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निलय उपाध्याय ठेठ हिंदी के कवि हैं. उनकी कविताओं में वह जीवन्तता है जिससे पता चलता है कि वे जीवन के कितने करीब धडकती हैं. मुंबई की लोकल को लेकर उन्होंने एक कविता श्रृंखला लिखी है, उसकी कुछ कवितायें आपके लिए- जानकी पुल.======================= लोकल के डब्बे में हिरोईन लोकल का डब्बा सवारियों से भरा थाजब एक औरत घुसी लोगो पर गहरी नजर डालजैसे रोते हुए कहा – मेरा बच्चाऔर अजीब सी बदहवासी में निकल गई बाहर जाते ही किसी ने कहा अरे पहिचाना उसेकौन थी वहसबको लग रहा था चेहरा उसकाजाना पहिचानानाम आते ही पहचान गए सबवह थी बालीवुड फ़िल्मों की हिरोइनकई…

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प्रियदर्शन मूलतः कवि हैं और हाल के दिनों में कविता में जितने प्रयोग उन्होंने किए हैं शायद ही किसी समकालीन कवि ने किए हों. प्रचार-प्रसार से दूर रहने वाले इस कवि की कुछ नई कविताएँ मनोभावों को लेकर हैं. आपके लिए- जानकी पुल.=======================================कुछ मनोभावप्रेम और घृणाप्रेम पर सब लिखते हैं,घृणा पर कोई नहीं लिखता,जबकि कई बार प्रेम से ज्यादा तीव्र होती है घृणाप्रेम के लिए दी जाती है शाश्वत बने रहने की शुभकामना,लेकिन प्रेम टिके न टिके, घृणा बची रहती है।कई बार ऐसा भी होता हैकि पहली नज़र में जिनसे प्रेम होता हैदूसरी नज़र में उनसे ईर्ष्या होती हैऔरअंत में…

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हमारे प्रिय लेखक असगर वजाहत ने पटना लिटरेचर फेस्टिवल के बहाने साहित्य और सत्ता के संबंधों को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. आप भी देखिये- जानकी पुल.===========================================पिछले महीने बाईस से चौबीस मार्च तक चले पटना साहित्य समारोह के संबंध में रपटें और समाचार प्रकाशित हो चुके हैं और लगता है कि अब उसके बारे में लिखने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन इस साहित्य समारोह के एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण और सारगर्भित प्रसंग हैं जिन पर लिखा जाना चाहिए। इस आयोजन में कई परंपराएं टूटी हैं और कई बुनियादी सवाल उठे हैं।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा समारोह का उद्घाटन…

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महान लेखक चिनुआ अचीबे को श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख मैंने यह लेख लिखा था, जो कल \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ में प्रकाशित हुआ था. आप लोगों से साझा कर रहा हूँ- प्रभात रंजन ===================================================चिनुआ अचीबे के उपन्यास ‘थिंग्स फॉल अपार्ट’ का नायक पर ओकोनक्वो पूछता है- ‘क्या गोरा आदमी ज़मीन के बारे में हमारे रिवाज़ जानता है?’ जवाब मिलता है- ‘कैसे जान सकता है जब वह हमारी भाषा भी नहीं बोलता? लेकिन वह कहता है हमारे रिवाज़ खराब हैं, और हमारे अपने भाई भी, जिन्होंने उसका धर्म अपना लिया, यही कहते हैं कि हमारे रिवाज़ बुरे हैं.’ 1958 में प्रकाशित चिनुआ अचीबे…

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पटना लिटरेचर फेस्टिवल में जो लोग शामिल हुए उनके लिए शायर कलीम आजिज़ को सुनना भी एक यादगार अनुभव रहा. शाद अज़ीमाबादी की परंपरा के इस शायर ने उर्दू के पारंपरिक छंदों में कई ग़ज़लें कही हैं और वे बेहद मशहूर भी हुई हैं. उनकी कुछ ग़ज़लें इमरजेंसी के दौरान भी प्रसिद्ध हुई थी. यहां प्रस्तुत हैं वे चार ग़ज़लें जो उन्होंने पटना लिटरेचर फेस्टिवल में सुनाई थी- जानकी पुल.===================================1.दिन एक सितम, एक सितम रात करो हो वो दोस्त हो, दुश्मन को भी जो मात करो हो मेरे ही लहू पर गुज़र औकात करो हो मुझसे ही अमीरों की तरह…

