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दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के बाद शुरु हुए आंदोलन को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र धोड़पकर ने बहुत बहसतलब लेख लिखा है- जानकी पुल.========================= राजनीति और समाज के बारे में भविष्यवाणी करना खतरनाक होता है। जब देश में टेलीविजन और संचार साधनों की आमद हुई, तो समाजशास्त्रियों व कुछ राजनीतिज्ञों ने कहा था कि अब जन-आंदोलनों के दिन लद गए। अब लोग सब कुछ टीवी से पा लेंगे और सड़कों पर नहीं निकलेंगे। कुछ अरसे तक यह भविष्यवाणी सही भी होती दिखी। अब ऐसा लगता है कि इसकी वजह आधुनिक संचार साधन नहीं थे, बल्कि मंडल व मंदिर आंदोलनों की हिंसा से…
दिल्ली की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद बलात्कार और उसके कानूनों को लेकर बहस शुरु हो गई है. कवयित्री अंजू शर्मा का यह लेख भी पढ़ा जाना चाहिए- जानकी पुल.================================== मेरी नौ वर्षीया बेटी ने कल मुझसे पूछा कि रेपिस्ट का क्या मतलब होता है। पिछले कई दिनों से वह बार-बार रेपिस्ट, रेप, बलात्कार, फांसी, दरिन्दे, नर-पिशाच जैसे शब्दों से दो-चार हो रही है। रेप की विभत्सता पर बात करते हुए, या आक्रोश जताते हुए, उसके आने पर बड़ों का चुप हो जाना या विषय बदल देना उसे समझ में आता है। वह पूछती है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जो…
आज कुछ कविताएँ रामजी तिवारी की. समय-समाज की कुछ सच्चाइयों के रूबरू उनकी कविताएँ हमें हमारा बदलता चेहरा दिखाती हैं- जानकी पुल.================================ 1…. मुखौटे मुखौटे तब मेले में बिकते, राक्षसों और जानवरों के अधिकतर होते जो भारी, उबड़ खाबड़ और बहुत कम देर टिकते|पहनते हम शर्माते हुए, तुम फलां हो न ? कोई भी पहचान लेता तब गड़ जाते लजाते हुए |मुखौटा और भारी हो जाता, हम उतार फेंकते शर्म जब तारी हो जाता |मुखौटे अब बाजार में बिकते हैं,जब चाहें खरीद लें जैसे चाहें पहन लें और बहुत देर टिकते हैं|इतने सुगढ़ , इतने वास्तविक, इतने…
आशुतोष कुमार का यह लेख आंखें खोल देने वाला है- जानकी पुल.===========================================सौ बार दुहराने से झूठ सच हो जाता है , गोएबल्स का यह सिद्धांत साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी सोच की जीवनधारा है. सामने दिख रहे सच को झुठलाने के लिए पहले अपने अतीत को झुठलाना जरूरी है , वे जानते हैं.झूठे प्रचार, आंदोलन और पाठ्यपुस्तकों के जरिये इतिहास को झुठलाते हुए वे कभी किसी ऐतिहासिक मस्जिद को एक काल्पनिक मंदिर के खंडहर में बदल देते हैं , कभी कल्पना के समंदर में बने हुए अंध-आस्था के पुल पर मिथकीय बंदरों की तरह उछलकूद मचाने लगते हैं और कभी ताजमहल को तेजो-महालय का…
