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वीरेंद्र प्रताप यादव के उपन्यास ‘नीला कॉर्नफ्लावर’ की समीक्षा लिखी है डॉ. अपर्णा दीक्षित ने। आधार प्रकाशन से प्रकाशित इस उपन्यास की समीक्षा आप भी पढ़ सकते हैं- ====================      साहित्यिक गलियारों में समाजशास्त्रियों की आवाजाही पाठक के तौर पर तो ठीक है, बतौर लेखक कोई ख़ास पसंद नहीं की जाती। ऐसे में एक मानवविज्ञानी का पहला उपन्यास साहित्य जगत में कितनी जगह बना पाएगा ये सोचने वाली बात होगी। इस विषय पर मेरी साहित्य और समाजविज्ञान दोनों ही इदारों से आने वाले विद्वतजनों से बातचीत रही है। कहना गलत न होगा, दोनों तरफ आग बराबर लगी है। मसलन, ख़ालिस…

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आज पढ़िए युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर की कहानी। प्रचण्ड अपने प्रयोगों के लिये जाने जाते हैं और अक्सर विधाओं में तोड़फोड़ करते रहते हैं। उनकी यह कहानी व्यङ्ग्य सम्राट हरिशङ्कर परसाई की कहानी मौलाना का लड़का : पादरी की लड़की को श्रद्धाञ्जलि स्वरूप समर्पित है- ====================== फ़ारसी कविताओं मेँ गुल और बुलबुल को प्रेम का प्रतीक मान कर किस्सों और कविताओं मेँ बहुतेरी मिसालें दी गयी हैँ। हमारे भारत मेँ कमल और भौँरे की, कोयल और पपीहे की जो प्रसिद्ध जोड़ियाँ है, हिन्दुस्तान के फ़ारसी लिखने-पढ़ने वालोँ ने उन्हेँ भुला कर गुल और बुलबुल को सिर चढ़ा लिया। मतलब ऐसे…

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‘खिलाड़ी दोस्त’ के कवि हरे प्रकाश उपाध्याय आजकल कविताओं की नई शैली में लौटे हैं। पढ़िए उनकी कुछ नई कविताएँ- मॉडरेटर ======================== 1 नाम मतवाला दो गाय एक भैंस चार बकरी नाम मतवाला जादो जी के खाली प्लाट में रहता है एक ग्वाला लंबे कद का दुबला-पतला चौड़ी मूँछों वाला मुहल्ले में सब कहते उसे भैया लंबू दूधवाला! मुर्गों से बहुत पहले से वह जगता है सारे कुत्तों के सो जाने पर ही सोता है कभी चारा-पानी कभी दूध दुहता होता है दस बजते-बजते अपनी भैंस वो धोता है कर्जा लेकर ख़रीदा था परसाल एक गाय पता नहीं क्या रोग…

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मुक्तिबोध के निधन और उनके अंतिम संस्कार पर यह दुर्लभ रपट लिखी है मनोहर श्याम जोशी ने, जो शायद ‘दिनमान’ में प्रकाशित हुई थी। हमें वरिष्ठ कवि राजेंद्र उपाध्याय के सौजन्य से प्राप्त हुई है। मुक्तिबोध की पुण्य तिथि पर आप भी पढ़ सकते हैं- =================== औंधी लटकी हुई बोतलें, उभरी हुई नसों में गुदी हुई सुइयाँ, गले में किए हुए छेद में अटकी हुई ऑक्सीजन की नलियाँ, इंजेक्शन और इंजेक्शन। भारत के अन्यतम डॉक्टर कोई ढाई महीने से रोगी की रक्तचाप थामे हुए थे। उस संज्ञशून्य देह और मौत के बुलावे के बीच, किसी तरह, किसी भी तरह एक…

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इस समाज में स्त्री कहाँ सुरक्षित है? घर, बाहर, शिक्षण संस्थान या कोई भी संस्थान, पुलिस स्टेशन, जिसका काम ही है सुरक्षा देना या कहीं भी और? पिछले दिनों कलकत्ता में जो हुआ उससे यह ध्यान आया वाजिब है कि इसके पहले भी इस तरह की घटनाएँ हुई हैं, उनका क्या हुआ? कुछ दिनों का शोर और फिर सब शांत? इन्हीं सवालों से जूझते हुए अनामिका झा अपना अनुभव हम सबके साथ साझा कर रही हैं। आइए पढ़ते हैं – अनुरंजनी ================================== निर्भया और बिलकिस बानो की याद में आज हम ‘आरजी कर मेडिकल कॉलेज’ की ट्रेनी डॉक्टर के साथ…

