िरकार विद्रोह कर ही देती हैं। जो यह यक़ीन दिलाती है कि विद्रोह करने की, विरोध करने की कोई उम्र नहीं होती। आइए, आप भी पढ़िए यह कहानी – अनुरंजनी        ==========================================                        …

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आज गुलज़ार साहब 90 साल के हो गये। उनकी कला यात्रा पर यह लेख लिखा है कवि, प्राध्यापक, लोक संस्कृति के अध्येता पीयूष कुमार ने। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर================== ‘वो उम्र कम कर रहा था मेरी, मैं साल अपने बढ़ा रहा था…’ यह लाइन गुलज़ार साहब पर बिल्कुल फिट है। उनकी उम्र के साये जितने लंबे होते जा रहे हैं, वे उतने ही अपने समय में सिमटते जाते हैं। उनकी यह बात पहचानना –  समझना हो तो उनकी भाषा देखिए, उनके कहन की डिक्शनरी देखिए। यह होता है एक अदबी का अपडेटेड होना। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी…

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वियोगिनी ठाकुर कविता व कहानी दोनों के लिए जानी जाती हैं। आज उनकी 18 कविताएँ प्रकाशित हो रही हैं, जो कि संख्या व विषय दोनों के लिहाज़ से समय की माँग करती कविताएँ हैं, जिनमें मनुष्य प्रेम के साथ-साथ प्रकृति प्रेम भी शामिल है, बल्कि इन कविताओं में कई बार प्रकृति प्रेम ही मनुष्य प्रेम से ऊपर दिखता है। आप भी पढ़ सकते हैं- अनुरंजनी =========================================== 1. करौंदे के फूल करौंदे के फूल कभी चखे हैं तुमने पूछना चाहती हूँ इन दिनों तुमसे तुम पूछो तो मैं कहूँगी मैंने चखा है मेरा तुम्हारा संबंध ठीक करौंदे के फूलों जैसाखटास और नरमाई से भरा अपनी अनोखी गंध…

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अभी बीते वर्ष से भारत सरकार की ओर से यह आदेश जारी हुआ है कि प्रत्येक वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ के रूप में मनाया जाए। विश्विद्यालयों में इस आदेश का पालन भी पिछले वर्ष से ही ज़ोर-शोर से किया जाने लगा है। लेकिन उन कार्यक्रमों में ऐसी बातें अधिक होती हैं जिससे लगता है कि मानो विभाजन का दंश केवल हिंदुओं को झेलना पड़ा। इस संदर्भ में पिछले वर्ष ‘द वायर हिन्दी’ पर प्रकाशित यह लेख पढ़ सकते हैं – https://thewirehindi.com/255587/the-politics-of-dividing-and-observing-partition-horrors-remembrance-day/ ‘खोल दो’ कहानी पढ़ी होगी आप सब ने, यदि नहीं पढ़ी तो ज़रूर पढ़ लीजिए -…

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