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एक अच्छी खबर है कि युवा लेखिका ज्योति कुमारी के पहले कहानी संग्रह \’दस्तखत और अन्य कहानियाँ\’ की एक हजार प्रतियाँ महज दो महीने के अन्दर बिक गईं. यह युवा लेखकों का उत्साह बढाने वाला है. आज इसको लेकर वाणी प्रकाशन ने इण्डिया इंटरनेश्नल सेंटर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें युवा लेखन और बेस्टसेलर को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन भी किया. प्रस्तुत है युवा लेखन और बेस्टसेलर को लेकर मेरा लेख- जानकी पुल.====================हिंदी के साहित्यिक परिदृश्य के लिए यह एक घटना है. युवा लेखिका ज्योति कुमारी के पहले कहानी संग्रह ‘दस्तखत और अन्य कहानियां’ की १००० प्रतियाँ सिर्फ…

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हिंदी के वरिष्ठ लेखक बटरोही की यह चिंता उनके फेसबुक वाल से टीप कर आपसे साझा कर रहा हूँ. आप भी पढ़िए उनकी चिंताओं से दो-चार होइए- प्रभात रंजन.==========================================मुझे नहीं मालूम की कितने लोग इन बातों में रूचि लेंगे? कल रात भर ठीक से सो नहीं पाया, बेचैनी में ही सुबह उठकर मेल खोलते ही अभिषेक श्रीवास्तव का मराठवाड़ा पर यात्रा वृतांत पढ़ा तो कुछ हद तक तनावपूर्ण मनःस्थिति से निजात मिली. हालाँकि इस विवरण में मन को शांत करने वाला ऐसा कुछ नहीं था, उलटे वह हमारे समाज का ही बेहद मार्मिक स्याह पक्ष था, मगर उसे पढ़ते हुए…

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कवि-लेखक प्रेमचंद गाँधी ने अपने इस लेख में यह सवाल उठाया है कि लेखिकाएं साहित्य में अपने प्रेम साहित्य के आलंबन का नाम क्यों नहीं लेती हैं? एक विचारोत्तेजक लेख- जानकी पुल.======================मीरा ने जब पांच शताब्‍दी पहले अपने प्रेमी यानी कृष्‍ण का नाम पुकारा था तो वह संभवत: भारत की पहली कवयित्री थी, जिसने ढोल बजाकर अपने प्रेमी के नाम की घोषणा की, उसके साथ ब्‍याह रचाने की बात कही, फिर वह प्रेमी चाहे भगवान ही क्‍यों न हो। एक स्‍त्री अपने समय के सत्‍ता केंद्रों से टकराती है और कविता में खुद के साथ अपने प्रिय को अमरता का…

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प्रसिद्ध आलोचक सुधीश पचौरी ने इस व्यंग्य लेख में हिंदी आलोचना की(जिसे मनोहर श्याम जोशी ने अपने उपन्यास \’कुरु कुरु स्वाहा\’ में खलीक नामक पात्र के मुंह से \’आलू-चना\’ कहलवाया है) अच्छी पोल-पट्टी खोली है. वास्तव में रचनात्मक साहित्य की जमीन इतनी बदल चुकी है कि हिंदी आलोचना की जमीन ही खिसक चुकी है. आलोचक न कुछ नया कहना चाहते हैं न कुछ नया देखना चाहते हैं. कुल मिलाकर अध्यापकों का अध्यापकों के लिए विमर्श बन कर रह गई आलोचना. बहरहाल, जिन्होंने आज \’दैनिक हिन्दुस्तन\’ में सुधीश पचौरी का यह लेख न पढ़ा हो उनके लिए- जानकी पुल. =====================================  …

