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 कल यानी 13 अगस्त को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शशि थरूर की पुस्तक ‘अंबेडकर: एक जीवन’ का लोकार्पण कार्यक्रम था। इसका अनुवाद प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार अमरेश द्विवेदी ने किया है और प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने। प्रस्तुत है इस कार्यक्रम की रपट-========================= आयोजन में वक्ताओं के रूप में पुस्तक के लेखक डॉ. शशि थरूर, पुस्तक के अनुवादक, पत्रकार और लेखक अमरेश द्विवेदी, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’, हिन्दी की वरिष्ठ लेखिका एवम सांसद महुआ माजी, दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर अदिति पासवान और जामिया मिल्लिया इस्लामिया से प्रो. अरविन्द कुमार मौजूद…

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‘रूप तेरा मस्ताना प्यार तेरा दीवाना, चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल, तेरे चेहरे में वो जादू है, आँखों में तेरी अजब-सी अजब-सी अदाएँ हैं’, हिन्दी में प्रचलित ये सारे गाने आपने सुने होंगे। क्या आपने कोई ऐसा गाना सुना है जिसमें स्त्री की बौद्धिकता की कोई बात आ रही हो? (अगर सुना है तो हम सब ज़रूर जानना चाहेंगे) अमूमन हिन्दी गानों में स्त्री के रूप-रंग, आंखें, होंठ इन्हीं सब पर केंद्रित गाने मिलते हैं। ऐसे असंख्य गीत हैं जो हमारी ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं। अनामिका झा का यह लेख ऐसे ही प्रचलित गानों को रेखांकित…

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आज प्रस्तुत है दिव्या श्री की कुछ कविताएँ जिनमें अधिकता प्रेम की है। दिव्या कला संकाय में परास्नातक कर रही हैं।इनकी कविताएँ हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, पाखी, कृति बहुमत, समकालीन जनमत, नया पथ, परिंदे, समावर्तन, ककसाड़, कविकुम्भ, उदिता, हिन्दवी, इंद्रधनुष, अमर उजाला, शब्दांकन, जानकीपुल, अनुनाद, समकालीन जनमत, स्त्री दर्पण, पुरवाई, उम्मीदें, पोषम पा, कारवां, साहित्यिक, हिंदी है दिल हमारा, तीखर, हिन्दीनामा, अविसद, सुबह सवेरे ई-पेपर आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं। जानकीपुल पर यह इनका दूसरा अवसर है – अनुरंजनी ============================================ यह एक ऐसी जगह हैजो मेरा स्थायी पता रहा है उसके जीवन मेंमैं इसी पते पे रोज चिट्ठियां लिखती हूँजबकि…

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मनोहर श्याम जोशी की जयंती आने वाली है और कल उनकी स्मृति में व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर पढ़िए युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर का लेख-   =========================ओटीटी और उन पर छायी वेबसीरीज के दौर मेँ अक्सर यह ख़्याल आता है कि यदि ‘मनोहर श्याम जोशी’ आज जीवित होते तो क्या सफल होते?  हमने देखा कि किस तरह एक ख्यातिप्राप्त लेखक-कवि ने ‘आदिपुरुष’ फिल्म के लिए निम्न कोटि के संवाद लिखे और ‘पोन्नियन सेल्वन’ जैसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास पर बनी फिल्म के हिन्दी संस्करण के संवाद दोयम व दयनीय निकले। सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दीभाषियोँ…

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यह बात हम सभी जानते हैं कि एक ही रचना को पढ़ने का अनुभव जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर कभी-कभी एक जैसा तो कभी-कभी सर्वथा भिन्न होता है। ऐसी ही कुछ बात वरिष्ठ कथाकार गोपेश्वर सिंह ने मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ‘कसप’ के अपने पाठ को लेकर की है। गोपेश्वर सिंह के इस समीक्षानुमा लेख को आप भी पढ़ सकते हैं – मॉडरेटर ============================================================ मुझे लगता है कि जो प्रेम-कथाएं ‘बेस्ट सेलर’ मानी जाती हैं किशोर वय में या युवाकाल में पढ़ने पर एक तरह का अनुभव देती हैं और पचास पार के वय में पढ़ने पर दूसरे तरह…

