जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.

यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि हान कांग के पिता हान संग-वन भी कोरियाई भाषा के प्रसिद्ध लेखक हैं। पुत्री को नोबेल मिलने पर कोरियाई मीडिया में उनके पिता की जो प्रतिक्रिया आई है उसको मूल कोरियाई भाषा से हिन्दी में प्रस्तुत कर रही हैं कुमारी रोहिणी, जो जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में कोरियाई भाषा एवं साहित्य पढ़ाती हैं- मॉडरेटर 

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मेरा मानना है कि किसी लेखक को उसकी भाषा का संस्कार कहीं ना कहीं उसके बचपने से ही मिल जाता है। एक लेखक यूँ ही लेखन नहीं करने लग जाता, उसके अंदर वह बीज उसके जन्म के पहले से होता है। और फिर सही खाद-पानी मिलने पर ही वह बीज प्रफुल्लित-पुष्पित होता है। इसके एक उदाहरण के रूप में इस वर्ष की नोबेल पुरस्कार विजेता हान कांग को देखा जा सकता है। हान, दक्षिण कोरियाई लेखक हैं और कल यानि हानगुल डे के दिन उन्हें साहित्य का शीर्ष पुरस्कार अर्थात् नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई है। इस खबर के बाद दुनिया भर की नज़रें दक्षिण कोरिया और हान दोनों पर जाकर जैसे टिक सी गई हैं। दक्षिण कोरियाई इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब उसके किसी लेखक को नोबेल मिला है। कोरियाई भाषा एवं साहित्य के विशेषज्ञ पंकज मोहन ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा है कि दक्षिण कोरिया की राजधानी सेओल में स्थित उसका सबसे बड़ा किताब घर (क्योबोमुन-गो), जिसमें लगभग तेईस लाख किताबें हैं, में एक कोने में एक शेल्फ वर्षों से अपने हिस्से की किताब की बाट जोह रहा था। उस शेल्फ का वह इंतज़ार 10 अक्टूबर 2024 की शाम में जाकर ख़त्म हुआ। दरअसल, उस शेल्फ में दक्षिण कोरिया के उन लेखकों की किताब रखी जानी थी जिन्हें साहित्य का शीर्ष सम्मान यानी कि नोबेल मिला है। अब सेओल स्थित ‘क्योबो’ का वह शेल्फ हान की किताबें से जगमगायेगा।
हान को पढ़कर और उनके इंटरव्यू को सुनकर मैं अक्सर सोचती थी कि कहाँ से आती है हान के पास ऐसी भाषा, कैसे आते हैं ये मानवीय विषयों (जो एक हद तक मानव होने की परिभाषा से परे हैं, जिसे अंग्रेज़ी में बेयोंड द ह्यूमनेस कह सकते हैं शायद) पर लिखने के ख़याल। वह कौन सा खाद-पानी है जो हान के भीतर ऐसी चिंताएँ जगाता है। और इसका जवाब एक दिन मुझे यूँ ही इंटरनेट सर्फ़ करते-करते मिला। जी, हान एक बहुत ही समृद्ध साहित्यिक परिवार से आती हैं। ऐसा नहीं है कि हान कांग अपने परिवार या पीढ़ी की एक मात्र लेखक हैं। हान के पिता, हान संग-वन भी कोरिया के एक बड़े एवं साहित्यिक जगत में प्रतिष्ठित नाम हैं। इन दिनों सेओल से लगभग साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर ‘जांगहुंग’ में रह रहे हान कांग के पिता ‘हान संग-वन’ से जब उनकी लेखक बेटी को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद प्रतिक्रिया मांगी गई तो उनका जवाब था कि, ‘मैं यह खबर सुनकर पूरी तरह अवाक् रह गया।’ कोरिया के एक स्थानीय रेडियो पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी को इतना बड़ा सम्मान मिलेगा। हान संग-वन ने यह भी कहा कि, ‘इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है जब नोबेल पुरस्कार की कमिटी ने पुरस्कार के लिए किसी ऐसे लेखक को चुना है जिसका नाम किसी ने सोचा भी ना हो। मुझे लगता है कि भीतर मन में कहीं ना कहीं एक उम्मीद यह थी कि एक दिन अचानक से मेरी बेटी को इतना बड़ा और प्रतिष्ठित सम्मान मिल जाएगा, लेकिन मैंने अपनी इस उम्मीद पर कभी भरोसा नहीं किया।’
अपनी बेटी और लेखक हान कांग के लेखन की शिल्प पर टिप्पणी करते हुए लेखक और हान कांग के 85 वर्षीय पिता हान संग-वन ने कहा कि, ‘हान, त्रासदी को बहुत ही गहरे, सुंदर लेकिन दुखद ढंग से अपनी लेखनी में दिखाती है।’ उन्होंने यह भी कहा कि, ‘मुझे लगता है कि उसके उपन्यास ‘दी वेज़िटेरियन’ के बाद से साहित्यिक परिदृश्य में उसका महत्त्व बहुत बढ़ गया और उसकी चर्चा होने लग गई। उसके बाद ‘ह्यूमन एक्ट्स’ और फिर ‘आई डू नॉट बिड फ़ेयरवेल’ आया। ‘आई डू नॉट बिड फ़ेयरवेल’ के माध्यम से हान ने ग्वांगजू में साल 1948 में 3 अप्रैल को होने वाले विद्रोह और उससे उपजने वाली त्रासदी को दर्शाया है। इस किताब में उन नाज़ुक लोगों के प्रति एक तरह का प्रेम दिखाया गया है जिन्हें दुनिया भर में होने वाली हिंसा और त्रासदी के कारण गहरा आघात पहुँचता है। मुझे लगता है कि पुरस्कार समिति के सदस्यों ने इसी तथ्य को केंद्र में रखकर अपना निर्णय लिया होगा।’
एक पिता से अधिक एक लेखक के रूप में हान संग-वुन ने कहा कि, ‘मुझे नहीं लगता है कि हान के लिखे में ऐसा कुछ भी है जिसे ख़ारिज किया जा सकता हो। उसका एक-एक काम मास्टरपीस है। यह एक ऐसे हाथी की सोच नहीं है जिसे अपना बच्चा सबसे सुंदर दिखाई पड़ता है।’
इस वर्ष की शुरुआत में हान संग-वुन का आत्मकथात्मक उपन्यास ‘दी पाथ ऑफ़ ह्यूमन्स’ प्रकाशित हुआ है।

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