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गुलजार के गीतों पर केंद्रित विनोद खेतान की पुस्तक आई है \’उम्र से लंबी सड़कों पर\’. इस पुस्तक के बहाने गुलजार के गीतों पर प्रियदर्शन का एक सधा हुआ लेख- जानकी पुल. =============================================  क्या फिल्मी गीतों को हम कविता या कला की श्रेणी में रख सकते हैं? प्रचलित तर्क कहता है कि जो गीत व्यावसायिकता के तकाज़ों पर लिखे जाते हों और जिनमें किसी ख़ास ‘सिचुएशन’ का ख़याल रखने की मजबूरी हो, जिनके साथ पहले से तय धुन में बंधे रहने की शर्त जुड़ी हुई हों, उन्हें हम वैसी शुद्ध कलात्मक अभिव्यक्ति का दर्जा नहीं दे सकते जैसी कविता या ऐसी ही किसी…

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मीनाक्षी ठाकुर की कविताओं में जीवन के एकांत हैं, छोटे-छोटे अनुभव हैं और आकुल इच्छाएं. सार्वजनिक के निजी वृत्तान्त की तरह भी इन कविताओं को पढ़ा जा सकता है, ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ ‘ह्रदय की बात’ की तरह- जानकी पुल. =============================== इन दिनों इन दिनों इतना आसान नहीं अँधेरे में तुम्हें देखना मेरी उँगलियों को जुगनू पहनने पड़ते हैं इतना आसान नहीं है ख़ामोश कमरे में तुम्हारी हँसी समेटना जैसे होटों को मछली जाल फेंकने पड़ते हैं इतना आसान नहीं क्योंकि तुम्हारा वजूद मचलता रहता है भटकता रहता है मेरे आस-पास सि़र्फ़ सांस लेने को उसे मेरी ज़रूरत हो जैसे…

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आज जनसत्ता में प्रभाकर मणि तिवारी ने हम जैसे कलाज्ञान हीन लोगों को ध्यान में रखते हुए गणेश पाइन पर इतना अच्छा लिखा है कि पढ़ने के बाद से आप लोगों से साझा करने के बारे में सोच रहा था. अब सोचा कर ही दिया जाए. आम तौर पर इस तरह के लेख हम अंग्रेजी के अखबारों के पन्नों पर ढूंढते रहते है- जानकी पुल.==================मकबूल फिदा हुसेन ने कभी उनको अपने पसंदीदा दस शीर्ष चित्रकारों में सबसे ऊपर रखा था। उन्होंने कहा था कि भारत में एक हजार वर्षों में एक गणेश पाइन ही काफी हैं। लेकिन देश के महान…

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नरेन्द्र कोहली को व्यास सम्मान मिलने पर मेरा यह लेख आज के \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ में प्रकाशित हुआ है. नरेन्द्र कोहली कोई महान लेखक नहीं हैं लेकिन एक जरुरी लेखक जरुर हैं. ऐसा मेरा मानना है- प्रभात रंजन ===============      नरेन्द्र कोहली को वर्ष 2012 का व्यास सम्मान दिया गया तो उनके लेखन को लेकर, उनके उपन्यासों को लेकर कई तरह की बातें कही गई, यह भी कहा गया कि वे आधुनिक दौर के व्यास हैं. पुरा-कथाओं को उन्होंने आज के सन्दर्भों, जीवन-स्थितियों से इस तरह जोड़ कर प्रस्तुत किया कि पढ़ने वालों को वह अपनी कथा लगने लगी. यही…

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