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प्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्प की पुस्तक आई है किताबघर से \’तब्दील निगाहें\’, जिसमें उन्होंने कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के स्त्रीवादी पाठ किए हैं. \’उसने कहा था\’ कहानी की नायिका सूबेदारनी के मन के उहापोहों को लेकर यह एक दिलचस्प पाठ है. पढ़ा तो आपसे साझा करने का मन हुआ- प्रभात रंजन===============‘मुझे पहचाना?’‘नहीं।‘‘तेरी कुड़माई हो गई?’‘धत्।‘‘कल ही हो गई।‘‘देखते नहीं यह रेशमी बूटों वाला शालू. अमृतसर में।‘यह संवाद! लहनासिंह, तुमने जीवन साथ बिताने का खूबसूरत सपना देखा था न? और मेरे पिछले वाक्य पर कितना छोटा मुंह हो गया था तुम्हारा! क्यों न होता, उस छोटी सी उम्र में उस क्षण तुम्हें…

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बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक सुनील गंगोपाध्याय का निधन हो गया. अनेक विधाओं में २०० के करीब पुस्तकें लिखने वाले इस लेखक का पहला प्यार कविता थी. उनको श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कविताएँ- जानकी पुल.=============================१.ओ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य! ओ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य!तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूचंचल सुख और समृद्धि की,तुम अपने जीवन और जीवनयापन में मज़ाकिया बने रहनातुम लाना आसमान से मुक्ति-फल –जिसका रंग सुनहरा हो,लाना — ख़ून से धुली हुई फ़सलेंपैरों-तले की ज़मीन से,तुम लोग नदियों को रखना स्रोतस्विनीकुल-प्लाविनी रखना नारियों को,तुम्हारी संगिनियां हमारी नारियों की तरहप्यार को पहचानने में भूल न करें,उपद्रवों से मुक्त,…

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इस साल मैन बुकर पुरस्कार हिलेरी मैंटल को उनके उपन्यास ‘ब्रिंग अप द बॉडीज’ पर मिला है. यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है. इससे पहले उनको ऐतिहासिक उपन्यास \’वोल्फ हॉल\’ के लिए २००९ में बुकर मिल चुका है. \’ब्रिंग अप द बॉडीज’ उसी उपन्यास का सीक्वेल है. प्रस्तुत है. इस पुरस्कृत उपन्यास का एक अंश, जिसका अनुवाद मैंने किया है और जो कल नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ था- प्रभात रंजन.===================== थॉमस क्रॉमवेल इस समय करीब पचास साल के हैं. उनका शरीर मेहनतकशों जैसा है, गठीला, उपयोगी, मोटापे से दूर. उनके बाल काले हैं, जो अब कुछ-कुछ सफ़ेद होने लगे हैं, और…

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विमल कुमार ने यह कविता कुछ दिनों पहले प्रकाशित प्रीति चौधरी की कविता के प्रतिवाद में लिखी है. एक कवि अपना मतान्तर कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा है. स्त्री-विमर्श से कुछ उदारता बरतने का आग्रह करती यह कविता पढ़ने के काबिल तो है, जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों ही- जानकी पुल.================================================================सिर्फ प्यार से लड़ा जा सकता है हिंसा के खिलाफमंडराते रहे सदियों सेअब तक न जाने कितने गिद्ध तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमते रहे शहर में न जाने कितने भेडिये दिन-रात तुम्हारे पासजानता हूं चाहकर भी नहीं कर पाती कई बार तुम मुझ पर यकीन समझ लिया…

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२०१३ के पचास हजार डॉलर वाले डीएससी पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट की गई तेरह पुस्तकों की सूची में एलिस अल्बिनिया की पुस्तक ‘लीलाज़ बुक’ भी है. महाभारत की कथा को आधार बनाकर लिखे गए इस उपन्यास पर यह मेरा लिखा हुआ लेख- प्रभात रंजन =========================इस समय अंग्रेजी में एक बेस्टसेलर उपन्यास ‘लीलाज़ बुक’ की खूब चर्चा है. कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह कि यह एक विदेशी लेखक(लेखिका) एलिस अल्बिनिया द्वारा लिखी गई है. उसके इस पहले उपन्यास की दूसरी खासियत यह है कि उस विदेशी महिला का यह उपन्यास भारत के बारे में है. एक और कारण है चर्चा का कि…

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मलाला युसुफजई का नाम आज पकिस्तान में विरोध का प्रतीक बन चुका है. हिंदी की कवयित्री अनीता भारती ने उनके विद्रोह, संघर्ष को सलाम करते हुए कुछ कविताएँ लिखी हैं. पढ़िए, सराहिये- जानकी पुल.1. ओ सिर पर मंडराते गिद्धोंसुनो!अब आ गई तुम्हारे हमारे फैसले की घड़ीछेड़ी है तुमने जंगतुमने ही की है इसकी शुरुआतसुनो गिद्धों!तुम्हारी खासियत हैकि तुम खुलकर कभी नही लड़तेदूर से छिप कर करते हो वारआंख गड़ाए रखते हो हर वक्तहमारे खुली आंखो सेदेखे जा रहे सपनों परसुनो गिद्ध!तुम्हें बैर हर उस चीज से जो खूबसूरत है, जो सुकून देती हैउस नन्ही चिरैया से भीजो खुशी से हवा में विचर…

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प्रसिद्ध आलोचक-अनुवादक गोपाल प्रधान ने यह लोक कथा भेजते हुए याद दिलाया की आज के सन्दर्भ में इसका पाठ कितना मौजू हो सकता है. सचमुच चिड़िया और दाना की यह कथा लगता है है आज के दौर के लिए ही लिखी गई थी- जानकी पुल.====================================एक चिड़िया को दाल का एक दाना मिला । उसनेसोचा कि इसमें से आधा वह अभी खा लेगी और बाकी आधा चोंच में दबाकर दूर देस उड़कर जा सकेगी । यहीसोचकर उसने दाने को चक्की में दो हिस्सा करने के लिए डाला । चक्कीचलाते ही एक हिस्सा तो टूटकर बाहर आ गिरालेकिन शेष आधा चक्की के…

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तुषार धवल की कई कविताओं में समकालीन समय का मुहावरा होता है. अपने दौर के कवियों में कविता के विषय, काव्य रूपों को लेकर जितने प्रयोग तुषार ने किए हैं शायद ही किसी कवि ने किए हैं. पढ़िए उनकी एकदम ताजा कविता- मॉडरेटर .=====================सुनती हो सनी लियॉन ? किन कंदराओं में तुम रह चुकी हो मेरे साथ मेरे किस घर्षण की लपट में पकी है तुम्हारी देह आदिम सहचरी ! सुनती हो सनी लियॉन ? तुम्हारे मन की उछाल में एक घुटी सभ्यता अपनी उड़ान पाती है जिसके पिछवाड़े के जंगलों में गदराई महुआ महकती रहती है मुझे क्यों लगता…

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