अपर्णा मनोज ने कम कहानियां लिखकर कथा-जगत में अपना एक अलग भूगोल रचा है. अछूते कथा-प्रसंग, भाषा की काव्यात्मकता, शिल्प के निरंतर प्रयोग उनकी कहानियों को विशिष्ट बनाते हैं. जीवन के अमूर्तन को स्वर देने की एक कोशिश करती उनकी एक नई कहानी- जानकी पुल. =============================================सारंगा तेरी याद में::अँधेरे-बंद कमरे :\”जीवन संध्या\”वृद्धाश्रम के एक ही कतार में खड़े नीले-नीले कमरे…चारों तरफ से बोगेनविलिया से घिरे हैं.लाल, बैंजनी ,सफ़ेद फूलों से लदे,लेकिन फिर भी शजर-शजर अँधेरे का बसर और उजाला विस्थापित दिखाई देता है यहाँ.बूढ़े युगल जैसे थके हुए परिंदे हैं ..सैदकुन मौत की आहट से बेचैन दिखाई देते..लेकिन जीवन है कि चल रहा है.कभी कोई…
महान सितारवादक रविशंकर को श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख सितारवादक शुजात हुसैन खान ने लिखा है- जानकी पुल.================कल सुबह अमेरिका से फोन आया कि रवि काका नहीं रहे। मन को बड़ा धक्का लगा कि सितार के महान कलाकार पंडित रवि शंकर हमें छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। टेलीविजन ऑन किया, तो तमाम टीवी चैनलों पर अलग-अलग तरीके से खबरें आ रही थीं। टीवी चैनल के लिए तो यह बस एक खबर थी, लेकिन मेरे लिए यह व्यक्तिगत नुकसान था। हिन्दुस्तानी संगीत के एक प्रमुख वाद्य यंत्र सितार को दुनिया भर में पहचान दिलाने और भारतीय संगीत को पूरी…
विनीत कुमारयुवा लेखक विनीत कुमार का यह लेख वर्चुअल स्पेस पर मौजूद हिंदी के उन लेखकों की ‘सर्जरी’ है, जो तुरत-फुरत समाधान में विश्वास रखते हैं और वह भी बिन किसी तैयारी के। ‘मांझी-गोस्वामी प्रकरण’ के बहाने विनीत ने उन मठाधीशों की भी ख़बर ली है, जो “मर्द लेखक-संपादक” होने के लिए किसी लेखिका को छिनाल-चालबाज कहना ज़रूरी समझते हैं : जानकीपुलमुझे याद है, आज से कोई चार साल पहले हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने डरते-डरते (जैसे उनके कम्प्यूटर की कीबोर्ड दबाते ही हिन्दी भवन के आगे पोखरण परमाणु परीक्षण हो जाएगा और जो आग के गोले उठेंगे,…
क्या हरिशंकर परसाई कविता भी लिखते थे? कांतिकुमार जैन के प्रयत्न से परसाई जी की दो कविताएँ सामने आई हैं। हो सकता है, और भी कविताएँ लिखी गई हों। अधिकांश लेखक कविता से ही शुरुआत करते हैं। परसाई जी कहते हैं, ‘शुरू में मैंने दो-तीन कविताएँ लिखी थीं पर मैं समझ गया कि मुझे कविता लिखना नहीं आता। यह कोशिश बेवकूफी है। कुछ लोगों को यह बात कभी समझ में नहीं आती और वे जिंदगी भर यह बेवकूफी किए जाते हैं।’ लेकिन जिसे लेखक खुद बेवकूफी बता रहा है, उसमें उसके भावी लेखन के प्रबल संकेत हैं और इस दृष्टि…
सलमान रुश्दी के संस्मरणों की पुस्तक आई है ‘जोसेफ एंटन’. उसी पुस्तक का एक अनूदित अंश जो सलमान रुश्दी के अपने पिता के साथ संबंधों को लेकर है, अनुवाद मैंने ही किया है- प्रभात रंजन. ======================== जब वह छोटा बच्चा था उसके अब्बा सोते समय उसे पूरब की महान चमत्कार-कथाएं सुनाया करते थे, उनको सुनाते, फिर-फिर सुनाते, उसे फिर से बनाते और फिर अपने तरीके से उसे नया रच देते- ‘वन थाउसैंड वन नाइट’ के शहरजादे की, मौत के सामने सुनाई हुई कहानियां इस बात को साबित करने के लिए कि कहानी में यह कूवत होती है कि वह सबसे…