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आज जानकी पुल की विशेष प्रस्तुति मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा- ============================== यूरी बोत्वींकिन मेरे फ़ेसबुक मित्र काफी समय से रहे हैं, मगर वैयक्तिक परिचय वातायन के एक लाइव के दौरान हुआ। बातों-बातों में तब उनके लेखन से परिचय हुआ तो मैं चकित रह गई, भारतीय दर्शन को में उनकी गहरी पैठ देखकर। विदेशी होने के कारण किसी की अच्छी हिन्दी पर चौंकना मैंने बहुत पहले बंद कर दिया था जब विश्वहिंदी सम्मेलनों में मेरा परिचय विश्व-भर के हिन्दी मर्मज्ञों से हुआ। लेकिन किसी ने असंख्य हिन्दी कविताएं लिखी हों और एक अनूठा नाटक ‘अंतिम लीला’ भी यह अभिभूत करने वाली बात है। प्रस्तुत नाटक…

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आदित्य रहबर की कविताएँ बेहद प्रभावी हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति जिसने अपनी सोचने-समझने की शक्ति को बचाई, बनाई रखी हुई है उन सबकी अभिव्यक्ति है यह कविताएँ। आदित्य बिहार के मुज़फ्फरपुर जिले के एक छोटे से गाँव गंगापुर के निवासी हैं। लंगट सिंह कॉलेज, मुज़फ्फरपुर से इतिहास विषय में स्नातक के बाद वर्तमान में हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं और साथ में दिल्ली रहकर यूपीएससी की तैयारी भी। इनकी एक कविता संग्रह ‘नदियाँ नहीं रुकतीं’ प्रकाशित है। शॉर्ट फिल्में भी लिखते हैं। आज उनकी यह बेहद साहसिक एवं अनिवार्य कविताएँ आप सबके समक्ष हैं – अनुरंजनी…

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मनुष्य के मनोविज्ञान पर कब कौन सी बात किस तरह असर करती रहती है इसे समझना बेहद जटिल है। तमाम मानसिक बीमारियों में से एक है ‘ड्यूल पर्सनालिटी’ में जीना। इसी को केंद्र में रख कर गरिमा जोशी पंत ने यह कहानी लिखी है, ‘गुठली’। गरिमा का जन्म एवं शिक्षा जयपुर (राजस्थान) में हुई है। उन्हें अध्ययन और लेखन का शौक है।कई ब्लॉग्स, समाचार पत्र (प्रजातंत्र) जानकीपुल में उनकी कविताएँ, कहानी, और लेख प्रकाशित हुए हैं। आज यह कहानी पढ़िए- अनुरंजनी ====================================== गुठली ‘महिला सुरक्षा एवं विकास’ की उस इमारत से बाहर निकल सीमांतिनी सिंह तेजी से पार्किंग में लगी…

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आज महेश कुमार का यह शोध अलेख पढिए जिसमें उन्होंने मेक्सिको के आदिवासियों के जापटिस्ट आन्दोलन का भारत के समकालीन आदिवासी आंदोलन और आदिवासी उपन्यासों में समानता की पड़ताल की है और उसका परिणाम क्या हुआ क्या हो सकता था/ है इसे भी रेखांकित किया है। महेश काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं । उनके कई शोध-आलेख, समीक्षाएँ पक्षधर, वागर्थ, आलोचना, सबलोग, जानकीपुल, समकालीन जनमत, पोषम पा, सुचेता, फॉरवर्ड प्रेस आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं – अनुरंजनी ==================================== जापटिस्ट आंदोलन के जनक एमिलियानो जापाटा थे। वे जिस समय में हुए उस दौर में मेक्सिको के आदिवासी हेसिंडा (hacienda) से अपनी…

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आज पढ़िए युवा लेखक शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ की समीक्षा। लिखा है वैभव शर्मा ने। संग्रह का प्रकाशन लोकभारती प्रकाशन से हुआ है- मॉडरेटर======================= युवा लेखक शहादत की कहानियों पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और वरिष्ठ हिंदी लेखिका प्रज्ञा रोहिणी का कहना है कि शहादत की कहानियां  हिंदुस्तान के ज़मीनी यथार्थ का वो चेहरा पेश करती हैं, जो निरंतर बदल रहा है। उनके इस कथन को सुनकर मुझे हैरानी के साथ-साथ बेयकीनी का अहसास भी हुआ। मगर यह अहसास शायद इसलिए था कि क्योंकि उस वक्त तक न तो मैं शहादत से मिला था और न ही मैंने…

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