प्रत्येक व्यक्ति की यौनिकता उसके सामाजिक परिवेश में ही निर्मित-प्रभावित होती है। ज्योति शर्मा की कहानी ‘चिकनी’ भी इस निर्मिति को बखूबी प्रस्तुत करती है, जहाँ बात है स्त्री-यौनिकता की। इस तरह की रचनाओं पर प्रायः अश्लील होने के आरोप लगते हैं लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह के मूल्य पूर्णतः व्यक्तिगत होते हैं, वह भी हमारे परिवेश से ही निर्मित होता है। इससे पूर्व ज्योति की कविताएँ हम जानकीपुल के अतिरिक्त विभीन्न पत्रिकाओं में पढ़ते आए हैं, आज उनकी कहानी पढ़िए, ‘चिकनी’ – अनुरंजनी ================================ चिकनी देखिए मेरी मजबूरी है कि मैं ‘क्लीन…
Author: admin
आज पढ़िए अशोक कुमार की कविताएँ। यह कविताएँ वर्तमान समय की उन प्रवृत्तियों की ओर ध्यान ले जाती हैं जिनमें हम सब जीने के लिए बाध्य हैं। जहाँ हर क्षण हम संदेह में जी रहे हैं, निराशा, दुःख के साथ ही हमारा जीवन चल रहा है। जीवन, यानी सोचते रहने का नाम, अशोक कुमार का यही काम उनकी इन कविताओं में भी देख सकते हैं। यह रही कविताएँ- 1. डर अंधेरा इतना नहीं हैन भीतर न बाहर!फिर भी मन की किसी भीतरी दीवाल परकोई अदृश्य भयदस्तक देता रहता है लगातार एकांत मे होता हूँतो ऐसा लगता है-कि मानों नाउम्मीदीयों के भय सेमौन हो…
वह एक ऐसी सतह पर था जिसके ऊपर उठना ही नहीं चाहता था मित्र लेखक शशिभूषण द्विवेदी के निधन के बाद मैंने उसको याद करते हुए यह लेख ‘हंस’ में लिखा था। आज उसकी जयंती है तो इसे आप भी पढ़ सकते हैं- ======================= शशिभूषण द्विवेदी के निधन के बाद फेसबुक पर जब लोग बड़ी तादाद में उसको श्रद्धांजलि दे रहे थे मुझे गोविंद निहलानी की फ़िल्म ‘पार्टी’ याद आ रही थी। फ़िल्म में एक वरिष्ठ नाटककार के सम्मान में पार्टी दी जाती है। उस पार्टी में अनेक युवा-वरिष्ठ लेखक मौजूद हैं। लेकिन अमृत मौजूद नहीं है। धीरे धीरे उस…
आज पढ़िए प्रियंका चोपड़ा की आत्मकथा ‘अभी सफ़र बाक़ी है’ का एक अंश। यह किताब पेंगुइन स्वदेश से प्रकाशित हुई है- ======================================== साल 2000 मिलेनियम ईयर था और जजों का पैनल बहुत ही स्पेशल था : प्रदीप गुहा जिन्हें हम सब तब तक पीजी कहने लगे थे; मीडिया बैरन सुभाष चंद्रा; सुप्रसिद्ध एक्टर वहीदा रहमान; फ़ैशन डिज़ाइनर कैरोलिन हर्रेरा; स्वारोवस्की क्रिस्टल्स के मार्कस स्वारोवस्की; क्रिकेटर मोहम्मद अज़हरूद्दीन; पेंटर अंजलिइला मेनन और कई और लोग। कंपीटीशन से पहले कई कुछ और छोटे-छोटे कंपीटीशंस भी होते थे जैसे—मिस परफेक्ट10, मिस कन्जीनिअलिटी, स्विमसूट और टैलेंट। मैं उन में से कोई भी नहीं जीती।…
प्रवीण कुमार झा हरफ़नमौला लेखक हैं। उनकी नई किताब ‘स्कोर क्या हुआ है?’ पढ़ते हुए इस बात पर ध्यान गया। वे कई साल से इस किताब पर काम कर रहे थे और यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि हिन्दी में यह अपने ढंग की पहली किताब है। फ़िलहाल आप वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का अंश पढ़िए-====================== खेल भी एक कला है। संगीत-नृत्य की तरह। जैसे नृत्य की मुद्रायें होती है, वैसे ही खेल में भी भिन्न-भिन्न मुद्राएँ होती है। बल्ले से गेंद के टकराने से संगीत की उत्पत्ति होती है, जैसे सितार का कोई तार छेड़ा…