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शायक आलोक का नाम आते ही कई विवाद याद आते हैं. शायद उसे विवादों में रहना पसंद है. लेकिन असल में वह एक संजीदा कवि का नाम है. आज उसकी कुछ कवितायेँ- जानकी पुल.=============================================================1.दुनिया की तमाम भाषाओं से इतर तुम्हारे रुदन के विस्फोट को तारी कर आओ मेरे पिता के छोटे पड़ गए बनियान पर वह जो एक सुराख है उसमें सूई में पिरोते जाते धागे की तरह उस सुराख में पइसा दो मेरी मासूम ऊँगली की छुअन कहो पिता को उतरने दे मुझे उसके पेट के पैशाचिक कसाव के भीतर .. कहो, उसे इन्कार है ?! हत मा !…

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आज लाल्टू की कविताएँ. वे हमारे दौर के ऐसे कवि हैं जो बेहद ख़ामोशी से सृजनरत रहते हैं. प्रतिबद्ध हैं लेकिन अपनी प्रतिबद्धता का नगाड़ा नहीं पीटते. एक विनम्र कवि की कुछ चुनी हुई कविताएँ आज आपके लिए- जानकी पुल.======= क कथाक कवित्त क कुत्ता क कंकड़ क कुकुरमुत्ता. कल भी क था क कल होगा.क क्या था क क्या होगा.कोमल ? कर्कश ?(पश्यन्ती – 2003 )ख खेलेंखराब खख खुलेखेले राजाखाएँ खाजा.खराब खकी खटिया खड़ीखिटपिट हर ओरखड़िया की चाकखेमे रही बाँट.खैर खैरदिन खैरशब ब खैर.(पश्यन्ती – 2003)मैं तुमसे क्या ले सकता हूँ?मैं तुमसे क्या ले सकता हूँ?अगर ऐसा पूछो तो मैं क्या कहूँगा.बीता हुआ वक्त तुमसे ले सकता हूँ क्या?शायद ढलती शाम तुम्हारे साथ…

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हाल में ही राजकमल प्रकाशन से एक किताब आई है \’प्रारंभिक रचनाएं\’, जिसमें नामवर सिंह की कुछ शुरूआती रचनाओं को संकलित किया गया है. संपादन भारत यायावर ने किया है. उसमें नामवर जी की कुछ आरंभिक कविताएँ भी हैं. उसी में से कुछ चुनी हुई कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.================================================== १.कभी जब याद आ जाते कभी जब याद आ जाते नयन को घेर लेते घन, स्वयं में रह न पाता मनलहर से मूक अधरों पर व्यथा बनती मधुर सिहरन न दुःख मिलता न सुख मिलता न जाने प्रान क्या पाते. तुम्हारा प्यार बन सावन, बरसता याद के रसकनकि पाकर मोतियों का धन…

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महान गद्यकार फणीश्वर नाथ रेणु जी का यह दुर्लभ रिपोर्ताज जय गंगा   प्रस्तुत है- जो रेणु रचनावली में भी उपलब्ध नहीं है- रेणु साहित्य के अध्येता श्री अनंत ने अपनी साईट www.phanishwarnathrenu.com पर इसे  प्रस्तुत किया है- इसकी ओर हमारा ध्यान दिलाया पुष्पराज जी ने- सबका आभार—– जानकी पुल   —————————————————————————————————————                                                                                                       जै…

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निलय उपाध्याय ठेठ हिंदी के कवि हैं. उनकी कविताओं में वह जीवन्तता है जिससे पता चलता है कि वे जीवन के कितने करीब धडकती हैं. मुंबई की लोकल को लेकर उन्होंने एक कविता श्रृंखला लिखी है, उसकी कुछ कवितायें आपके लिए- जानकी पुल.======================= लोकल के डब्बे में हिरोईन लोकल का डब्बा सवारियों से भरा थाजब एक औरत घुसी लोगो पर गहरी नजर डालजैसे रोते हुए कहा – मेरा बच्चाऔर अजीब सी बदहवासी में निकल गई बाहर जाते ही किसी ने कहा अरे पहिचाना उसेकौन थी वहसबको लग रहा था चेहरा उसकाजाना पहिचानानाम आते ही पहचान गए सबवह थी बालीवुड फ़िल्मों की हिरोइनकई…

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