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मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए यह लेख लिखा था उदय प्रकाश जी ने। आप फिर से पढ़ सकते हैं-====================== मनोहर श्याम जोशी बड़े लेखक थे। रोलां बर्थ जिसे ‘मेगा ऑथर’ कहा करते थे – ‘महालेखक’। अगर ध्यान से देखते तो हम लोग और बुनियाद भी मनोहर श्याम जोशी द्वारा टेलीविजन के पर्दे पर लिखे गये हिन्दी के महत्त्वपूर्ण उपन्यास ही थे। उनकी सारी बनावट उपन्यास की थी। भले ही रमेश सिप्पी, भास्कर घोष और मनोहर श्याम जोशी पर ये आरोप लगाये गये हों कि उन्होंने दूरदर्शन को लोकप्रिय बनाने के लिए किसी ‘मेक्सिकन’ सोप ऑपेरा से’आइडिया’ लिया था, लेकिन…

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आगामी आठ अगस्त को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला किया आयोजन किया जा रहा है। उसी को ध्यान में रखते हुए हिन्दी के वरिष्ठ लेखक ज्योतिष जोशी का यह स्मृति लेख पढ़िए जिसमें उन्होंने मनोहर श्याम जोशी के लेखन के सम्यक् मूल्यांकन का बहुत सुंदर प्रयास किया है- ================================== मनोहर श्याम जोशी आधुनिक हिंदी साहित्य में अपने विस्तार में वैश्विक समझ के लेखक थे। अनेक राहों से गुजरते हुए इक्कीस वर्ष की अवस्था में वे पत्रकारिता में आये थे। इसके पहले मात्र अट्ठारह वर्ष की उम्र में उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई, पर उनकी…

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आदित्य पांडेय की कविताओं के प्रकाशन का यह पहला अवसर है। आप सब भी पढ़ सकते हैं- अनुरंजनी ============================================ मैंने खुद को उतना नहीं बचाया जितना कि तुमने मुझे बचाने के प्रयास किए अनगिनत बार…सड़क परबंद दरवाज़ों के भीतर या पार तुमने बचाया,छुपाया, उघारा, उघरे बदन प्रेम कियाऔर जाने दिया मेरे बदन से निकलने वाली खुशबू पर तुम्हारे डाले गए सेंट का लिहाफ़ हैकई चलते रुकते चीरते बच जाते लिफ़ाफ़ेमुझे पीले रंग और नीली स्याही से ही पहचानते हैंऔर मैं खुद को एक निश्चित पते पर पहुँच जाने से…तो तुम समझ गई होगीबात सीधी है मैं खुद को नहीं जान पाता कभी भीतुम्हारे अतिरिक्त… 2. एक…

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सल्तनतकालीन किरदार मलिक काफ़ूर पर युगल जोशी का उपन्यास आया है ‘अग्निकाल’। पेंगुइन से प्रकाशित इस उपन्यास की समीक्षा लिखी है डॉ मेहेर वान ने। आप भी पढ़ सकते हैं-=============================इतिहास तथ्यों और आंकड़ों का एक संकलन मात्र नहीं हो सकता। इतिहास के साथ एक बड़ी चुनौती यह भी है कि इसे विजेता-पक्ष ही मुख्य रूप से लिखता आया है या इतिहास का वही पक्ष प्रचलन में आ पाता है जिसके साथ सत्ता हो। इतिहास के विशेषज्ञ अक्सर इतिहास को एक दिशा में जाने वाली संकरी पगडंडी की तरह पेश करते आए हैं। इसके विपरीत ऐतिहासिक घटनाएं हमेशा तमाम संभावित दृष्टिकोणों…

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1970 के दशक में मनोहर श्याम जोशी ने कमलेश्वर के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘सारिका’ में दिल्ली के लेखकों पर केरिकेचरनुमा स्तंभ लिखा था ‘राजधानी के सलीब पर कई मसीहे चेहरे’। इस स्तंभ में अज्ञेय, रघुवीर सहाय सहित तमाम लेखकों पर छोटे बड़े केरिकेचर हैं लेकिन सबसे दिलचस्प उन्होंने अपने ऊपर लिखा है। इस तरह का आत्म व्यंग्य आजकल देखने में नहीं मिलता- ==================================== दूसरे व्यक्ति हैं श्री मनोहर श्याम जोशी जो पुत्रवतियों को कोसने के इस पवित्र आयोजन में बतौर निपूती सहर्ष शामिल हुए हैं। आप अधूरी रचनाओं के धनी हैं और शायद इसीलिए उन्हें पूरा बहुत नहीं…

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