आज प्रस्तुत है वरिष्ठ कवि मृत्युंजय कुमार सिंह के खंड काव्य ‘द्रौपदी’ की डॉ. सुनील कुमार शर्मा द्वारा समीक्षा। ========================================= सद्य प्रकाशित खंड काव्य – द्रौपदी पाठकों के बीच चर्चा में है। महाभारत की पौराणिक कथा से संदर्भित द्रौपदी के पात्र को कवि मृत्युंजय सिंह ने एक खंड काव्य के रूप में अद्भुत रूप से पुनर्जीवित किया। यह साहित्य ही है जिसने अलक्षित पात्रों को भी मुख्यधारा में स्थान दिया है। दरअसल यह साहित्य का गुणधर्म है कि वह जीवन में हो या काव्य में, सिर्फ केंद्र को ही नहीं देखता वरन परिधि की घटनाएं भी उसकी जद में आती है ।…
युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर की हर विषय पर अपनी राय होती है, अपना नज़रिया होता है। यहाँ व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर उनके सुचिंतित विचार पढ़िए- ============================== आज से तकरीबन २० साल पहले अच्छे प्राध्यापक विकिपीडिया के आलेखों को पढ़ने और उस पर विश्वास करने से मना करते थे। आज भी विकिपीडिया के सारे आलेखों को हम बेहतरीन और सच मान लें, ऐसा कहा नहीं जा सकता। फिर भी हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि विकिपीडिया अब कई मायनों में पथ प्रदर्शक है। यह विषय से परिचय कराने की पहली सीढ़ी है। पिछले दस सालों में ह्वाट्सएप पर आती…
आज पढ़िए सौरभ मिश्र की कुछ कविताएँ। इन कविताओं का फ़लक बहुत विस्तृत है। ‘दिल्ली की हत्या’ पढ़ते हुए कमलेश्वर की ‘दिल्ली में एक मौत’ तुरंत याद आ जाती है। आगे की कविताओं में कवि का कविता प्रेम भी है, प्रेम और संभोग के अंतरसंबंध के सवाल भी हैं, मनुष्य के आपसी सहज संबंध की इच्छा भी है और मानवीय स्वभाव की जटिलताएँ भी हैं। इससे पहले सौरभ की कविताएँ अमर उजाला, हिन्दीनामा, हिन्दवी और वागर्थ पर प्रकाशित हैं। जानकीपुल पर उनका प्रथम प्रकाशन अब आपके समक्ष है।========================= 1. दिल्ली की हत्या बहुत साल बीते इस शहर मेंजिसे दिल्ली कहते…
ङगोग़ी वा दिओङओ से रीमो वेरडिक्ट और एमील रूतहूफ्ट की बातचीत एल.ए.आर.बी [Los Angeles Review of Books] की वेबस पर 1 सितंबर 2023 को प्रकाशित हुई। इस साक्षात्कार का शीर्षक है “जैल ने मुझे हँसा दिया : ङगोग़ी वा दिओङओ के साथ एक चर्चा”। अंग्रेजी में यह साक्षात्कार यहाँ मिलेगा : https://lareviewofbooks.org/article/prison-left-me-laughing-a-conversation-with-ngugi-wa-thiongo/?fbclid=IwAR24w_nvWLhz_VAf7U2sxFqL7PNo0odYvHwmqvdoAdoAdeMzWlFbymimGz0 इस साक्षात्कार का हिंदी में अनुवाद डॉ. पूजा संचेती ने किया है। ================================== ** ङगोग़ी वा दिओङओ को अफ्रीकी महाद्वीप के पिछले अर्ध-शतक के सबसे अग्रणी लेखकों में गिना जाता है। केन्याटा तानाशाही के विरोधी होनी की वजह से 31 दिसंबर 1977 को उन्हें गिरफ्तार कर एक…
आज पढ़िए अर्चना के शंकर की कहानी ‘गुलाबी साड़ी और दाल’। अर्चना स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ अनेक डिजिटल मंच के लिये लिखती हैं।उनकी यह कहानी बिल्कुल ही अलग तरह से बुनी हुई, लीक से हटकर है जो देखने में ऐसे तो सामान्य दिनचर्या वाली लगे लेकिन ध्यान से पढ़ने पर मालूम होता है कि कितना कुछ संकेत करती है यह जिसमें निम्नवर्गीय जीवन में जी रहे लोगों के मनोविज्ञान की ओर ध्यान ले जाना एक बड़ी विशेषता है- ====================== कच्ची मिट्टी की दीवार और कच्ची मिट्टी का फर्श.. दीवार पर लगी लकड़ी की खूँटी! लकड़ी की मोटी सी खूँटी, जिसका…