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पिछले दिनों एक खबर आई कि एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ने दशरथ माझी के जीवन पर आधारित फिल्म बनाई है. दशरथ माझी सचमुच एक यादगार चरित्र है, जिसने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था. फिल्म के बारे में पढ़ा ही था कि वरिष्ठ कवि-लेखक निलय उपाध्याय ने दशरथ मांझी के जीवन पर लिखा उपन्यास भेज दिया. उपन्यास अभी छपा नहीं है. लेकिन कह सकता हूँ कि दशरथ मांझी के बहाने बिहार के जीवन, समाज, राजनीति को लेकर एक शानदार उपन्यास है. मैं प्रकाशक तो हूँ नहीं कि छापकर आपके लिए उपन्यास पेश कर सकूँ. लेकिन आपके लिए उसका…

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पिछले दिनों एक खबर आई कि एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ने दशरथ माझी के जीवन पर आधारित फिल्म बनाई है. दशरथ माझी सचमुच एक यादगार चरित्र है, जिसने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था. फिल्म के बारे में पढ़ा ही था कि वरिष्ठ कवि-लेखक निलय उपाध्याय ने दशरथ मांझी के जीवन पर लिखा उपन्यास भेज दिया. उपन्यास अभी छपा नहीं है. लेकिन कह सकता हूँ कि दशरथ मांझी के बहाने बिहार के जीवन, समाज, राजनीति को लेकर एक शानदार उपन्यास है. मैं प्रकाशक तो हूँ नहीं कि छापकर आपके लिए उपन्यास पेश कर सकूँ. लेकिन आपके लिए उसका…

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कल श्री गिरिराज किराडू ने हमारी भाषा के वरिष्ठ कवि-आलोचक-संपादक श्री अशोक वाजपेयी को उनकी बातों के सन्दर्भ में स्पष्टीकरण देते हुए पत्र लिखा था. आज अशोक जी ने उस पत्र का जवाब देते हुए बहुत गरिमापूर्ण ढंग से अपनी बातों को रखा है, लेकिन इस छोटे से पत्र में उन्होंने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं जिनके सन्दर्भ में समकालीन बहसों को एक बार फिर देखा जाना चाहिए, कम से कम मुझे ऐसा लगता है. अशोक जी के इस पत्र के बाद मुझे नहीं लगता है इस बहस को आगे चलाये रखने का कोई औचित्य रह गया है. आपके लिए…

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श्री अशोक वाजपेयी का यह ईमेल हमें प्राप्त हुआ है जिसमें उन्होंने \’प्रतिलिपि बुक्स\’ को लेकर कुछ बातों को स्पष्ट किया है. प्रतिलिपि के निदेशक युवा कवि-कल्पनाशील संपादक गिरिराज किराडू हैं. यह लोकतांत्रिकता का तकाजा है कि हम वरिष्ठ कवि-आलोचक-संपादक अशोक वाजपेयी के उस ईमेल को अविकल रूप से सार्वजनिक करें. पिछले इतवार को \’जनसत्ता\’ संपादक ओम थानवी ने रजा फाउंडेशन से वित्तीय मदद को लेकर कुछ बातें लिखी थी. यह मेल एक तरह से उन बातों की पुष्टि करता है. फिलहाल अशोक वाजपेयी का ईमेल- जानकी पुल. ===========================================श्री ओम थानवी से सुनने-समझने में चूक हुई है. श्री गिरिराज किराडू ने…

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समकालीन हिंदी कविता की एक मुश्किल यह है कि वह ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होने के प्रयास में अधिक रहती है, लेकिन कुछ कवि ‘करेक्ट’ होने के लिए भी लिखते हैं, मनुष्यता के इतिहास में करेक्ट होने के लिए. छत्तीसगढ़ के सुकमा में हाल की हत्याओं के बाद प्रियदर्शन की यह कविता श्रृंखला बार-बार यह सवाल उठाती है कि क्या हिंसा का समर्थन किया जाना चाहिए? कल दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में शाम सात बजे ‘कवि के साथ’ कार्यक्रम में कविता पाठ करने वाले तीन कवियों में एक कवि प्रियदर्शन भी हैं. अन्य दो कवि हैं विमल कुमार और अच्युतानंद मिश्र. फिलहाल…

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ऋतुपर्णो घोष का जाना सचमुच अवाक कर गया. साहित्य और सिनेमा के खोये हुए रिश्ते को जोड़ने वाले इस महान निर्देशक को आज दीप्ति नवल ने बहुत आत्मीयता से याद किया है. पढ़ा तो साझा करने से खुद को रोक नहीं पाया- जानकी पुल.===================जाने क्या दिक्कत थी कि उनकी तबीयत अक्सर ऊपर-नीचे होती रहती। शायद उस दिन भी उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, जब वह अपनी निर्देशित फिल्म चित्रंगदा: द क्राउनिंग विश के लिए नेशनल फिल्म स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड ले रहे थे। यकीनन, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से उनका अटूट रिश्ता था। बधाई देने के लिए मैंने उन्हें फोन किया। बताया गया…

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वर्तिका नंदा की कविताओं में स्त्री के रोजमर्रा के जीवन का एक नया अर्थ मुखरित होता है. कवितायेँ उनके लिए दैनंदिन को अर्थ देने की तरह है. आज उनकी कुछ नई कविताएँ, कुछ नए मुहावरों में- जानकी पुल================शर्मोहया आंखों का पानीपठारों की नमी को बचाए रखता हैइस पानी सेरचा जा सकता है युद्धपसरी रह सकती हैओर से छोर तककिसी मठ की-सी शांतिपल्लू को छूने वालाआंखों का पोरइस पानी की छुअन सेहर बार होता है महात्मासमय की रेत सेयह पानी सूखेगा नहींयह समाज की उस खुरचन का पानी हैजिससे बची रहती हैमेरे-तेरे उसके देश कीशर्म…..जो वापसी कभी न हुईगाना गाते हुएघर लौटी…

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आज \’इण्डिया टुडे\’ में \’मैं, स्टीव: मेरा जीवन, मेरी जुबानी\’ पुस्तक की मेरे द्वारा लिखी गई समीक्षा प्रकाशित हुई है. आप उसे चाहें तो यहाँ भी पढ़ सकते हैं. उनका व्यक्तित्व मुझे बहुत प्रेरणादायी लगता रहा है. फिलहाल पुस्तक की समीक्षा- प्रभात रंजन =====================================स्टीव जॉब्स के बारे में कहा जाता है कि तकनीकी के साथ रचनात्मकता के सम्मिलन से उन्होंने जो प्रयोग किए उसने २१ वीं सदी में उद्योग-जगत के कम से कम छह क्षेत्रों को युगान्तकारी ढंग से प्रभावित किया- पर्सनल कंप्यूटर, एनिमेशन फिल्म, संगीत, फोन, कंप्यूटर टेबलेट्स और डिजिटल प्रकाशन. १० अक्टूबर १९९९ को ‘टाइम’ पत्रिका में प्रकाशित एक…

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